हंसी के रंग में डूबो गया नाटक सैंया भए कोतवाल
आनलाईन कार्यक्रम में हास्य-व्यंग्य नाटक सैंया भए कोतवाल ने किया भ्रष्टाचार पर प्रहार
सैंया भए कोतवाल ने जमाया रंग, कलाकारों ने बटौरी तालियां
संदीप गौतम/न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र,6 दिसंबर।
भाई-भतीजावाद जैसी नीति अपनाकर कोई भी लम्बे समय तक अपने पांव नहीं जमा सकता। व्यवस्था में भ्रष्टाचार के जरिये पांव जमाने वाले लोग जब फंसते हैं तो कोई भी उनका सहारा नहीं बनता। ऐसा ही कुछ देखने को मिला हरियाणा कला परिषद् द्वारा आयोजित साप्ताहिक आनलाईन संध्या में। गौरतलब है कि पिछले कुछ महीनों से हरियाणा कला परिषद द्वारा आनलाईन कार्यक्रमों के माध्यम से कला और संस्कृति का विस्तार करते हुए कलाकारों को मंच प्रदान किया जा रहा है। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए हरियाणा कला परिषद की नाट्य प्रस्तुति सैंया भए कोतवाल का मंचन किया गया।
वसंत सबनीस द्वारा लिखित नाटक का निर्देशन हरियाणा कला परिषद के निदेशक संजय भसीन ने किया। प्रस्तुति संयोजक के रुप में विकास शर्मा ने अपनी भूमिका अदा की। हास्य-व्यंग्य से भरपूर नाटक नाटक सैंया भए कोतवाल में व्यवस्था पर चोट करते हुए कलाकारों ने भ्रष्टाचार की पोल खोलने का कार्य किया। तमाशा शैली में मंचित नाटक में सूर्यपुर नगर की कहानी को दिखाया गया। मूर्ख राजा रणधीरा के कोतवाल के मरने के बाद सभी को नए कोतवाल की चिंता लग जाती है। जिसका फायदा प्रधान उठाता है और अपने बेवकूफ साले को कोतवाल बना देता है। राज्य का हवलदार और सिपाही नए कोतवाल को देखकर खुश नहीं होते और उसे फंसाने की तरकीब सोचने लगते हैं।
कोतवाल से बात करने पर हवलदार को पता चलता है कि उसे गाना सुनने का शौंक है। ऐसे में हवलदार अपनी प्रेमिका मैनावती के साथ मिलकर कोतवाल को फसाने की चाल चलता है और कोतवाल के आगे मैनावती के प्यार का झांसा डाल देता है। मैनावती कोतवाल से शादी करने की शर्त पर राजा का छपरी पलंग मांग लेती है। कोतवाल हवलदार और सिपाही से छपरी पलंग मंगवा लेता है। वहीं हवलदार राजा को भी इस चोरी की खबर दे देता है। छपरी पलंग आने के बाद कोतवाल जब मैनावती से शादी करने पहुंचता है तो राजा ब्राहम्ण का वेश धरकर शादी करवाने पहुंच जाता हैं, जहां दोनों की शादी हो जाती है। लेकिन बाद में नाटक से जब पर्दा उठता है तो पता चलता है कि दुल्हन मैनावती नहीं बल्कि मैनावती का शागिर्द सख्या है।
अंत में राजा हवलदार से खुश होकर उसे कोतवाल बना देता है। नाटक में कलाकारों का अभिनय, संगीत, वेशभूषा तथा संवाद सभी को रोमांचित करने में अपनी अहम भूमिका निभा रहे थे। नाटक में कोतवाल की भूमिका में रंगकर्मी व प्राध्यापक शिव कुमार किरमच ने अपनी कलाकारी से सभी को लोटपोट कर दिया। वहीं हवलदार की भूमिका में साजन कालड़ा व मैनावती की भूमिका में पारुल कौशिक ने अपने अभिनय की अनूठी छाप छोड़ी। राजा की भूमिका निभा रहे गौरव दीपक जांगड़ा की भाव-भंगिमाओं ने सभी को खूब गुदगुदाया। सख्या के किरदार में आश्रय शर्मा ने भी अपनी हरकतों से सभी का मनोरंजन किया। प्रधान की भूमिका में चंचल शर्मा व सिपाही की भूमिका में नितिन गम्भीर ने अपनी हिस्सेदारी दी।
नाटक में संगीत संचालन अनिल संदूजा का रहा। राजवीर राजू ने रिदम, हरमोहन व सिद्धार्थ सिद्धू ने गायन तथा शुभम कल्याण ने हरिमोनियम पर संगत दी। वहीं निकेता शर्मा, अनूप कुमार, नितिन गुप्ता, आकाशदीप व यश ने कोरस में साथ दिया। प्रकाश व्यवस्था मनीष डोगरा ने सम्भाली तथा रुपसज्जा का कार्य रजनीश भनौट द्वारा किया गया।