न्यूज डेक्स इंडिया
दिल्ली। इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने “कुछ लोगों के फोन डेटा में छेड़छाड़ के लिए स्पाईवेयर पेगासस के कथित उपयोग से जुड़ी मीडिया में 18 जुलाई, 2021 को आई खबरों” पर आज यहां राज्य सभा में सभापति के सामने बयान कि मैं कुछ लोगों के फोन डेटा में छेड़छाड़ के लिए स्पाइवेयर पेगासस के दुरुपयोग से जुड़ी खबरों का जवाब देने के लिए खड़ा हुआ हूं। उन्होंने 18 जुलाई, 2021 को एक वेब पोर्टल पर एक बेहद सनसनीखेज खबर पर चिंता जताते हुए कहा कि इस रिपोर्ट में कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
मीडिया में यह खबर संसद के मानसून सत्र के प्रारंभ होने से एक दिन पहले आई है। यह महज संयोग नहीं हो सकता। पहले भी इसी प्रकार से पेगासस स्पाईवेयर के व्हाट्सअप पर दुरुपयोग के दावे किए गए थे। इन दावों का कोई तथ्यात्मक आधार नहीं था और सर्वोच्च न्यायालय सहित सभी जगह संबंधित पक्षों ने उन्हें खारिज कर दिया था। 18 जुलाई 2021 को मीडिया में इस संबंध में छपी खबरें भारत के लोकतंत्र और इसकी मजबूत संस्थाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से प्रकाशित की गई हैं।
हम उन्हें दोष नहीं दे सकते, जिन्होंने इस खबर को विस्तार से नहीं पढ़ा है। मैं सदन के सभी सम्मानित सदस्यों से अनुरोध करता हूं कि इस विषय के सभी तथ्यों और तर्कों को गहराई से परखें। इस खबर का आधार एक समूह है जिसने कथित तौर पर 50 हजार फोन नंबरों के लीक किए गए डेटा बेस को प्राप्त किया। आरोप यह है कि इन फोन नंबरों से संबंधित व्यक्तियों पर निगरानी रखी जा रही थी। लेकिन रिपोर्ट यह कहती है कि डेटा बेस में फोन नंबर मिलने से यह सिद्ध नहीं होता है कि फोन पेगासस स्पाईवेयर से प्रभावित था या उस पर कोई साइबर हमला किया गया था।
किसी भी फोन का तकनीकी विश्लेषण किए बगैर यह कह पाना कि उस पर किसी साइबर हमले का प्रयास सफल हुआ या नहीं, उचित नहीं होगा। इसलिए, यह रिपोर्ट स्वत: कहती है कि डेटा बेस में फोन नंबर का मिलना किसी प्रकार की निगरानी को सिद्ध नहीं करता है। इस संबंध में इस तकनीक का स्वामित्व रखने वाली एनएसओ के बयान पर भी गौर करना चाहिए। उसने कहा है कि एनएसओ ग्रुप यह मानता है कि ये दावे कि लीक किए गए डेटा बेस में उपलब्ध जानकारियां जैसे कि एचएलआर लुकअप सर्विसेस -जिनका पेगासस स्पाईवेयर से संबंधित उपभोक्ताओं की सूची या किसी अन्य एनएसओ उत्पाद से कोई संबंध नहीं है, की गलत व्याख्या का परिणाम है।
ये सेवाएं किसी को भी कहीं भी किसी भी समय उपलब्ध हैं, जिनका सामान्य प्रयोग सरकारी संस्थाएं और प्राइवेट कंपनियां दुनिया भर में कर रही हैं। निश्चित रूप से इस डेटा का निगरानी या एनएसओ से कोई लेना-देना नहीं है, इसलिए इस डेटा का निगरानी के लिए उपयोग होने की बात का कोई आधार नहीं है। एनएसओ ने यह भी कहा है कि जिन देशों के नाम सूची में पेगासस के उपभोक्ता के रूप में दिखाए गए हैं, वे भी गलत हैं और इनमें से कई देश उनके उपभोक्ता नहीं हैं। यह भी कहा गया है कि इसके अधिकतर उपभोक्ता पश्चिमी देश हैं। यह स्पष्ट है कि एनएसओ ने इस खबर में छपे दावों का खंडन किया है।
उन्होंने कहा कि भारत में निगरानी से संबंधित स्थापित प्रोटोकॉल हैं। मेरे सहयोगी जो विपक्ष में हैं और वर्षों तक सरकार में भी रहे हैं, उन्हें इस प्रोटोकॉल की जानकारी जरूर होगी। वे वर्षों तक सरकार में रहे हैं, इसलिए उन्हें यह पता होगा कि किसी भी प्रकार की निगरानी, बिना किसी कानूनी नियंत्रण के संभव नहीं है। भारत में एक स्थापित प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक संवादों के कानूनी अंतरग्रहण (इंटरसेप्शन) सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा के कारणों, विशेष रूप से किसी सार्वजनिक आपदा या जन सुरक्षा के विषयों पर, राज्य या केन्द्र की संस्थाओं द्वारा किए जाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक संवादों के कानूनी अंतरग्रहण के अनुरोध भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 5 (2) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 के तहत किए जाते हैं।
निगरानी या अंतरग्रहण के सभी मामले सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित किए जाते हैं। आईटी (प्रोसीजर एंड सेफगार्ड्स फॉर इंटरसेप्शन, मॉनिटरिंग एंड डिक्रिप्शन ऑफ इन्फोर्मेशन) रूल्स, 2009 के द्वारा ये शक्तियां राज्य सरकारों के सक्षम प्राधिकारी को भी दी गई हैं। भारत के कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति के रूप में यहां पर निगरानी की एक स्थापित व्यवस्था है। राज्य सरकारों के स्तर पर ऐसे विषय की निगरानी मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनाई गई समिति करती है। जो लोग ऐसी घटनाओं में पीड़ित होते हैं, उनको न्याय देने का भी प्रावधान कानून में है।
इस प्रकार, यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि किसी भी प्रकार का अंतरग्रहण या निगरानी कानूनी प्रक्रियाओं के द्वारा ही हो। यह रूपरेखा और संस्थाएं समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं।
अंत में उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट के प्रकाशक के अनुसार यह नहीं कहा जा सकता है कि इस रिपोर्ट में दिए गए फोन नंबरों की निगरानी की जा रही थी। जिस कंपनी की तकनीक का कथित दुरुपयोग किया जा रहा था, उसने इन दावों को सिरे से खारिज किया है। लंबे समय से देश में स्थापित कानूनी प्रक्रियाएं यह सुनिश्चित करती हैं कि किसी भी प्रकार की गैरकानूनी निगरानी संभव नहीं है। जब हम इस विषय को तर्कसंगत तरीके से देखते हैं तो यह पता चलता है कि इस सनसनीखेज विषय में कोई सच्चाई नहीं है।