न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। वीर चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक एवं लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे। वे ईमानदार, स्वाभिमानी, साहसी और वचन के पक्के व्यक्तित्व थे। वीर शहीद चन्द्रशेखर आजाद ने मातृभूमि भारत की आजादी के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद की जयंती के अवसर पर व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ। उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी एवं माता का नाम जगदानी देवी था।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि मैं आजाद हूं, आजाद रहूंगा और आजाद ही मरूंगा यह नारा था भारत की आजादी के लिए अपनी जान की कुर्बानी देने वाले देश के महान क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद का है। मात्र 24 साल की उम्र जो युवाओं के लिए जिंदगी के सपने देखने की होती है, उसमें चन्द्रशेखर आजाद अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गए। आजाद ने देश की स्वतंत्रता के लिए भगत सिंह के साथ मिलकर भी अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए थे। चंद्रशेखर आजाद कहते थे कि दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे उनके इस नारे को एक वक्त था कि हर युवा रोज दोहराता था। वो जिस शान से मंच से बोलते थे, हजारों युवा उनके साथ जान लुटाने को तैयार हो जाता था।
डॉ. मिश्र ने कहा कि जैसा नाम वैसा काम। चन्द्रशेखर ने अपने नाम के आगे आजाद लगाया था और वे मरते दम तक आजाद ही रहे। एक बार इलाहाबाद में उनके होने की सूचना मिलने पर ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें और उनके सहकर्मियों को चारों तरफ से घेर लिया था। अपने साथियों सहित स्वयं का बचाव करते हुए आजाद ने कई पुलिस कर्मियों पर गोलियां चलाई और जब उनकी पिस्तौल में अंतिम गोली बची वे स्वयं भी पूरी तरह से घायल हो चुके थे। बचने का कोई रास्ता न दिखा तो ब्रिटिशों के हाथ लगने से पहले ही आजाद ने बची अन्तिम गोली खुद पर चला ली। यह घटना 27 फरवरी, 1931 की है जो इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में घटी थी। चंद्रशेखर आजाद की पिस्तौल को आज भी इलाहाबाद म्यूजियम में देखा जा सकता है। ऐसे वीर क्रांतिकारी चंद्रशेखर का नाम मन में आते ही अपनी मूंछों को ताव देता वह नौजवान आंखों के सामने जाता है, जिसे पूरी दुनिया आजाद के नाम से जानती है।