रेडियो ग्रामोदय के जय हो कार्यक्रम में महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. समर सिंह से विशेष बातचीत
न्यूज डेक्स संवाददाता
करनाल। किसान की आय का निरंतर बढ़ना अत्यंत महत्वपूर्ण है । किसानी की लागत निरंतर बढ़ रही है, जिससे जोत का लाभ या प्रति एकड़ लाभ अपेक्षाकृत घट रहा है। यह चिंता का विषय है । बागवानी खेती से जुड़ा वह क्षेत्र है जिसमें अपार संभावनाएं मौजूद हैं। बागवानी न केवल भूमि की सेहत , पानी के स्तर आदि का ध्यान रखती है बल्कि किसान की जेब का भी पूरा पूरा ध्यान रखती है। यह तथ्य हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष और प्रदेश भाजपा प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान की रेडियो ग्रामोदय के जय हो कार्यक्रम में महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. समर सिंह से हुई वार्ता में सामने आए।
विश्वविद्यालय और बागवानी से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर आधारित इस चर्चा में कुलपति डॉ. समर सिंह ने कहा कि हरियाणा में बागवानी विश्वविद्यालय की स्थापना मुख्यमंत्री मनोहर लाल व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरगामी सोच का परिणाम है। चार क्षेत्रीय केंद्रों के माध्यम से महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय प्रदेश के सभी किसानों तक बागवानी के लाभ व शिक्षा को पहुंचाने के लिए तत्पर है। पाठ्यक्रम कक्षाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर के बारे में डॉ. समर ने बताया कि विश्वविद्यालय कैंपस और विभिन्न क्षेत्रीय केंद्रों के कैंपस की बाउंड्री और पोली हाउस का कार्य लगभग पूरा हो चुका है। एमएससी हॉर्टिकल्चर और पीएचडी की कक्षाएं हिसार कृषि विश्वविद्यालय में चल रही हैं तथा पिछले सत्र से 4 वर्ष का बीएससी हॉर्टिकल्चर कार्यक्रम नीलोखेड़ी में प्रारंभ हो चुका है। जैसे ही विश्वविद्यालय कैंपस में चल रहे निर्माण कार्य पूरे होते जाएंगे यहां पर भी सभी चीजें प्रारंभ हो जाएंगी।
ड्रिप सिंचाई से जुड़े एक प्रश्न के उत्तर में डॉक्टर ने कहा की ड्रिप सिंचाई से ना केवल पानी का बचाव होता है बल्कि फसल की पैदावार और गुणवत्ता में भी 10 से 15% की वृद्धि होती है। किसानों को हर संभव प्रयास कर ड्रिप सिंचाई का लाभ उठाना चाहिए । ड्रिप सिंचाई पर हरियाणा सरकार द्वारा 80% सब्सिडी भी प्रदान की जाती है।
अकादमी उपाध्यक्ष डॉ वीरेंद्र सिंह चौहान द्वारा पानी के गिरते स्तर से जुड़े एक सवाल के उत्तर में डॉक्टर ने कहा की है अत्यंत चिंता का विषय है हमें ध्यान रखना होगा कि हर साल पानी का स्तर 1 लीटर नीचे जा रहा है। ऐसा ही जारी रहा तो सोचिए कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या देंगे? जैसा बढ़िया पानी बहुतायत में हमने अपने बाप दादों से लिया था उसको बर्बाद कर हम आने वाली पीढ़ी के लिए पता नहीं कितनी विषम परिस्थितियों का निर्माण करेंगे? उन्होंने जल गिरते जल स्तर के साथ-साथ जमीन की बिगड़ती सेहत पर भी चिंता व्यक्त की ।
जैविक पदार्थ स्तर या ऑर्गेनिक मैटर या आम भाषा में जमीन का स्वास्थ्य फसल के अवशेष जलाने , यूरिया का बहुत जादा उपयोग करने और लगातार अनेकों वर्षों तक एक ही फसल को उगाते रहने से लगभग 4 गुणा कम हो गया है। इस संबंध में प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रमों की बहुत तेजी से आवश्यकता है। किसान को पानी की कमी और ऑर्गेनिक मैटर की बिगड़ती स्थिति को समझना होगा और इसके अनुसार ही फसल चक्र को अपनाना होगा। बागवानी को अपनाना इन समस्याओं के समाधान का एक बेहतरीन विकल्प है।
रोहतक निवासी प्रवीण धनखड़ की बागवानी संबंधी एक समस्या के उत्तर में डॉ. समर ने कहां की बागवानी के संबंध में सही निर्णय लेने के लिए सबसे ज्यादा मिट्टी की जांचआवश्यक है। बाग के लिए 2 या 3 मीटर तक की मिट्टी की जांच करानी आवश्यक है जबकि अन्य फसलों के लिए 15 सेंटीमीटर तक की मिट्टी की जांच कराई जानी चाहिए। मिट्टी की जांच के लिए किसान रोहतक , हिसार या करनाल में स्थित लैबोरेट्रीज जा सकता है और अब तो किसान के पास मोबाइल वैन का विकल्प भी मौजूद है।
