ये पहला ऐसा टूल है,जो डीपफेक डिटेक्शन प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर लाइव वीडियो कांफ्रैंसिंग के दौरान फरेबियों को पकड़ेगा
इस डिवाइस का परीक्षण हो चुका है और जल्द ही इसे बाजार में उतार दिया जायेगा
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रोपड़ और ऑस्ट्रेलिया मॉनाश यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने तैयार किया है ‘फेक-बस्टर’नामक का ये अनोखा डिटेक्टर
न्यूज डेक्स इंडिया
दिल्ली। वर्चुअल फरेबी चौकन्ना रहें,क्योंकि अब उनकी शामत आ गई है और भारत-आस्ट्रेलिया के तकनीकी। संस्थानों के सहयोग से पहला टूल ‘फेक-बस्टर’सॉफ्टवेयर तैयार किया है है। यह टूल डीपफेक डिटेक्शन प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर लाइव वीडियो कांफ्रैंसिंग के दौरान फरेबियों को पकड़ने में उपयोगी सिद्ध होगा।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रोपड़, पंजाब और मॉनाश यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया के अनुसंधानकर्ताओं ने ‘फेक-बस्टर’नामक एक ऐसा अनोखा डिटेक्टर ईजाद किया है, जो किसी भी ऑनलाइन फरेबी का पता लगा सकता है। विदित हो कि ऐसे फरेबी बिना किसी की जानकारी के वर्चुअल सम्मेलन में घुस जाते हैं। इस तकनीक के जरिये सोशल मीडिया में भी फरेबियों को पकड़ा जा सकता है, जो किसी को बदनाम करने या उसका मजाक उड़ाने के लिये उसके चेहरे की आड़ लेते हैं।
मौजूदा महामारी के दौर में ज्यादातर कामकाज और आधिकारिक बैठकें ऑनलाइन हो रही हैं। इस अनोखी तकनीक से पता लगाया जा सकता है कि किस व्यक्ति के वीडियो के साथ छेड़छाड़ की जा रही है या वीडियों कॉन्फ्रेंस के दौरान कौन घुसपैठ कर रहा है। इस तकनीक से पता चल जायेगा कि कौन फरेबी वेबीनार या वर्चुअल बैठक में घुसा है। ऐसी घुसपैठ अक्सर आपके सहकर्मी या वाजिब सदस्य की फोटो के साथ खिलवाड़ करके की जाती है।
फेक-बस्टर’विकास करने वाली चार सदस्यीय टीम के डॉ. अभिनव धाल ने कहा, “बारीक कृत्रिम बौद्धिकता तकनीक से मीडिया विषयवस्तु के साथ फेरबदल करने की घटनाओं में नाटकीय इजाफा हुआ है। ऐसी तकनीकें दिन प्रति दिन विकसित होती जा रही हैं। इसके कारण सही-गलत का पता लगाना मुश्किल हो गया है, जिससे सुरक्षा पर दूरगामी असर पड़ सकता है।”डॉ. धाल ने भरोसा दिलाया, “इस टूल की सटीकता 90 प्रतिशत से अधिक है।”अन्य तीन सदस्यों में से एसोसिएट प्रोफेसर रामनाथन सुब्रमण्यन और दो छात्र विनीत मेहता तथा पारुल गुप्ता हैं।
इस तकनीक पर एक पेपर ‘फेक-बस्टरः ए डीपफेक्स डिटेक्शन टूल फॉर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सीनेरियोज़’को पिछले महीने अमेरिका में आयोजित इंटेलीजेंट यूजर इंटरफेस के 26वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में पेश किया गया था। डॉ. धाल का कहना है कि फेक-न्यूज के प्रसार में मीडिया विषयवस्तु में हेरफेर की जाती है। यही हेरफेर पोर्नोग्राफी और अन्य ऑनलाइन विषयवस्तु के साथ भी की जाती है, जिसका गहरा प्रभाव पड़ता है।
उन्होंने कहा कि इस तरह का हेरफेर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में भी होने लगा है, जहां घुसपैठ करने वाले उपकरणों के जरिये चेहरे के हावभाव बदलकर घुसपैठ करते हैं। यह फरेब लोगों को सच्चा लगता है, जिसके गंभीर परिणाम होते हैं। वीडियो या विजुअल हेरफेर करने को ‘डीपफेक्स’कहा जाता है। ऑनलाइन परीक्षा या नौकरी के लिये होने वाले साक्षात्कार के दौरान भी इसका गलत इस्तेमाल किया जा सकता है।यह सॉफ्टवेयर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सॉल्यूशन से अलग है और इसे ज़ूम और स्काइप एप्लीकेशन पर परखा जा चुका है।
डीपफेक डिटेक्शन टूल ‘फेक-बस्टर’ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों तरीके से काम करता है। इसे मौजूदा समय में लैपटॉप और डेस्कटॉप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके बारे में एसोसिएट प्रोफेसर सुब्रमण्यन का कहना है,“हमारा उद्देश्य है कि नेटवर्क को छोटा और हल्का रखा जाये, ताकि इसे मोबाइल फोन और अन्य डिवाइस पर इस्तेमाल किया जा सके।”उन्होंने कहा कि उनकी टीम इस वक्त फर्जी ऑडियो को पकड़ने की डिवाइस पर भी काम कर रही है।
टीम का दावा है कि ‘फेक-बस्टर’सॉफ्टवेयर ऐसा पहला टूल है, जो डीपफेक डिटेक्शन प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके लाइव वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान फरेबियों को पकड़ता है। इस डिवाइस का परीक्षण हो चुका है और जल्द ही इसे बाजार में उतार दिया जायेगा।