Friday, November 22, 2024
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कुवि जनसंचार एवं मीडिया प्रौद्योगिकी संस्थान में रिफ्रेशर कोर्स के दौरान मुख्य वक्ताओं ने रखे विचार

by Newz Dex
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न्यूज डेक्स संवाददाता

कुरुक्षेत्र, 11 अगस्त। असम यूनिवर्सिटी सिलचर के पूर्व उपकुलपति एवं प्रोफेसर केवी नागराज ने कहा है कि मीडिया शिक्षण के देश में 100 वर्ष पूरे होने के बाद भी मीडिया क्षेत्र के शोध में न तो हम पश्चिमी बन सके व न ही भारतीय। गुणवत्तापूर्ण शोध के लिए मीडिया शिक्षकों एवं शोधार्थियों को अभी कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मीडिया शोध को बढ़ावा देने में राजनैतिक शास्त्र, मनोविज्ञान, समाज शास्त्र, एंथ्रोपोलाॅजी साहित्य सहित कई अन्य विषयों के विद्वानों ने बहुत कुछ दिया है। मीडिया शोधार्थियों को अभी दूसरे विषयों में हो रहे अध्ययन का अनुसरण कर मीडिया शोध की गुणवत्ता को बढ़ाने की आवश्यकता है।

वे मंगलवार को कुरुक्षेत्र विश्विद्यालय मानव संसाधन केन्द्र एवं जनसंचार एवं मीडिया प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा मीडिया उद्योग, शिक्षण एवं कौशल की नई दिशा विषय पर आयोजित रिफे्रशर कोर्स में प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने बताया कि 1920 में भारत में मीडिया शिक्षण की शुरुआत हुई थी अब इसे 100 वर्ष होने के आए हैं। इसके लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, कोविड के कारण रूकावटें पैदा हुई हैं, लेकिन हमें इस विषय पर चर्चाएं आयोजित करने की आवश्यकता है।

अपने उद्बोधन में उन्होंने गुणवत्तापूर्ण शोध, गुणनात्मक शोध के विभिन्न पक्षों पर अपने विचार रखते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मीडिया शोध में आ रहे बदलावों को हमें गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। प्रोफेसर नागराज ने कहा कि हमे मेक्रो की बजाए माइक्रो रिसर्च पर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि शोध में रिसर्च अप्रोच वोल्यूम से अधिक महत्वपूर्ण है। मीडिया शोध में आ रहे बदलावों पर चर्चा करते हुए कहा कि मीडिया उद्योग से लोग अब मीडिया शिक्षण में आ रहे हैं, इससे निश्चित रूप से शोध की गुणवत्ता बढ़ेगी। मीडिया में बहुविषयक शोध पर काम किया जा रहा है। अब एक विश्वविद्यालय ने कईं विश्वविद्यालयों के लोग मिलकर रिसर्च करने लगे हैं यह एक बड़ा बदलाव है। शोध के लिए नई शोध विधियों का प्रयोग भी किया जा रहा है।

