महाराजा यशवंत राव (एमवाय) को मॉडल हॉस्पिटल के रूप में करेंगे विकसित – प्रभारी मंत्री डॉ. मिश्रा
1957 से सिंधिया राजपरिवार की सियासत और भारतीय राजनीतिक दलों में मौके की नजाकत
बेटे माधवराव सिंधिया ने नहीं,पौत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने निभाई दादी राजमाता विजयराजे सिंधिया की परंपरा
सिंधिया परिवार की बेटी वसंधुरा को छोड़ उनकी माता,भाई और भतीजे ने ढूंढी दूसरे राजनीतिक दल में ठोर
न्यूज डेक्स इंडिया
दिल्ली। आजादी के बाद भारत की राजनीति में सिंधिया परिवार के चार चेहरे अलग अलग कालखंड में चर्चा में रहे,इनमें सबसे बड़ा और पहला नाम राजमाता विजयाराजे सिंधिया का रहा और इनके बाद बड़े नामों उनके पुत्र माधवराव सिंधिया,पुत्री वसंधराराजे सिंधिया और पौत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया है। अचानक सिंधिया परिवार का जिक्र इसलिए हो रहा है कि तीन दिन पहले इस परिवार के ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा सरकार के मंत्रीमंडल में शामिल हुए और आज उनके कांग्रेसी पिता स्व.माधवराव सिंधिया के नाम पर भाजपा सरकार ने एक लैंडमार्क समर्पित करने का अहम फैसला लिया है।
वैसे हर सियासी दल में संगठन,विचारधारा और सिद्धांत और कार्यकर्ता को सर्वोपरि और रीढ़ की हड्डी बताने की परंपरा है। मगर हर जगह हावी मौके की नजाकत रहती है। इस तरह के अनगिनत उदाहरण सियासी दलों के इतिहास में दर्ज है। तभी राजनीति में किसी को अछूत या स्थाई दुश्मन करार नहीं दिया जाता। कब दोस्त दुश्मन और दुश्मन दोस्त हो जाए इसका किसी को अंदाजा नहीं होता। ताजा उदाहरण है सिंधिया राज घराने के कांग्रेसी राजनेता माधवराव सिंधिया से जुड़ा है। मध्यप्रदेश की राजनीति में कुछेक महीनों को छोड़ कर वहां भाजपा सरकार लंबे समय से प्रदेश की सत्ता पर काबिज है। और यह पहली बार है जब स्व. माधवराव सिंधिया के प्रति भाजपा में अपनत्व का भाव उमड़ घुमड़ रहा है।
आज इंदौर जिले के प्रभारी मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने महत्वपूर्ण बैठक में बंगाली ओवर ब्रिज का नामकरण स्व. माधवराव सिंधिया के नाम पर करने की घोषणा की। इसी के साथ महाराजा यशवंत राव (एमवाय) अस्पताल को मॉडल अस्पताल के रूप में विकसित करने का भी एेलान किया है। डॉ. मिश्रा इंदौर जिले में कोरोना से निपटने के लिये तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए उसके नियंत्रण के लिये की जा रही तैयारियों की बिन्दुवार समीक्षा कर रहे थे। बैठक में जल-संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट, पर्यटन मंत्री उषा ठाकुर, विधायक रमेश मेंदोला, आकाश विजयवर्गीय, मालिनी गौड़, महेंद्र हार्डिया तथा विशाल पटेल, सुदर्शन गुप्ता, जीतू जिराती, गौरव रणदिवे, राजेश सोनकर, मधु वर्मा, राज्य आपदा प्रबंधन समिति के सदस्य डॉ. निशांत खरे, कलेक्टर मनीष सिंह, आयुक्त नगर निगम प्रतिभा पाल, डीआईजी मनीष कपूरिया मौजूद रहे।
