गणपति के समक्ष रखी हर चिंता व दुःख का समाधान अवश्य ही होता है – ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र, 23 अगस्त। ब्रह्मसरोवर के तट पर श्री जयराम विद्यापीठ में श्री गणेश महोत्सव के अवसर पर दूसरे दिन भी विद्वान ब्राह्मणों एवं आचार्यों द्वारा जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी से विधिवत मंत्रोच्चारण के साथ श्री गणपति पूजन करवाया गया। ब्रह्मचारी ने सर्वकल्याण की भावना सेगणपति श्री गणेश के समक्ष हाजरी लगाई और मानव समाज को कोरोना महामारी से मुक्ति की भी कामना की।
उन्होंने कहाकि श्री गणपति के समक्ष सच्चे मन से कोई भी चिंता व दुःख व्यक्त की जाए उसका समाधान अवश्य ही होता है। प्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश की महिमा अपरम्पार है। गणपति बप्पा अपने जितने भी रूपों में जहां भी दर्शन दें, भक्त को उसका लाभ ही होता है। ब्रह्मचारी ने कहाकि गणपति के प्रत्येक रूप का अपना अलग ही महत्व है। उन्होंने बताया कि श्री गणेश महोत्सव देश के स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा है। गणेश महोत्सव की शुरुआत 1893 में महाराष्ट्र से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की थी।
उन्होंने कहा कि 1893 के पहले भी श्री गणेश महोत्सव मनाया जाता था परन्तु वह सिर्फ घरों तक ही सीमित था। उस समय पंडाल नहीं बनाए जाते थे और ना ही सार्वजनिक तरीके से श्री गणेश विराजते थे। ब्रह्मचारी ने बताया कि लोकमान्य बाल गंगाधरतिलक उस समय एक युवा क्रांतिकारी और गर्म दल के नेता के रूप में जाने जाते थे। वे एक बहुत ही स्पष्ट वक्ता और प्रभावी ढंग से भाषण देने में माहिर थे। यह बात ब्रिटिश अधिकारी भी अच्छी तरह जानते थे कि अगर किसी मंच से तिलक भाषण देंगे तो वहां आग बरसना तय है।
उन्होंने बताया कि बाल गंगाधर तिलक स्वराज के लिए संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें ऐसा सार्वजानिक मंच चाहिए था, जहां से उनके विचार अधिकांश लोगों तक पहुंच सके। इस काम को करने के लिए उन्होंने श्री गणेश उत्सव को चुना और इसे सुंदर भव्य रूप दिया जिसे आज हम देखते हैं। इस तरह से श्री गणेश उत्सव ने भी आजादी की लड़ाई में एक अहम् भूमिका निभाई। रविवार को भी जयराम विद्यापीठ के मुख्य मंदिर में विराजमान श्री गणेश की भव्य प्रतिमा के समक्ष गणेश भजनों का गुणगान हुआ तथा आरती की गई।
इस मौके पर राजेंद्र सिंगल, श्रवण गुप्ता, एस एन गुप्ता, पवन गर्ग, के के कौशिक, टेक सिंह लौहार माजरा, खरैती लाल सिंगला, मोहन सिंह, राजेश सिंगला, यशपाल राणा, डा. अजय गोयल, डा. गीता गोयल, सतबीर कौशिक, रोहित कौशिक, आचार्य प. राजेश प्रसाद लेखवार शास्त्री, अशोक गर्ग व संजीव इत्यादि भी मौजूद थे।