तीसरी बार सीएम पद की शपथ के साथ देश के अगले प्रधानमंत्री रुप में देखा जाने लगा
न्यूज डेक्स इंडिया
चंडीगढ़। कहीं भूपेंद्र सिंह हुड्डा और इन छह चेहरों में ममता दीदी पीएम की कुर्सी तक पहुंचने के लिए संभावनाएं तो नहीं तलाश रहीं,ये चर्चा राजनीतिक गलियारों में शुरु हो चुकी है। जिक्रयोग्य है कि 5 मई को पश्चिम बंगाल में तीसरी बार सीएम पद की शपथ लेने के बाद ममता बैनर्जी मीडिया से मुखातिब हुई थी। इस दौरान उन्होंने सात नामों का जिक्र किया था और यह सातों नाम अपने अपने प्रांत में भाजपा के लिए कड़ी चुनौती देने का वजूद रखते हैं। माना जा रहा है कि अगर ये क्षत्रप किसी भी रूप में ममता की छांव में हो तो मोदी के विकल्प के रुप में दीदी को पीएम की कुर्सी तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
राजनीति में किसी भी प्रकार की संभावना से इंकार करना बेमानी होगा,क्योंकि कब कौन,किसके गले लग जाए इसका कुछ अंदाजा नहीं होता। यानी यहां कुछ स्थाई नहीं है। इस बात का जिक्र इसलिए भी कर रहे हैं कि जो ममता बैनर्जी कांग्रेस छोड़ कर अपने राजनीतिक बैनर तले तीसरी बार बंगाल की सीएम बनकर कांग्रेस को हाशिए पर पहुंचा चुकी है। उसी ममता की सरकार की बेहतरी के लिए कांग्रेसी दिग्गज कैप्टन अमरिंदर सिंह और हरियाणा में दो बार सीएम रह चुके भूपेंद्र सिंह हुड्डा फोन करके यह जता चुके हैं। इन दो नेताओं के अलावा यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव,ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक,महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे,दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के अलावा दक्षिण के सुपर स्टार रजनीकांत वे बड़े चेहरे हैं,जिनका ममता ने नाम लेकर मीडिया में बताया कि इन्होंने उन्हें फोन पर बधाई के साथ यह भी कहा है कि वे बेहतरी के लिए उनके साथ है।
यह बताना जरूरी हो जाता है कि इनमें अखिलेश,पटनायक,केजरीवाल,उद्धव ठाकरे उन दिग्गजों में आते हैं जो अपनी पार्टी के सर्वेसर्वा हैं,यानी पार्टी लाइन से आगे आकर बात करना उनके लिए किसी प्रकार की कोई चुनौती नहीं,यानी ये चार नेता स्वयं में जो निर्णय लें,वही फुल एंड फाइनल। मगर बात करें कैप्टन अमरिंदर सिंह और भूपेंदर सिंह हुड्डा की, तो वे ममता को बेहतरी की बात कहीं अपनी बेहतरी के लिए या पार्टी पर प्रेशरटेक्नीक में तो नहीं कह गए। अगर यही है तो यह केवल भाजपा ही नहीं,बल्कि कांग्रेस के लिए भी खतरे की घंटी है। वाजिब तौर पर कहा जा सकता है कि कैप्टन और हुड्डा अपने अपने प्रांत में बड़ा उलटफेर करने की ताकत रखते हैं।
ममता दीदी ऐसे क्षत्रपों से पींग बढ़ाकर कहीं कोई और बड़ा उलटफेर के मूड में तो नहीं है ? राजनीतिक गलियारों में यही अटकलें पिछले कुछ घंटों से जोर पकड़ रही है। पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों से लेकर नतीजों तक मुख्यधारा के मीडिया में छाई रही ममता बैनर्जी का शपथ ग्रहण समारोह के बाद मीडिया से की गई बातचीत में छह राजनेताओं के नाम लेकर दीदी ने राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है।
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा अब आम हो चली है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे मजबूत राजनेता को टक्कर देश में अगर कोई नेता या नेत्री दे सकती है तो,उन राजनेताओं में पहला बड़ा नाम अब ममता दीदी का लिया जाने लगा है। बात करें तो उन सात नामों की,जिन्होंने ममता बैनर्जी को बधाई प्रेषित करने के साथ बेहतरी के लिए सहयोग करने की बात कही है, उनमें कैप्टन,पटनायक,उद्धव,अखिलेश,केजरीवाल,हुड्डा और रजनीकांत वे चेहरे हैं,जिनकी वर्तमान राजनीतिक समीकरण भाजपा से मेल नहीं खाते।
दक्षिण के सुपर स्टार रजनीकांत वैसे तो इसी साल अपना खुद का राजनीतिक दल लांच करने की घोषणा कर चुके थे,मगर किन्हीं कारणों से उन्होंने राजनीतिक दल बनाने की घोषणा से यू टर्न ले लिया था। रजनीकांत के अलावा छह दिग्गज राजनेता भाजपा के धुरविरोधी संगठनों में सक्रिए हैं। यह बात अलग है कि नवीन पटनायक की राजनीति अभी तक ना काहू से दोस्ती,ना काहू से बैर की बजाए ओडिशा की भलाई पर ही केंद्रित है। इससे इतर एक जमाने में पटनायक भी ममता बैनर्जी के साथ एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं,जबकि एनडीए के पुराने साथी शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के भी भाजपा से रिश्ते अब पहले वाले नहीं हैं और उनका नाम भी अब भाजपा विरोधियों की श्रृंखला में शामिल है।
अब बात करें हरियाणा के पूर्व सीएम हुड्डा या पंजाब के वर्तमान सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह तो यह दोनों कांग्रेस की गुटबाजी से व्यथित हैं। इनके द्वारा कांग्रेस अलग होकर अपनी पार्टी बनाने की चर्चाएं समय समय पर हवा लेती रहती हैं। हरियाणा में कांग्रेस के कई गुट बने हुए हैं,जबकि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुमारी शैलजा के साथ भी हुड्डा के राजनीतिक संबंध उतने बेहतर नहीं है,जितने किसी मजबूत संगठन के प्रदेशाध्यक्ष और अपनी ही पार्टी के नेता प्रतिपक्ष के बीच होने चाहिए। कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर के जमाने से हरियाणा में कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा गौण है। इसका खामियाजा 2014 और 2019 में कांग्रेस भुगत चुकी है।
इसी साथ भूपेंद्र सिंह हुड्डा का नाम जी-23 में भी शामिल है,जो आगे पीछे कांग्रेस हाईकमान की कार्यप्रणाली की अलोचना करते हैं। इसी वजह से पिछले वर्षों में कई बार हुड्डा द्वारा भी अपना राजनीतिक क्षेत्रीय दल बनाने की चर्चाएं राजनीतिक गलियारों में चलती हैं। इधर कुछ यही आलम पड़ौसी सूबे पंजाब का है। यहां कैप्टन की अपने ही पार्टी के मजबूत नेता एवं बहुचर्चित क्रिकेटर नवजोत सिंद्धू से के साथ छत्तीस का आंकड़ा बना हुआ है। यह दोनों नेता कई बार एक दूसरे को सार्वजनिक रुप से चुनौती तक दे चुके हैं,जबकि फरवरी 2022 में पंजाब विधानसभा के चुनाव होना तय है। कांग्रेस की बड़ी चूक यह मानी जा रही कि पार्टी आलाकमान ने दोनों प्रदेशों में गुटबंदी समाप्त कराने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की,जिसकी वजह से कैप्टन और हुड्डा के बारे में नया विकल्प तलाशने की संभवानाओं पर चर्चाएं चलती रहती हैं।