काबिलेगौर है कि 30 सितंबर को कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे स्व. माधवराव सिंधिया के निधन को पूरे 20 होने जा रहे हैं,मगर पिछले दो दशकों में यह पहला मौका है जब भाजपा की सरकार उनके नाम पर बड़े लैंड मार्क का नामकरण करने जा रही है। यानी एक साल पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के भगवा झंडे को संभालने के बाद मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के लिए उनके दिवंगत पिता माधवराव सिंधिया पर भी भगवा रंग चढ़ाया जा रहा है। वैसे पिछले साल स्व.माधव राव सिंधिया की 19 वीं पुण्यतिथि के मौके पर इसका असर पहली बार दिखा था। तब यहां स्व.माधवराव सिंधिया की पुण्यतिथि पर सियासत हावी नजर आई थी।हालांकि कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उनकी याद में प्रभात फेरी निकाल कर श्रद्धांजलि देने और औपचारिकता निभाने का काम किया था,मगर स्व.माधवराव सिंधिया की छतरी पर कई दिग्गज भाजपा नेता उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे।
सिंधिया राजपरिवार की कांग्रेस और भाजपा के साथ अलग तरह की केमिस्ट्री कही जा सकती है।देखिये ना,आजादी के बाद सियासतों का विलय होने और इसके बाद राजमाता विजयराजे सिंधिया कांग्रेस में एक दशक तक बने रहना तथा चुनाव लड़ना सब कुछ चलता रहा,मगर 1967 में उनका कांग्रेस से मोहभंग और जनसंघ में शामिल होना और फिर लंबे समय तक भाजपा के दिग्गज चेहरे के रुप अंतिम सांस तक भाजपा में रहीं। वहीं उनके पुत्र माधवराव सिंधिया ने जनसंघ से नाता तोड़ 1980 में कांग्रेस ज्वाइन की और अपनी खास जगह बनाई। नब्बे के दशक में उन्होंने अपनी पार्टी भी बनाई।राजनीतिक कैरियर में उनके नाम दर्ज बड़ी जीत इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में ग्वालियर सीट से भाजपा के पितामह अटल बिहारी बाजपेयी को बड़े अंतर से पराजित करने के बाद दर्ज हुई थी।
तीसरा अध्याय इसी परिवार की बेटी वसुंधरा से जुड़ा हुआ है,वे अपनी माता की तरह कांग्रेस और भाई तरह कांग्रेस जनसंघ छोड़ कर दूसरे दल में जाने की बजाए,राजनीतिक कैरियर की शुरुआत से अब तक भाजपा में हैं। अब बात है इस परिवार के चौथे बड़े राजनीतिक चेहरे ज्योतिरादित्य सिंधिया की,जिन्होंने अपनी दादी की तरह शुरुआत कांग्रेस से की और अब सवा साल से भाजपा में मजबूत और बड़ा चेहरा बन चुके हैं। इसी वजह से भाजपा को विरोधी दल के दिवंगत नेता माधवराव सिंधिया अब अपने लगने लगे हैं।
एक नजर में
भारत से राजशाही समाप्त होने पर राजमाता विजयाराजे सिंधिया राजनीति में उतरीं थीं। कई बार भारतीय संसद के दोनों सदनों में चुनी गई। वे पहली बार 1957 में कांग्रेस से राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाली राजमाता ने गुना से लोकसभा का पहला चुनाव 1957 में जीता था,मगर एक दशक बाद 1967 में जनसंघ में शामिल हुई। 1971 में पूरे देशभर में इंदिरा गांधी की लहर के बाद भी जनसंघ ने ग्वालियर क्षेत्र की तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी,जिसमें बड़ा योगदान विजयाराजे सिंधिया था।तब भिंड से विजयाराजे सिंधिया, गुना ने उनके पुत्र माधवराव सिंधिया और ग्वालियर से अटल बिहारी वाजपेयी सांसद चुने गए थे।
हालांकि इसके बाद माधव राव सिंधिया और उनकी माता विजयाराजे सिंधिया के बीच संबंध इतने खराब रहे कि 1985 में अपने हाथ से लिखी वसीयत में उन्होंने अपने बेटे माधवराव सिंधिया को अंतिम संस्कार तक में शामिल होने से इंकार कर दिया था। 2001 में उनके निधन के बाद उनके बेटे माधवराव सिंधिया ने ही उनकी चिता को मुखाग्नी दी थी। उन्होंने ग्वालियर के जयविलास पैलेस में रहने का सालाना किराए तक की मांग की थी।विजयाराजे सिंधिया का आरोप यह भी था कि कांग्रेस शासनकाल में लगाई गई एमरजेंसी के समय उनके बेटे के सामने पुलिस ने उन्हें लाठियां बरसाई थी और माधवराव सिंधिया ने ही उन्हें गिरफ्तार कराया था।