सूचना विस्फोट के दौर में स्कूल स्तर पर शुरू हो मीडिया साक्षरता कार्यक्रम- प्रो अनुभूति
आर्यन/न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र,14 अगस्त। बपटियस यूनिवर्सिटी, हांगकांग की प्रोफेसर एलिस वाई ली ने कहा है कि इंटरनेट 21वीं सदी में सूचनाओं के महत्वपूर्ण स्रोत के साथ-साथ बूलिंग व ट्रोलिंग का सबसे बड़ा मंच है जिसका सबसे अधिक खामियाजा युवाओं व किशोरों को भुगतना पड रहा है। इंटरनेट मीडिया ट्रायल का किशोरों पर प्रभाव विषय पर अपने व्याख्यान में बोलते हुए कहा कि साईबर बूलिंग, बोक्सिंग, इंटरनेट पब्लिक ट्रायल के लोगों के जीवन पर सीधा असर पड रहा है। इंटरनेट के बढते व्यापक प्रभाव के कारण युवाओं को बॉडी शेमिंग, फैट शेमिंग जैसी समस्याओं का सामना करना पड रहा है जिसके कारण युवाओं में तनाव अवसाद जैसी समस्या निरंतर बढ रही हैं। सोशल मीडिया के कंटेंट को कैसे समझें इसके बारे में युवाओं को कोई समझ नहीं है। वे शुक्रवार को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के यूजीसी मानव संसाधन केन्द्र एवं जनसंचार एवं मीडिया प्रौद्योगिकी संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित रिफ्रेशर कोर्स में प्रतिभागियों को संबोधित कर रही थी।
प्रोफेसर ली ने कहा कि आज के किशोर ऑनलाइन बूलिंग व ट्रोलिंग का शिकार हो रहे हैं जिसका सीधा असर उनके व्यक्तित्व व्यवहार पर हो रहा है। उनके व्यवहार में आ रहे इन बदलाओं के प्रति अभिभावकों को गंभीर होने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी की इन कई समस्याओं का हल मीडिया साक्षरता में है। युवाओं को मीडिया साक्षर बनाकर यह समझाया जा सकता है कि वे मीडिया के संदेश को किस तरह से ग्रहण करें और उस पर किस तरह की प्रतिक्रिया दें। प्रोफेसर ली ने बताया कि दुनिया के कई देशों में मीडिया साक्षरता पर बडे व्यापक स्तर पर काम किया जा रहा है। भारत जैसे विशाल देश में भी मीडिया साक्षरता कार्यक्रम स्कूल स्तर पर पढाने की जरूरत है ताकि आने वाली पीढियों को सूचनाओं की विस्फोट व इससे होने वाले नुकसान से बचाया जा सके।
एक अन्य सत्र को संबोधित करते हुए भारतीय जनसंचार संस्थान की प्रोफेसर अनुभूति यादव ने कहा कि मीडिया साक्षरता वर्तमान समय की जरूरत है। झूठे एवं फेक समाचारों के इस दौर में मीडिया साक्षरता के माध्यम से ही लोगों को मीडिया साक्षरता के बारे में जागरूकता किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मीडिया के विस्तार के कारण सूचनाओं के विस्फोट ने स्थिति को भयावह बना दिया है। लेकिन चिंता कि बात है कि नई शिक्षा नीति में इस पहलू को कहीं न कहीं दरकिनार किया गया है। आज अनेक माध्यमों के जरिये लोगों तक सूचनाएं पहुंच रही हैं जिसके कारण विश्वसनीय सूचनाएं कहां व किस माध्यम से मिले इसको लेकर लोग भ्रमित हैं। उन्होंने कहा कि देश में मीडिया साक्षरता को बढावा देने के लिए स्कूल स्तर पर पाठयक्रम, मीडिया क्लब, सिनेमा सहित छोटी-छोटी कार्यशालाओं व प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से आम लोगों तक पहुंचने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि एनसीईआरटी इस दिशा में पिछले कई वर्षों से कार्य कर रहा है लेकिन नई तकनीक के कारण सूचनाएं जिस तेजी के साथ लोगों तक पहुंच रही हैं उस गति के साथ मीडिया साक्षरता के लिए तैयारियां नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में अब मीडया साक्षरता पर चर्चा चल रही है। पिछले कई वर्षों से इस विषय पर देश व दुनिया के कई विश्वविद्यालय पर शोध हुआ है। इसके माध्यम से हम भविष्य के लिए तैयारियां कर सकते हैं ।
उन्होंने कहा कि फेक समाचारों से लडने के लिए फैक्ट चैकिंग के लिए गूगल फेसबुक जैसी कंपनियां लोगों को प्रशिक्षित कर रही हैं। इसका फायदा आम आदमी को पहुंचा है। अब ऐसी कई वैबसाइट हैं जो इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं। समाचार कक्षों में फैक्ट चैकिंग डैस्क बने हैं। नई तकनीक के माध्यम से अब फेक समाचारों से भी लडा जा रहा है। उन्होंने मीडिया शिक्षकों से आहवान किया कि वे मीडिया के विद्यार्थियों में आलोचनात्मक नजरिया विकसित करें व उन्हें नई तकनीक का प्रशिक्षण जरूर दें ताकि भविष्य की चुनौतियों से लडा जा सके। एक अन्य सत्र में दि ट्रिब्यून की एसिसटेंट एडिटर हरविन्द्र खेतल ने कोविड-19 का भारतीय मीडिया जगत पर प्रभाव विषय पर अपनी बात रखी। संस्थान की निदेशिका प्रोफेसर बिंदु शर्मा ने वक्ताओं का स्वागत किया व डॉ. अशोक कुमार ने सभी का धन्यवाद किया।