हिमाचल के गवर्नर ने उठाया था वाकर अस्पताल का मुद्दा, नीचे पढ़े वाकर सवा सौ साल पुराने वाकर अस्पताल का इतिहास
इसे शिमला नगर पालिका के 1873-1874 में अध्यक्ष रह चुके बैंकर सर जेम्स वॉकर के 1902 में उपहार स्वरुप भेंट किया था
अस्पताल की स्थापना के पूरे 100 साल बाद दिसंबर 1998 में वाकर अस्पताल में लग गई थी आग
नरवणे से भेंट में राज्यपाल ने चीन से सटे प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर दिया बल
न्यूज डेक्स हिमाचल
शिमला। चीफ आफ आर्मी स्टाफ जनरल एमएम नरवणे ने हिमाचल दौरे पर थे। उन्होंने इस दौरान दौरान हिमाचल राजभवन में राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय से भेंट की। अपनी शिष्टाचार भेंट में उन्होंने सेना और हिमाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों के विकास से जुड़े कई मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की। चीफ आफ आर्मी स्टाफ के साथ बातचीत के दौरान राज्यपाल ने चीन से लगते प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर बल दिया। उन्होंने कहा कि सेना की सड़कों, हेलीपैड और अन्य अधोसंरचना के विकास में अहम भूमिका है।
सीमा से लगते गांवों के युवा रोजगार के अवसरों की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, जो चिंता का विषय है। हमें स्थानीय स्तर पर स्वरोजगार और रोजगार की संभावनाओं का पता लगाना चाहिए। श्री दत्तात्रेय ने कहा कि हिमाचल प्रदेश के निचले क्षेत्रों के लगभग हर घर से युवा भारतीय सेना में सेवाएं दे रहे हैं और पूर्व सैनिकों की संख्या भी काफी अधिक है।
उन्होंने सेना प्रमुख के समक्ष शिमला के वाकर अस्पताल का मुद्दा भी उठाया। जनरल नरवणे ने कहा कि वह पहले शिमला में आरट्रैक में सेवाएं प्रदान कर चुके हैं और हिमाचल को अपना पुराना घर मानते हैं और यहां आकर उन्हें हमेशा खुशी मिलती है। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना दुश्मन की हर नापाक कोशिश का मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है।
उन्होंने कहा कि जहां तक चीन के साथ सीमा का सवाल है, इस विषय में बातचीत हो रही है और चिंता की कोई बात नहीं है। उन्होंने कहा कि सेना पूरी तरह से सतर्क है और सीमा पर बड़े पैमाने पर पर्याप्त संख्या में सैनिक और मशीनरी तैनात की गई है। उन्होंने कहा कि सेना ने सीमावर्ती इलाकों में सड़कों के निर्माण के लिए आगामी 5 से 10 वर्षो के लिए योजना तैयार की गई है।
उन्होंने कहा कि इससे इन क्षेत्रों के विकास में सहायता मिलेगी और युवाओं का पलायन भी रुकेगा। जनरल नरवणे ने कहा कि युवाओं में सेना के प्रति काफी उत्साह है और बड़ी संख्या में युवा सेना में भर्ती होने के लिए तैयार हैं। देश के हर जिले को सेना में प्रतिनिधित्व प्रदान करने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने आश्वासन दिया कि शीघ्र शिमला के वाकर अस्पताल को शुरू करने के प्रयास किये जाएंगे।
उन्होंने कहा कि सेना ने कोरोना से संबंधित कड़े दिशा-निर्देशों का पालन किया, जिसके फलस्वरूप सीमा पर तैनात सेना के जवानों में कोरोना के मामले न के बराबर हैं। उन्होंने कहा कि इस महामारी की व्यापक स्तर पर जांच सुनिश्चित की गई और अवकाश पूरा होने के बाद आने वाले सैनिकों की दो बार जांच करवाई गई और यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि वह 14 दिनों की क्वारंटीन अवधि पूर्ण करें। जनरल नरवणे ने सीमावर्ती क्षेत्रों में नशे के आतंकवाद पर भी चिंता व्यक्त की और कहा कि स्थानीय स्तर पर प्रशासन इस दिशा में बेहतर काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि महिला अधिकारी पहले से ही सेना में सेवाएं प्रदान कर रही हैं। अब उनकी सेना पुलिस के कोर में भर्ती शुरू कर दी गई है और प्रतिक्रिया उत्साहजनक है। चीफ आॅफ आर्मी स्टाफ ने राजभवन परिसर में चिनार (प्लैटनस ओरिएंटलिस) का एक पौधा भी रोपित किया।
यह वाकर अस्पताल का इतिहास
1902 में यूरोपीय लोगों के लिए 20 बिस्तरों वाले वॉकर अस्पताल की शुरुआत हुई थी,यानी इस अस्पताल का इतिहास करीब सवा सौ साल पुराना है।इसे शिमला नगर पालिका के अध्यक्ष रह चुके बैंकर सर जेम्स वॉकर के बनवाया कर उपहार स्वरुप भेंट किया था, एक स्वावलंबी अस्पताल था। जहां मरीजों को तब उनकी देखभाल के लिए प्रति दिन 5 रुपये का भुगतान करना होता था,जबकि गरीबों का मुफ्त इलाज किया जाता था। अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ने के कारण बाद में अस्पताल का विस्तार कर 40 बिस्तर की सुविधा वाला तैयार किया गया था,मगर दुर्भाग्यवश पूरे 100 साल बाद 22 दिसंबर 1998 की रात को इस अस्पताल की इमारत में आग लग गई और यह अस्पताल पूरी तरह से जलकर खाक हो गया था। बाद में भारतीय सेना ने इसी स्थान पर नई भवन की योजना तैयार की थी,क्योंकि 2007 में लेफ्टिनेंट जनरल एस मुखर्जी, एवीएसएम, महानिदेशक, चिकित्सा सेवा, ने इस जगह का निरीक्षण किया था और लोगों को आश्वासन दिया कि 2011 तक पूरा कर लिया जाएगा,मगर अभी तक यह अस्पताल अधूरा है।