देश की आजादी,दलितों के अधिकार और पर्यावरण संरक्षण के लिए आंदोलनों में जीवनभर आगे रहे बहुगुणा
1981 में बहुगुणा ने पद्मश्री पुरस्कार यह कहकर लेने से मना कर दिया था कि जब तक पेड़ों का कटान नहीं रुकेगा तब तक पुरस्कार नहीं लेंगे
न्यूज डेक्स इंडिया
ऋषिकेश। वृक्षमित्र के नाम से दुनियाभर में ख्याति प्राप्त करने वाले चिपको आंदोलन के प्रणेता और दलितों को मंदिरों में सम्मानपूर्वक प्रवेश के लिए लड़ाई लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानी,पद्मभूषण 94 वर्षीय सुंदरलाल बहुगुणा ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में अंतिम सांस ली। उन्हें 8 मई को ऋषिकेश एम्स में उपचार के लिए दाखिल कराया गया था।
यहां उनका कोविड का उपचार चल रहा था। शुक्रवार को एम्स के जनसंपर्क अधिकारी हरीश मोहन थपलियाल ने स्वतंत्रता सेनानी बहुगुणा के निधन की जानकारी दी।उन्होने बताया कि बहुगुणा एम्स के आईसीयू में लाइफ सपोर्ट पर थे। उनके रक्त में ऑक्सीजन की परिपूर्णता का स्तर बीती शाम से नीचे आ रहा था, निरंतर निगरानी के दौरान शुक्रवार करीब 12 बजे दुपहर को उन्होंने अंतिम सांस ली। निधन के समय स्वर्गीय बहुगुणा के पुत्र राजीव नयन बहुगुणा एम्स में मौजूद थे।
स्वतंत्रता सेनानी, पर्यावरणविद स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा का अंतिम संस्कार ऋषिकेश गंगा तट पर शुक्रवार को राजकीय सम्मान के साथ होगा। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,उत्तराखंड के सीएम तीर्थ सिंह रावत सहित देश दुनिया से उनके निधन को एक बड़ी क्षति बताया जा रहा है। ऋषिकेश एम्स के निदेशक प्रो. रविकांत ने पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के निधन को उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए अपूरणीय क्षति बताया।
अपने जीवनकाल में देश की आजादी से लेकर दलितों के अधिकार एवं पर्यावरण संरक्षण जैसे ज्वलंत मुद्दों पर सुंदरलाल बहुगुणा ने लंबी लड़ाई लड़ी। बहुगुणा ना केवल भारत में,बल्कि विदेशों में भी प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के बड़े प्रतीक रहे। वनों को बचाने के लिए साल 1972 में उनके द्वारा चलाया गया चिपको आंदोलन आज भी याद किया जाता है।
सुन्दरलाल बहुगुणा का जन्म 1 जनवरी सन 1927 को देवों की भूमि उत्तराखंड के ‘मरोडा नामक स्थान पर एक ब्राह्मण परिवार में पंडित अंबादत्त बहुगुणा और माता हुआ था। यहां प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने बीए तक पढ़ाई लाहौर (वर्तमान के पाकिस्तान) में की।
1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद बहुगुणा ने दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए तथा उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा छात्रावास की स्थापना की। बहुगुणा ने दलितों का मंदिर प्रवेश में प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए भी आंदोलन किया था। अपनी धर्मपत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मंडल’ स्थापित किया और 1971में शराब के ठेको को बंद कराने के लिए 16 दिन तक अनशन किया था। उनके पुत्रों और पुत्री में राजीव नयन बहुगुणा, माधुरी पाठक, प्रदीप बहुगुणा है।
जीवनकाल में यह सम्मान और अवार्ड हुए हासिल
1981 में पद्मश्री पुरस्कार यह कहकर लेने से मना कर दिया था कि जब तक पेड़ों का कटान होता रहेगा तब तक यह पुरस्कार नहीं लेंगे।
• 1985 – जमनालाल बजाज पुरस्कार
• 1987 – राइट लाइवलीहुड पुरस्कार (चिपको आंदोलन के लिये)
• 1987 – शेर-ए-कश्मीर पुरस्कार
• 1987 – सरस्वती सम्मान
• 1989 – डॉक्टरेट ऑफ सोशल सांइसेज की मानद उपाधि, आई. आई. टी रूड़की द्वारा
• 1999 – गांधी सेवा सम्मान
• 2001 – पद्म विभूषण