श्री गणेश उत्सव की पूजा कलयुग में सबसे फलदायी है – ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र, 26 अगस्त। ब्रह्मसरोवर के तट पर श्री जयराम विद्यापीठ में श्री गणेश उत्सव का का प्रतिदिन पूजन हो रहा है। जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी के सान्निध्य में पूजन व आरती के साथ भगवान श्री गणेश की महिमा का भी गुणगान किया जा रहा है। ब्रह्मचारी ने बुधवार को पूजन के उपरांत बताया कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर गणेश स्थापना के पांचवें दिन भगवान गणेश के धूम्रवर्ण रूप की पूजा करनी चाहिए। भगवान गणेश का यह स्वरूप अहंकार को हरने वाला तथा कष्टों से मुक्ति देने वाला है।
ब्रह्मचारी ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कलयुग में भगवान का यही रूप सबसे ज्यादा फलदायी है। इस के कलयुग में गणेश उत्सव का विशेष फल देने वाला है। उन्होंने बताया कि भगवान गणेश के उपरोक्त रूप के पीछे अहंतासुर नामक राक्षस का नाम है। बताया जाता है कि अहंतासुर अपने गुरु शुक्राचार्य के आदेश पर भगवान गणेश की तपस्या में लीन हो जाता है। उसके कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान गणपति उसे अजेय होने का वर देते हैं।
धूम्रवर्ण स्वरूप वरदान पाने के बाद अहंतासुर विश्व विजय के लिए निकल जाता है। देखते ही देखते तीनों लोक पर उसका कब्जा हो जाता है। उसके डर से स्वर्ग के देवता भी दर-दर भटकने लगते हैं और भगवान शिव की शरण में जाते हैं। भगवान शिव उन्हें गणपति की तपस्या करने की सलाह देते हैं। देवताओं की तपस्या देखकर गणपति धूम्रवर्ण स्वरूप में प्रकट होते हैं और अहंतासुर को समर्पण कर शांति से जीवन व्यतीत करने का संदेश भिजवाते हैं।
इस अवसर पर के के कौशिक, श्रवण गुप्ता, राजेंद्र सिंघल, टेक सिंह लौहार माजरा, एस एन गुप्ता, खरैती लाल सिंगला, कुलवंत सैनी, प्रमोद कुमार, राजेश सिंगला। विनय गुप्ता, सतबीर कौशिक, रोहित कौशिक तथा प. राजेश लेखवार शास्त्री इत्यादि मौजूद थे।