पाठ्यक्रम से जुड़े पिंजौर के आशुतोष के प्रश्न के उत्तर में डॉक्टर समर ने बताया अति शीघ्र ही गैर साइंस विद्यार्थी अर्थात आर्ट्स और कॉमर्स के विद्यार्थियों के लिए भी डिप्लोमा कोर्स प्रारंभ किए जाएंगे। हरियाणा से बाहर के विद्यार्थियों के लिए भी कुछ सीटों की व्यवस्था है जिन पर टेस्ट के माध्यम से विद्यार्थी प्रवेश पा सकते हैं।
डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान के बागवानी में लोगों के रुझान और सफलता को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में डॉ. समर ने कहा कि करनाल और अंबाला से जुड़े क्षेत्र बागवानी के लिए अत्यंत उत्तम हैं । करनाल की जमीन अमरूद, आम , लीची और रसीले फलों के लिए अत्यंत उपयुक्त है। किसान बागवानी में आ रहे हैं और सफल भी हो रहे हैं । इस क्रम में उन्होंने जैनपुरा गांव के किसान साहिब सिंह और गोंदर के किसान केहर सिंह के एप्पल बेर के बाग का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि बागवानी का मन बनाने वाले किसान इन किसानों से मिल सकते हैं और घरौंडा व श्यामगढ़ में हरियाणा सरकार के बागवानी सेंटर में भी जा कर बागवानी तकनीकों को देख सकते हैं।
बागवानी के क्षेत्र के बारे में विस्तार से बताते हुए डॉ. समर ने कहा कि सभी फलदार पौधे , सभी सब्जियां, सभी चिकित्सीय पौधे, सभी प्रकार के फूलों की खेती, सजावट के पौधों की खेती, मशरूम तथा शहद की खेती भी बागवानी में शामिल है। उचित प्रशिक्षण प्राप्त कर बागवानी करने वाले एक किसान कि आय परंपरागत रूप से खाद्यान्नों की खेती करने वाले किसान की तुलना में अधिक होती है। इससे भी आगे अगर कोई किसान पढ़ा लिखा है तो अत्यंत आधुनिक तकनीक हाइड्रोगेमी और एरोगेमी का प्रशिक्षण ले सकता है। इसमें सीधे पानी और हवा के माध्यम से ही पौधे को पोषक तत्व दिए जाते हैं। खेती की इन नवीनतम तकनीकों का प्रयोग कर वह 10 गुना ज्यादा तक प्रोडक्शन प्राप्त कर सकता है । दोनों तकनीकों में पौधों में बीमारी बहुत कम होती है। प्रारंभिक स्तर पर तो ऐसा लगता है कि बहुत अधिक लागत लग रही है किंतु उत्पादन को देखते हुए निवेश तुलनात्मक रूप से ज्यादा नहीं होता। डॉ. समर ने कहा कि महाराणा प्रताप बगवानी विश्वविद्यालय इन अत्यंत आधुनिकतम तकनीकों से जुड़े शोध में विशेष ध्यान दे रहा है।
डॉ. चौहान द्वारा प्रोट्रैक्टेड फार्मिंग से जुड़े किसानों के बुरे अनुभव के बारे में पूछने पर डॉक्टर समर ने कहा की प्रोटेक्टिड फार्मिंग में वैज्ञानिक तकनीकों व उपकरणों के माध्यम से वातावरण के तापमान, नमी और अन्य कारकों को नियंत्रित कर खेती की जाती है। यह खेती सब्जियों और छोटे पौधों के लिए सर्वोत्तम है। इसके लिए पर्याप्त प्रशिक्षण और जानकारी की आवश्यकता है। पूरी जानकारी के बिना मात्र सब्सिडी का लाभ उठाने के उद्देश्य से अनेक किसानों ने बिना मिट्टी की जांच किए ढांचे खड़े किए और बाद में पता चला कि जमीन में सूत्र कृमि की समस्या है जिससे वह प्रोटेक्टेड फॉर्मिंग का लाभ पूरी तरीके से नहीं उठा पाए। वर्तमान में कांच का हाउस तैयार करने की बजाए सस्ते नेट हाउस का विकल्प भी मौजूद है। आंगन में बगिया बनाने वाले पनोधी, घरौंडा के किसान ओमपाल के कलम से फल के पौधे बनाने की तकनीक से जुड़े प्रश्न के उत्तर में डॉक्टर समर ने कहा की महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय में ही शीघ्र ही एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।
आगामी 5 वर्षों में बागवानी विश्वविद्यालय के माध्यम से किस प्रकार का परिवर्तन होगा इस पर प्रकाश डालते हुए डॉक्टर समर ने कहा फिर निश्चित रूप से बागवानी का एरिया जो अभी सवा 500000 एकड़ है वह 900000 एकड़ हो जाएगा इसके साथ साथ विश्वविद्यालय उच्च क्वालिटी की नर्सरी बीज और हाइब्रिड पौधों आधी आधी की व्यवस्था भी करेगी तथा बागवानी से संबंधित विभिन्न तकनीकों को लेकर युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करने पर विशेष जोर रहेगा। विश्वविद्यालय विशेष रूप से साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर फोकस करेगा जिससे रिसर्च किसानों तक पहुंच सके और किसान ज्यादा जागरूक और प्रशिक्षित होकर पानी और जमीन की सेहत बिगाड़े बिना अधिक से अधिक लाभ कमाए।वार्ता में ऑनलाइन माध्यम से मुकेश अग्रवाल, नरेंद्र गोंदर, अंकुश और तरसेम राणा ने भी वृक्षारोपण को ले अपने विचार व्यक्त किए।