श्री कृष्ण जन्माष्टमी गृहस्थियों के लिए 11 अगस्त को और वैष्णव सम्प्रदाय के लिए 12 अगस्त को मनाई जाएगी : आचार्य डॉ.सुरेश मिश्रा
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र,9 अगस्त। कॉस्मिक एस्ट्रो के डॉयरेक्टर और श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली (कुरुक्षेत्र ) के अध्य्क्ष ज्योतिष व वास्तु आचार्य डॉ.सुरेश मिश्रा ने बताया कि श्री कृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्सव है। गृहस्थ लोग 11 अगस्त 2020 मंगलवार को जन्माष्टमी का पर्व मनाएंगे क्योंकि 11 की रात को अष्टमी है। गृहस्थ लोग रात में चंद्रमा को अर्घ्य दें, दान और जागरण कीर्तन करें। 12 अगस्त को व्रत का पारण करें और कृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाएं। वहीं वैष्णव लोग 12 अगस्त बुधवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाएं।भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। कई बार ऐसा होता है ये दोनों संयोग एक साथ नहीं बन पाते। इस बार भी कृष्ण जन्म की तिथि और नक्षत्र एक साथ नहीं मिल रहे हैं। 11 अगस्त को सुबह नौ बजकर सात मिनट के बाद अष्टमी तिथि का आरंभ हो जाएगा, जो 12 अगस्त को प्रातः 11 बजकर 17 मिनट तक रहेगी। वहीं रोहिणी नक्षत्र का आरंभ 13 अगस्त को सुबह तीन बजकर 26 मिनट से 14 अगस्त प्रातः पांच बजकर 22 मिनट तक रहेगा।
योगेश्वर श्री कृष्ण के भगवद्गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी को भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में जन्म लिया। इसलिये भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है।]
मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। ज्न्माष्टमी में स्त्री-पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान श्री कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। और रासलीला का आयोजन होता है।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी को मोहरात्रि क्यों कहते है ?
श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इसके विधि पालन से आज आप अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्य राशि प्राप्त कर लेंगे।
नंद महोत्सव का क्या महत्त्व है ?
व्रजमण्डलमें श्रीकृष्णाष्टमीके दूसरे दिन भाद्रपद-कृष्ण-नवमी में नंद-महोत्सव श्रीकृष्ण के जन्म लेने के उपलक्षमें बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भगवान के श्री विग्रह पर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाब जल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढाकर ब्रजवासी उसका परस्पर लेपन और छिडकाव करते हैं। वाद्य यंत्रोंसे मंगल ध्वनि बजाई जाती है। भक्त जन मिठाई बांटते हैं। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है।