अपने उद्बोधन में उन्होंने डिस्क्रोस एनालसिस, क्रिटिकल एनलासिस, नरेटिव, बिहेवियर, टेक्सच्यूअल, कंस्ट्रक्टिव, डिकंस्ट्रक्टिव,सिम्योटिक, सिम्युलेशन, कंवरसेशनल, मेटा, फेक्टर, कल्सटर व रिठोरिक एनालसिस पर विस्तार से अपनी बात रखी। अपने व्याख्यान में उन्होंने सड़क छाप शोध को छोड़कर सिर्फ गुणवत्ता पूर्ण शोध को बढ़ावा देने के लिए क्या किया जा सकता है इस पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि मीडिया शोध में अभी स्टेटिक्स, मीडिया साक्षरता, मीडिया फिलोस्फी, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, सिटीजन जर्नल्जिम सहित कई नए विषयों पर शोध करने का आहान किया। प्रोफेसर नागराज ने कहा कि मीडिया शिक्षा के 100 वर्ष होने पर हमें पिछले 100 वर्षों पर विचार कर भविष्य के लिए योजनाएं बनाने की आवश्यकता है।
एक अन्य सत्र को संबोधित करते हुए एपीजे स्कूल आॅफ मास कम्युनिकेशन के एडवाइजर एवं टेलिविजन विशेषज्ञ प्रोफेसर अशोक ओग्रा ने कहा कि कोविड के समय में देश व दुनिया में मीडिया का उपयोग बढा है। भारत में टेलीविजन के उपयोग में 43 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इसके साथ ही अखबारों की प्रसार संख्या भले ही घटी हो लेकिन समाजचार पत्र पढने के समय में वृद्धि हुई है। डिजीटल व सोशल मीडिया पर लोगों ने औसत से अधिक समय बिताया है। कोविड संकट के दौरान लोगों के जीवन में मीडिया का महत्व पहले से अधिक बढा है। मोबाइल फोन पर लोगों ने घंटों बिताए व फिल्म देखने वाले दर्शकों की संख्या भी बडी भारी संख्या में बढी है। इसका फायदा मीडिया उद्योग को निश्चित रूप से हुआ है।

प्रोफेसर ओगरा ने कहा कि जिस तरह से टीवी ने रेडियो को रिपलेश किया अब डिजीटल मीडिया टीवी को रिपलेश कर रहा है। सोशल मीडिया की पहुंच व प्रसार निरंतर बढ रहा है। कोविड के समय में भारत में मीडिया का पृरिदृश्य इस तरह से बदला है इस पर विस्तार से अपनी चर्चा करते हुए प्रो ओगरा ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण कंटेंट पाठक, दर्शक व श्रोताओं को देने के लिए मीडिया क्षेत्र में कार्य कर रहे प्रोफेशनलस व शिक्षकों को काम करने की जरूरत है। नई तकनीक के कारण मीडिया उद्योग जिस तरह से बदल रहा है मीडिया शिक्षकों को भी उतनी तेजी से साथ ही बदलना होगा। पत्रकार के साथ साथ मीडिया विद्यार्थी व शिक्षकों को भी मल्टीटास्किंग बनना होगा। अपने इसी व्याख्यान में उन्होंने वीजुअल मीडिया में शोध की संभावनाओं पर भी चर्चा की।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सूचना एवं पुस्तकालय विज्ञान विभाग के प्रोफेसर दिनेश गुप्ता ने अपने व्याख्यान में रैफ्रैंस एवं साइटेशन की विभिन्न तकनीकों पर चर्चा करते हुए शोध में इनके महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होने कहा कि पूरी दुनिया में 9000 से अधिक रैफ्रैंस व साइटेशन स्टाइल का प्रयोग किया जा रहा है। एक अच्छे शोधार्थी को साइटेशन व रैफ्रैंसिस के बारे में जानकारी होनी चाहिए। उन्होंने अपने उदबोधन में एपीए, एमएलए, शिकागो, हावर्ड स्टाइल, के साथ-साथ जुटेरो, मेंडले, एण्ड नोट पर भी विस्तार से चर्चा की। इसके साथ ही उन्होंने साइटेशन के तकनीकी पहलुओं पर भी प्रतिभागियों को अवगत कराया।
इस मौके पर कोर्स कोर्डिनेटर डाॅ. बिन्दु शर्मा ने वक्ताओं का स्वागत किया व सह संयोजक डाॅ. अशोक कुमार ने धन्यवाद किया। इस अवसर पर डाॅ. सतीश राणा, राजेश कुमार के साथ गरीमा श्री, महेन्द्र कुमार पाढी, डाॅ राजू, डाॅ. अजय कुमार, डाॅ. सुरेन्द्र, डाॅ. नवीन कुमार, रंजना ठाकुर, डाॅ. अभिषेक गोयल, पंकज गर्ग, मनीष प्रकाश, दिलावर सिंह, अजय कुमार, राकेश प्रकाश, सोमाली चक्रवर्ती, जयंत कुमार पांडा सहित सभी प्रतिभागी मौजूद थे।

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