न्यूज डेक्स संवाददाता
चंडीगढ़। चंडीगढ़ प्रेस क्लब में गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर सहित्य जगत के दिग्गजों विवेक अत्रेय, प्रेम विज, अशोक नादिर, उमेश सहगल द्वारा चरम द अल्टीमेट दर्शन का लोकार्पण किया गया। विवेक अत्रेय ने आज के दौर में जीवन में वास्तविक स्वरूप व अन्तरात्मा के बीच संतुलन की बात की व सभी को साहित्य पढ़ने व लिखने को प्रेरित किया।आज सारा विश्व करोना महामारी से जूझ रहा है। दूसरी लहर में कोई भी परिवार अछूता नहीं बचा, हम में से लगभग सभी ग्रसित हुए थे। आज सबके मन में भय हैं कि तीसरी लहर कैसी होगी।
अशोक नादिर ने लेखक का परिचय देते हुए कहा कि अनिल चावला पैक से इंजीनियरिंग की डिग्री के पश्चात मोहाली व बद्दी में दो बड़े यूनिट्स को सफलतापूर्वक चलाकर 2006 में सब त्याग उड़ीसा में अपने गुरु के सम्पर्क में काफी समय व्यतीत करते रहे हैं व अब प्राप्त आध्यत्मिक शिक्षा को जनमानस तक पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं। महापुरुष अच्युतानन्द के मुताबिक यह युग परिवर्तन का समय चल रहा है।अच्युतानन्द जी आज से 500 वर्ष पूर्व उड़ीसा में आये थे। वह चैतन्य महाप्रभु और गुरु नानक देव जी के समकालीन थे।वह पंच सखा के नाम से जाने जाते हैं। अच्युतान्नद जी निर्विकल्प समाधी के साधु थे और इनकी वाणियां मालिका के नाम से ताड़ पत्र पोथियों के रूप में हैं आज जगह-जगह पर मौजूद हैं।
उड़ीसा में कई धर्मग्रंथों पर अच्युतानन्द जी की 2020 – 2025 की भविष्यवाणियों का जिक्र है।अछूतानंद संत ने युगावतार ठाकुर केशवचन्द्र के जन्म व उनके द्वारा अपने जीवन काल में किये जाने वाले कर्मों का जिक्र भी मालिका में किया था। जिसके मुताबिक केशवचन्द्र का जन्म 1955 में हुआ और 2015 में शरीर त्याग गए।युगावतार रूप में ठाकुर क्या करके गये, क्या ज्ञान दिया, क्या आदर्श स्थापित किये, अगले युग के लिये किस प्रकार यज्ञों के माध्यम से तीर्थों की स्थापना, मण्डल व मन्त्र दिये वह सब अच्युतानन्द की भविष्यवाणियों में लिखित था। चरम शास्त्र (जो उड़िया भाषा में है) के 50 क्रमांक 22 वर्षो में आये, इसका जिक्र भी मालिका में हैं। पुस्तक चरम द अल्टीमेट दर्शन भी उसी उड़िया चरम पर आधारित है। हम सब शरीर के 7 चक्रों के बारे में जानते है (मूलाधार से सहस्रार) हमने आठवें चक्र जिसको औरा कहा जाता है, के बारे में भी सुना है।
यह आठों चक्र हमारे सूक्ष्म शरीर का हिस्सा हैं। इनके इलावा एक नौंवा चक्र भी है जिसे हम कारण शरीर या आनन्दमय कोष कहेंगे, बताया लेखक अनिल चावला ने।यह ही 0 से 9 तक की गिनती है जो हमारे ऋषि मुनि हमें दे गये जो अकों/गणित का आधार है। सविकल्प व निर्विकल्प समाधी क्या है और किस प्रकार हम रोज निद्रा के समय उन सब अवस्थाओ से गुजरते हैं उन सब को इस चित्र (पृष्ठ 91) में दर्शाया है और उस पर चर्चा की गई है। सृष्टी की रचना कल्पों में कैसे हुई, उसे पृष्ठ 94 पर दर्शाया है और उस पर भी चर्चा की गई है।
सत्येन्द्रिय व विजेन्द्रिय द्वार क्या है ? जिन्हें हम अन्तर्मुखी होना व बाहिर्मुखी होना कहते है, वह शरीर में कहां हैं, कैसे हम गुरु जी द्वारा दी गई साधना पद्धति से अन्तर्मुखी हो सकते है, उस पर भी चर्चा है। आत्म दर्शन, कुण्डलिनी जाग्रत व और भी बहुत से शब्दों को सरल रूप से लिखा गया है।ठाकुर जी का समस्त ज्ञान 1993 से 2015 तक, 22 वर्षो में 50 चरम पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ, जो उड़िया भाषा में है। उनमें बहुत सा ज्ञान है जैसे- मातृजाति की जागृति- आज के दिशा रहित युवा समाज के लिए- मोह व माया के बारे में लेख- ठाकुर जी के पिता रुप में लिखे गये हम बच्चों के लिए लेख – तुम्हारा कल्याण हो।
अपना स्वरूप पहचानने के लिए साधना पद्धति आखिर के 350 पन्नों में उन्हीं उड़िया के 50 क्रमांकों से अलग-अलग लेख इस पुस्तक के लिखे गए हैं। जिन्हें पढ कर मैं ठाकुर जी के ज्ञान को जान पाया और अपने जीवन में बदलाव महसूस कर पा रहा हूँ, बताया लेखक अनिल चावला ने। प्रेम विज ने कहा कि आध्यात्म की तरफ सब को प्रेरित किया। अशोक भंडारी नादिर ने कहा की ऐसी आत्मकथा गुरु कृपा वालों द्वारा ही सम्भव है। उमेश सहगल ने कहा माया के बारे में विस्तारपूर्वक व्यख्या की व कहा कि ईश्वर सम्पूर्ण है , हब सब माया से ग्रस्त हैं ,परन्तु गुरु कृपा से व ऐसे ग्रन्थों के द्वारा माया पर पार पाया जा सकता है