रेडियो ग्रामोदय के कार्यक्रम ‘जय हो’ में श्रम कानून एवं बच्चों के शोषण पर चर्चा
न्यूज डेक्स संवाददाता
करनाल। बाल श्रम अभिशाप है। यह सामाजिक अपराध भी है। बाल श्रम होता देख कर भी चुप रहना इस कृत्य में बराबर का भागीदार होने जैसा है। इसलिए संवेदनशील बनें और इसके खिलाफ आवाज उठाएं। आप चाहें तो गुमनाम रहकर भी 1098 पर ऐसे मामलों की सूचना दे सकते हैं। बच्चों का उत्पीड़न करना अपराधी को पैदा करने जैसा है क्योंकि बड़ा होने पर ऐसे बच्चों के अपराध की ओर उन्मुख होने की संभावना ज्यादा होती है। इसलिए, सजग नागरिक का कर्तव्य निभाएं।
रेडियो ग्रामोदय के कार्यक्रम ‘जय हो’ में बाल श्रम कानून एवं बच्चों के शोषण पर विषय पर हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान और हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त श्रमायुक्त अनुपम मलिक के बीच चर्चा के दौरान उभर कर सामने आए। दोनों इस बात पर एकमत थे कि यदि कोई हमारा परिचित या मित्र भी बाल शोषण में शामिल हो, तो उसे टोकना हमारा धर्म है।
डॉ. चौहान ने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि तमाम सख्ती और कानून के बावजूद बाल श्रम एवं शोषण का देश में अब तक उन्मूलन नहीं हो सका है। अनुपम मलिक ने उनकी बात से सहमति जताते हुए कहा कि यद्यपि बाल श्रम एवं शोषण के मामले पहले के मुकाबले काफी कम हुए हैं, फिर भी पूरी तरह यह आज भी खत्म नहीं हो सका है।
अनुपम मलिक ने बताया कि बाल श्रम के खिलाफ वर्ष 2006-2007 में श्रम विभाग की ओर से एक मुहिम चलाई गई थी जिसके तहत ऐसे मामलों के सर्वेक्षण का काम शुरू किया गया था। श्रम निरीक्षकों को कैमरे भी दिए गए थे। ताबड़तोड़ छापों का सिलसिला शुरू किया गया था। इससे बाल शोषण में काफी कमी आई। चंडीगढ़ और दिल्ली के बीच हाईवे पर स्थित सैकड़ों ढाबों में बाल श्रम एवं उत्पीड़न के अनगिनत मामले थे, लेकिन विभाग की सख्ती के बाद बाल शोषण के मामले अब वहां नगण्य के बराबर हैं। ढाबों, दुकानों एवं फैक्ट्रियों से छुड़ाए गए बाल श्रमिकों के पुनर्वास के लिए हरियाणा के फरीदाबाद, यमुनानगर और पानीपत में बाल पुनर्वास केंद्र बनाए गए थे।
अनुपम मलिक के अनुसार यमुनानगर, पानीपत और फरीदाबाद के मामलों में अलग-अलग सोच देखी गई। फरीदाबाद में जहां मां-बाप ही अपने बच्चों को मारपीट कर कारखानों में काम करने के लिए भेजते थे, वहीं यमुनानगर में लोग यूपी से आकर अपने बच्चों को फैक्ट्री मालिकों के पास गिरवी रख जाया करते थे। विभाग ने ऐसे मां-बाप के खिलाफ भी सख्ती की और उन्हें पकड़ना शुरू किया। इसके बाद ऐसे मामलों पर तेजी से अंकुश लगा और बाल श्रम लगभग समाप्ति के कगार पर पहुंचा। लेकिन पानीपत का मामला अलग ही है।
डॉ. चौहान ने पूछा कि भारतीय कानून में बाल श्रम की परिभाषा क्या है और इसके दायरे में कितने साल तक के बच्चे आते हैं? बाल श्रम के खिलाफ दंड के क्या प्रावधान हैं? पूर्व श्रम आयुक्त अनुपम मलिक ने बताया कि अब 16 वर्ष तक के बच्चों को बाल श्रम कानून के दायरे में रखा गया है। पहले यह सीमा 14 वर्ष तक थी। 16 से 18 वर्ष के बच्चे किशोर वय से ऊपर के माने जाते हैं और उन्हें काम का प्रशिक्षण लेने की अनुमति दी गई है।18 वर्ष से ऊपर के बच्चों को वयस्क माना गया है।
उन्होंने बताया कि बाल श्रम पर अंकुश लगाने में सुप्रीम कोर्ट का बहुत बड़ा योगदान है। यदि कोई नियोक्ता 16 वर्ष से कम उम्र के नाबालिग बच्चों से काम करवाता पकड़ा जाता है, तो बाल श्रम कानून के तहत दंडात्मक कार्रवाई के अतिरिक्त अतिरिक्त उसे ₹50000 का जुर्माना भी भुगतना होगाजो उस बच्चे के कल्याण के लिए बाल कल्याण कोष में जमा कराया जाएगा। इस कोष में सरकार भी अपनी तरफ से पैसे जमा करती है। बाल श्रम के मामलों की सूचना देने के लिए एक हेल्पलाइन नंबर 1098 भी जारी किया जा चुका है, जिस पर अपनी पहचान उजागर न करते हुए भी सूचना दी जा सकती है। इस नंबर से शिक्षा विभाग, महिला एवं बाल कल्याण विभाग, पुलिस विभाग और श्रम विभाग जुड़े हुए हैं।
बाल श्रम और बढ़ा रहा गरीबी
डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि अक्सर कहा जाता है ग़रीबी के कारण बाल श्रम होता है मगर विशेषज्ञ इसके विपरीत राय रखते हैं। अनुपम मलिक ने जोर देकर कहा कि बाल श्रम का कारण गरीबी नहीं, बल्कि यह एक धंधा बन गया है। बाल श्रम गरीबी के कारण नहीं, बल्कि कम खर्च में ज्यादा मुनाफा कमाने के उद्देश्य से कराया जा रहा है। बाल श्रम से गरीबी और बढ़ रही है क्योंकि एक बाल श्रमिक एक वयस्क की नौकरी छीनता है। बाल श्रम के खिलाफ अन्य देशों के मुकाबले भारत का कानूनी ढांचा कितना मजबूत है? डॉ. चौहान के इस सवाल पर मलिक ने कहा कि भारतीय कानून का स्तर किसी से कम नहीं है। पहले के मुकाबले अब कानून काफी सख्त हो गया है। किसी आरोपी के पकड़े जाने पर अब उसका कानून के फंदे से छूटना बहुत मुश्किल है। श्रम कानून का सूत्र वाक्य है -निर्दोष साबित होने से पहले तक आप दोषी हैं।