न्यूज डेक्स हरियाणा
चंडीगढ़। केंद्र और हरियाणा प्रांत में भाजपा की सरकारें अभी मजबूती के साथ चल रही है। केंद्र और राज्य दोनों जगह चुनाव होने में भी अभी लंबा वक्त पड़ा। फिर ऐसा क्या हो रहा है कि भाजपा को छोड़ कर विपक्ष में जाने को भी कुछ नेता तैयार हो रहे हैं। भले इसका कारण किसान आंदोलन का समर्थन और तीन कृषि कानूनों का विरोध बताया जा हो,मगर यह अधूरा सच प्रतीत होता है। बेशक एक कारण यह भी हो,मगर बड़ा कारण सत्तारुढ़ दल में बैठकर हाशिए पर रहना बड़ा कारण माना जा रहा है।
सत्ता सुख से परे उपेक्षित महसूस कर रहे इन नेताओं के एक के बाद एक जाने से भले यकदम सरकार पर कोई बड़ा असर ना पड़ रहा हो,मगर इससे थोड़ा माहौल जरूर बन रहा है।किसान आंदोलन के मध्य यह माहौल भाजपा के प्रति अंडर करेंट चल रहे असंतोष को इंगित कर रहा, जो छन छन कर कभी भाजपा के राजपूत क्षत्रिए चेहरे श्याम सिंह राणा के रुप में निकल रहा है,तो कभी जाट चेहरा रामपाल माजरा के रुप में। अब एक दिन पहले पूर्व विधायक बलवान सिंह दौलतपुरिया,पूर्व मंत्री अतर सिंह सैनी और पूर्व मंत्री जगदीश नेहरा के पुत्र सुरेंद्र नेहरा भाजपा से बाहर निकल कर आए और इन्होंने कांग्रेस का हाथ थामने में ज्यादा उत्सुकता दिखाई। भाजपा से बाहर आने का मन बना चुके वे चेहरे भी हैं जो अर्ध विराम पर खड़े होकर नई पार्टी और नई पार्टी के खेमों पर नजर डाल रहे हैं,ताकि यह स्पष्ट हो जाए कि कौन सा खेमा उन्हें टिकट का पक्का भरोसा दे और वे हाथ से हाथ मिला लें।
हरियाणा बीज विकास निगम के पूर्व चेयरमैन एवं भारतीय जनता पार्टी के नेता पवन बेनीवााल भी वैसे ही चेहरों में शुमार हैं। वे अपने समर्थकों के साथ मंगलवार को किसान आंदोलन में जाकर भाजपा छोड़ने का ऐलान कर चुके हैं। उन्होंने मंगलवार शहीद भगत सिंह स्टेडियिम में किसानों के धरना स्थल पर यह घोषणा की थी। बेनीवाल सात वर्ष पहले इनेलो छोड़कर भाजपा में आए थे। वे ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार बनाए गए, लेकिन हार गए थे। हालांकि भाजपा ने उन्हें सरकार में पूरा सम्मान दिया और हरियाणा बीज विकास निगम का चेयरमैन बनाया। इसके बाद 2019 के चुनाव में एक बार फिर भाजपा ने उन्हें टिकट दिया था,मगर वह दूसरी बार भी हार गए।
अब बेनीवाल पार्टी में घुटन महसूस करने की बात कह कर भाजपा को अलविदा कह चुके हैं और तीसरी बार कांग्रेस के टिकट पर ऐलनाबाद उपचुनाव में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। अब आगे भी इस तरह के कुछ चेहरे जो घुटन महसूस कर रहे हैं या किसानों के आंदोलन को सही मानते हैं,वे भाजपा छोड़ने के ऐलान से पहले ठीक उसी मुद्रा में है, जा तूं चल और मैं भी आया।भाजपा के दिग्गज और ताजा समीकरण यह भी दर्शाते हैं कि इस तरह के हालात से पार्टी या सत्ता की चाबी पर कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ेगा। काबिलेगौर है कि भाजपा की नीतियों पर असंतोष जताकर दो आजाद विधायकों में महम विधानसभा क्षेत्र के प्रतिनिधि बलराज कुंडू और दादरी के विधायक सतपाल सांगवान भी किनारा कर चुके हों। बड़ा कारण यही है कि किसानों की पार्टी कहे जाने वाली जजपा के साथ भाजपा गठबंधन केवल मजबूत ही नहीं,बल्कि बेजोड़ दिख रहा है।