Monday, November 25, 2024
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‘शिक्षा और संस्कृति का अन्तःसंबंध विषय पर व्याख्यान का आयोजन

by Newz Dex
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न्यूज डेक्स संवाददाता

कुरुक्षेत्र, 18 अगस्त। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा मंगलवार को ‘शिक्षा और संस्कृति का अन्तःसम्बन्ध’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। संस्थान द्वारा आयोजित नौवें व्याख्यान में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में शिक्षा विभाग के प्रोफेसर डाॅ. प्रेम नारायण सिंह मुख्य-वक्ता रहे। संस्थान के निदेशक डाॅ. रामेन्द्र सिंह ने अतिथि परिचय कराते हुए बताया कि डाॅ. प्रेम नारायण संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी में ही अनेक विभागों में डीन, हैड, चेयरमैन आदि पदों को सुशोभित कर चुके हैं। शिक्षा देने के साथ उनका अनेक वर्षों का प्रशासनिक अनुभव भी रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों को और गहराई से समझने के लिए संस्थान द्वारा अनेक महापुरुषों के व्याख्यान आयोजित किए जाते हैं। ये व्याख्यान प्रत्येक मंगलवार को प्रातः 11 बजे यूट्यूब चैनल वीबीएसएसएस केकेआर पर प्रसारित होते हैं।
मुख्य-वक्ता प्रोफेसर प्रेम नारायण सिंह ने कहा कि उन्होंने कहा कि शिक्षा और संस्कृति का घनिष्ठतम संबंध है। एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती। किसी भी संस्कृति के तत्वों का संरक्षण, उसकी उन्नति, विकास और उसकी व्यापकता शिक्षा पर ही निर्भर करती है। किसी भी समाज की सांस्कृतिक चेतना जो युगों में एक निश्चित स्वरूप ग्रहण कर पाती है, वह बहुमूल्य निधि है जिसका संरक्षण शिक्षा द्वारा ही संभव है क्योंकि संस्कृति शिक्षा को दिशा देती है, वहीं शिक्षा संस्कृति को या समाज को एक सुसंस्कृत व्यक्तित्व देती है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक समाज अपनी सभ्यता, संस्कृति को बनाए रखने अर्थात उसका संवर्द्धन करने, उसके परिवर्द्धन, परिमार्जन तथा उन्नयन के लिए शिक्षा की व्यवस्था करता है। इसके माध्यम से नई पीढ़ी को अपने आदर्शों, मान्यताओं तथा मूल्यों के अनुरूप प्रशिक्षित करता है। समाज शिक्षा के माध्यम से अपनी उपलब्धियां, विरासत नई पीढ़ी को सौंपता है। इस प्रकार वह अपनी निरंतरता और सतत् जीवंतता बनाए रखता है। इसे ही सांस्कृतिक हस्तांतरण भी कहते हैं।
डाॅ. प्रेम नारायण सिंह ने कहा कि आदिकाल से ही शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य व्यक्ति को सांस्कृतिक मानकों के अनुरूप व्यवहार करने की योग्यता प्रदान करता है। व्यक्ति तथा समाज के समुचित विकास के लिए शिक्षा संस्थाओं तथा बाहर के परिवेश में संस्कारों की भूमिका और संस्कारों की दृष्टि से स्वस्थ सामंजस्य आवश्यक है क्योंकि संस्कृति संपूर्ण जीवन का परिष्कार और निर्माण है। उन्होंने शिक्षा की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा कि शिक्षा शब्द का अर्थ है सीखना। विद्या प्राप्त करना, ज्ञान प्राप्त करना तथा सिखाना भी। शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है जो व्यक्ति को उसकी नैसर्गिक शक्तियों के विकास में सहायता पहुंचाती हैं तथा वातावरण के साथ समायोजन स्थापित करने में सहायता प्राप्त करती हैं। शिक्षा लिखने-पढ़ने का ज्ञान देने के साथ व्यक्ति के आचरण, विचार के तरीके में भी परिवर्तन करती है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा का सीधा अर्थ सुसंस्कारिता का प्रशिक्षण है। परम्परा से प्राप्त विचार, मूल्य, कला, शिल्प, वस्तुएं सभी संस्कृति के अंग हैं। संस्कृति सामाजिक व्यवहार का अंग है, अनेक प्रकार की शिक्षा द्वारा प्राप्त गुणों का समुदाय है। मन और आत्मा की संतुष्टि के लिए किए जाने वाले प्रयासों का समन्वय है, जीवन की पूर्णता का अध्ययन है। वस्तुतः संस्कृति व्यक्ति के चारित्रिक गुणों का वह सम्मिश्रण है जो व्यक्ति अपने कार्यों से प्राप्त करता है। इस प्रकार संस्कृति मानवीय संगठन का सार है। व्यक्ति का संस्कार, समाज में उसकी सामाजिक संस्कृति के अनुरूप शिक्षा के माध्यम से होता है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा को संस्कृति से और संस्कृति को सभ्यता से अलग करके देखना उचित नहीं होगा। जिस प्रकार व्यक्ति के विकास की संकल्पना शिक्षा के बिना नहीं हो सकती, उसी प्रकार संस्कृति भी बिना सभ्यता के नहीं हो सकती। सभ्यता जीवन का वह संगठन है जिससे शिष्ट समाज का अस्तित्व ही संभव नहीं। व्यक्ति के विकास के लिए ऐसे शिष्ट समाज की आवश्यकता है। सभ्यता समाज का संगठन है जिससे संस्कृति के निमित्त परिस्थितियां पैदा होती हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृति में हस्तांतरित होने का गुण होता है जोकि शिक्षा के माध्यम से होता है। संस्कृति किसी समूह का आदर्श होती है। इसमें सामाजिकता और अनुकूलन का भी गुण होता है। भारतीय संस्कृति के संदर्भ में तो यह बात सटीक बैठती है। बहुत सी संस्कृतियां यहां आईं और भारतीय संस्कृति में घुल-मिल गईं। यह वजह अनुकूलन की ही थी और यही भारतीय संस्कृति की विशेषता है। व्याख्यान के अंत में संस्थान के निदेशक एवं व्याख्यानमाला संयोजक डाॅ. रामेन्द्र सिंह ने बताया कि वर्तमान में लागू हुई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को समाज को समझने में आसानी हो, इस हेतु आगामी दो व्याख्यान ‘राष्ट्रीय षिक्षा नीति-2020 का क्रियान्वयन-हमारी भूमिका’ एवं ‘राष्ट्रीय षिक्षा नीति का विद्यालय स्तर पर क्रियान्वयन’ रहेंगे। उन्होंने अतिथि एवं देशभर से जुड़े सभी श्रोताओं का धन्यवाद किया और सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना के साथ व्याख्यान का समापन हुआ।

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