न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। श्रावण मास के पहले दिन स्थाणीश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग का अभिषेक किया गया। श्रावण मास के पहले दिन महंत बंशी पुरी महाराज ने मंदिर परिसर में मोलश्री पौधा रोपित किया। महंत बंशीपुरी ने बताया कि श्रावण मास में हर रोज भगवान शिव का अभिषेक किया जाएगा। यह मास भगवान शिव को अति प्रिय है। उन्होंने एक पेड़ शहीद के नाम अभियान के तहत मोलश्री (मोलसिरी) का पौधा स्थाणु तीर्थ पर लगाने के बाद इसके महत्व के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि इसे संस्कृत में केसव, हिंदी में मोलसिरी या बकुल, बंगाली में गांछ, गुजराती में बोलसरी, पंजाबी में मोलसरी, तमिल में अलांगु केसारम और लेटिन में माइमोसाप्स, इलेजाई कहते हैं। मोलसिरी एक औषधीय वृक्ष है, इसका सदियों से आयुर्वेद में उपयोग होता आ रहा है।
इसके चमकीले हरे पत्ते वृक्ष की सुंदर बनावट मन को मोह लेती है। मोलसिरी प्राय देश के हर भाग में पाया जाता है। सामान्यतया: इसे बागों में देखा जाता है। इसके पेड़ तीस से चालीस फिट ऊंचे होते हैं। पत्ते संग व चिकने होते हैं। इनकी संरचना देखने में झोपड़ी के आकार की होती है। इस पेड़ पर पतझड़ का असर न के बराबर होता है। इसका वृक्ष हमेशा हर भरा रहता है। इसके पत्ते के किनारे लहरदार होते हैं। फूल खुशबुदार होते हैं। फल एक इंच लंबे चिकने होते हैं। ये हरे होते हैं। पकने पर पीले हो जाते हैं। इनके अंदर बीज होते हैं। फूल आने का समय होता है।
ग्रीष्म से सर्द ऋतु तक उसके बाद फल आना शुरू होता है। इससे इत्र बनाया जाता है। रसायनिक के आधार पर इसके बीज में सैनोनिन और तेल होता है। छाल में टैटिन, मोम, रंजक, रख एवं रबड़ होता है। दांत के रोग में इसका उपयोग लाभदायक होता है. दांत हिलते हों, मसूड़े ढीले पड़ गए हों, तो इसकी छाल व कच्चे फल को चबाना चाहिए साथ ही इसकी छाल का काढ़ा बना कर कुला करने से हिलते दांत और मसूड़े सुद्र्ण हो जाते हैं। इसके फलों के रस का सेवन दो माह तक करें। इसके फूलों को रात्रि में पानी में भिगाकर रख दें दूसरे दिन सुबह पी लें। इस विधि के नियमित सेवन से खांसी छह से सात दिन में ठीक हो जाती है।