न्यूज डेक्स हरियाणा
कुरुक्षेत्र। भगवान परशुराम को विष्णु जी का छठां अवतार माना जाता है। भगवान परशुराम के जन्मदिवस के रुप में हर साल परशुराम जयंती मनाई जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार परशुराम जयंती हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। परशुराम जी का जन्म प्रदोष काल में तृतीया तिथि में हुआ था। ऐसे में परशुराम जयंती का उत्सव भी प्रदोष काल में ही मनाने की परंपरा रही है।
गायत्री ज्योतिष अनुसंधान केंद्र के संचालक डॉ. रामराज कौशिक ने बताया कि इस वर्ष परशुराम जयंती 14 मई, शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस दिन अक्षय तृतीया भी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदना बेहद शुभ माना जाता है।इस दिन माँ बगलामुखी जयंती,परशुराम जयंती,अक्षय तृतीया, त्रेतायुग की शुरुआत हुई इसलिये यह दिन बहुत शुभ होने के कारण अबूझ मुहूर्त भी होता है।इस दिन बिना किसी को पूछे कोई भी मंगल कार्य विवाह,मुहूर्त आदि किया जा सकता है।इस दिन सोना,चांदी,बर्तन या घर का कोई भी समान जरूर खरीद कर घर लाना चाहिए।
*परशुराम जयंती पर पूजा का शुभ मुहूर्त*
इस साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का प्रारंभ 14 अप्रैल दिन शुक्रवार को प्रात:काल 05.38 मिनट पर हो रहा है। इस तिथि का समापन 15 अप्रैल दिन शनिवार को सुबह 07.59 मिनट पर होना है। तृतीया तिथि का प्रदोष काल 14 मई को है। ऐसे में परशुराम जयंती भी 14 मई को ही मनाई जाएगी। इसके अलावा 14 मई को राहुकाल दिन में 10.36 मिनट से दोपहर 12.18 मिनट तक है। जन्मोत्सव के समय राहुकाल का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
यदि प्रदोष काल में परशुराम जयंती पर पूजा की जाती है तो यह उत्तम माना जाता है। प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद और रात्रि से पूर्व के समय को कहा जाता है। 14 मई को सूर्यास्त शाम को 07.04 मिनट पर होगा।अतः परशुराम जी की पूजा आदि सुबह 5 बजकर 38 मिनट से 10-36 तक करनी चाहिए।फिर शाम को 7-04 से 8-04 तक।*परशुराम जयंती का धार्मिक महत्व*पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक हिंदू धर्म में परशुराम जयंती का विशेष महत्व है।
भगवान परशुराम जी को विष्णु जी का छठा अवतार माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक परशुराम जी एक मात्र ऐसे अवतार हैं, जो आज भी पृथ्वी पर जीवित हैं। दक्षिण भारत के उडुपी के पास भगवान परशुराम का एक विशाल मंदिर है। कल्कि पुराण में उल्लेख किया गया है कि जब कलयुग में भगवान विष्णु के 10वें अवतार कल्कि अवतरित होंगे, तो परशुराम जी ही उनको अस्त्र-शस्त्र में पारंगत करेंगे।