6 अगस्त महाशिवरात्रि पर विशेष
न्यूज डेक्स संवाददाता
जींद।
पुराणों में वर्णित जींद शहर के चार तीर्थों में से एक है अपराही मोहल्ला स्थित प्राचीन भूतेश्वर मंदिर। पुराने लोग इसे बिस्सो का मंदिर या झीमरों वाला मंदिर भी कहते हैं। इस प्राचीन मंदिर का अपना एक अलग पौराणिक महत्व है। हजारों साल पुराने इस मंदिर में विशेष बात यह है कि इसमें पवित्र शिवलिंग किसी व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित नहीं किया गया है, बल्कि स्व:प्रकट है। मान्यता यह भी है कि यहां जो व्यक्ति बिना रुकावट के 40 दिन तक दिया जलाता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। मंदिर की प्राचीन और धार्मिक महत्ता पर प्रकाश डालते हुए रमेश सैनी ने बताया कि अपराही मोहल्ला के इस भूतेश्वर महादेव मंदिर में पूजा-पाठ का जिम्मा जींद के राजा ने बिस्सो जोगी को सौंपा था।
एक ऊंचे थेह पर बने इस मंदिर का भवन इतना छोटा होता था कि एक ही व्यक्ति अंदर घुस कर पूजा-अर्चना कर सकता था। प्राचीन समय में इसके चारों ओर भूतेश्वर तीर्थ होता था। शहर में ऊंचे दड़े की ओर से तीर्थ में घाट उतरते थे, जिसके निशान आज भी मौजूद हैं। मैं उस समय बनाए गए किले की ओर से अपराही मोहल्ला व सफीदों गेट की ओर ऊंचे टीले से अनेक स्थानों से उतरने वाली सीढ़ियां इस बात की आज भी गवाह हैं। इतिहासकार भी इसकी पुष्टि करते हैं। मंदिर में नियमित पूजा अर्चना होती थी। कुछ समय बाद बिस्सो की मौत हो गई। उसके बाद बिस्सो के पुत्र जंगी ने पूजा अर्चना का कार्य संभाला। जंगी पशुपालन विभाग में नौकरी करता था। जंगी की ब्याहता स्त्री अलग ही स्वभाव की थी। वह पूरे परिवार के दिमाग पर ऐसी छाई कि उसने मंदिर के कपाट ही बंद करा दिए। मंदिर में पूजा अर्चना बंद हो गई। श्रद्धालुओं का आना-जाना भी बंद हो गया। करीब 20 साल तक ऐसा ही चला।
मंदिर के कपाट बंद होने के बाद आसपास के श्रद्धालु जागृत हुए। उन्होंने एक संस्था का गठन कर मंदिर के जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया। स्व. लाला भगवत स्वरूप मंगला, पूर्व पार्षद रामसिंह, हुकम चंद सैनी, जोग राज सैनी, सूबे सिंह, जिले सिंह अहीर, देशराज अरोड़ा, मांगे राम प्रजापत, हरिराम आढ़ती, तीर्थ मल्होत्रा, दारा सिंह सैनी, चमन लाल आदि के नेतृत्व में युवाओं के एक दल ने कानूनी और पंचायती प्रक्रिया अपनाते हुए किसी तरह मंदिर परिसर को गृहस्थ आश्रम से मुक्त कराया। उसके बाद शुरू हुआ मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य, जिसमें शहर के लोगों ने तन-मन और धन से सहयोग दिया। उस समय युवाओं के जोश को देखते हुए सब्जी मंडी एसोसिएशन भी सामने आई। तत्कालीन वित्तमंत्री लाला मांगे राम गुप्ता और सांसद नारायण सिंह ने एक-एक लाख रुपए का सहयोग देकर मंदिर के जीर्णोद्धार में अपनी आहुति डाली। फिर क्या था, शहर के श्रद्धालुओं ने जिससे जैसा बन पाया, सहयोग दिया। शहर के श्रद्धालुओं के सहयोग से मंदिर परिसर आज अपने भव्य स्वरूप की ओर बढ़ रहा है। मंदिर के संचालन में लगी संस्था के मौजूदा प्रधान देसराज अरोड़ा हैं।
राजा ने बनाया था वैकल्पिक तीर्थ-अवैध कब्जों के कारण भूतेश्वर तीर्थ के लुप्त हो जाने के बाद जींद के राजा ने करीब 150 साल पहले रानी तालाब बनवाया। उसे वैकल्पिक तौर पर भूतेश्वर तालाब का नाम दिया गया। उस तालाब में हरि कैलाश मंदिर की स्थापना की गई, जो आज शहर की शान है। समय व्यतीत होने के साथ नई पीढ़ी इसे ही भूतेश्वर तीर्थ और मंदिर समझने लगी। इस स्थिति को भांपकर जींद के प्रो. बीबी कौशिक जैसे इतिहासकार आगे आए और उन्होंने शहर की जनता को वास्तविकता से अवगत कराया।
पुराणों में वर्णित शहर के चार तीर्थ निम्नलिखित प्रकार से हैं-श्री जयंत देवी तीर्थ, पुरानी सब्जी मण्डी स्थित श्री ज्वालमालेश्वर तीर्थ, श्री सोम तीर्थ और सफीदों गेट अपराही मोहल्ला स्थित श्री भूतेश्वर महादेव तीर्थ। सोम तीर्थ प्राचीन समय में पांडु-पिंडारा से लेकर शहर के सोमनाथ मंदिर तक फैला हुआ था। समय बढ़ता चला गया और यह दो भागों में विभाजित हो गया।
ये है धार्मिक महत्व-किंवदन्ती है कि हजारों हजार साल पहले जब इस देश पर मुगलों का राज हुआ तो उन्होंने देश के हिंदू धार्मिक स्थलों को तहस-नहस करना शुरू कर दिया। बाबा भूतेश्वर महादेव का यह मंदिर भी अछूता नहीं रहा। बाबा की स्व:प्रकट पिंडी पर मुगल सेना ने आक्रमण कर दिया। पवित्र शिवलिंग को काटने की कोशिश की गई। मुगल सेना शिवलिंग को जितना काटती, उतना वह जमीन से निकलता चला गया। बाबा का चमत्कार देख मुगल सेना भाग खड़ी हुई। तभी से लेकर इसकी मान्यता और बढ़ गई। तब से लेकर श्रावण महीने की शिवरात्रि और फाल्गुन महीने की महाशिवरात्रि को मेला लगता है। दूर-दूर से पहुंच कर श्रद्धालु इन दोनों दिनों यहां मन्नत मांगते हैं। मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु यहां लगातार 40 दिन तक जोत जलता है तो उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। मान्यता है कि इस शिवलिंग पर यदि पानी-दूध घिसकर पिया जाए तो चर्म रोग व कोढ़ दूर होता है।