गिद्ध और घडियाल बने शान,नाईट जंगल सफारी,चीता की आमद
न्यूज डेक्स मध्यप्रदेश
भोपाल। वन्य प्राणी के स्वच्छंद विचरण से प्रकृति का सौंदर्य कई गुना बढ जाता है। वन्य प्राणी आम-जन के आस-पास रहते हुए सह-अस्तित्व की स्थिति का स्मरण कराते रहते हैं। मध्यप्रदेश को प्रकृति ने अति समृद्ध हरित प्रदेश बनाया है। मध्यप्रदेश ने इसलिये वन्य प्राणी संरक्षण और प्रबंधन पर विशेष ध्यान देकर वन्य प्राणी समृद्ध प्रदेश बनाने में किसी प्रकार का कोई प्रयास नहीं छोडा। परिणाम सामने है कि प्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा हासिल है। अब तेंदुओं की संख्या भी देश में सबसे ज्यादा है। घड़ियाल और गिद्धों की संख्या के मामले में राष्ट्रीय स्तर पर नम्बर-वन बनने की स्थिति में आ चुका है। सुखद पहलू यह है कि सतपुड़ा टाईगर रिजर्व को यूनेस्कों की विश्व धरोहर स्थल की संभावित सूची में शामिल किया गया है। सतपुड़ा टाईगर रिजर्व बाघ सहित कई वन्य-जीवों की आदर्श आश्रय स्थली और प्रजनन के सर्वाधिक अनुकूल स्थान है।
तीन साल पहले वर्ष 2018 में हुई बाघों की गणना में 526 बाघ होने के साथ प्रदेश को टाईगर स्टेट का दर्जा मिला। इन बाघों में लगभग 60 फीसदी टाइगर रिजर्व के क्षेत्रों और 40 फीसदी बाघ अन्य वन क्षेत्रों में उपलब्ध हैं। बांधवगढ टाइगर रिजर्व में सर्वाधिक 124 बाघ मौजूद हैं। इस साल अक्टूबर माह में तीन चरणों में होने वाली बाघों की गणना के प्रारम्भिक रूझानों के आधार पर विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि बाघों की संख्या के मामले में मध्यप्रदेश पुन: टाप पर होगा। यह संख्या 700 से ज्यादा होने की उम्मीद है। टाइगर स्टेट का दर्जा दिलाने में अति विशिष्ट योगदान देने वाली पेंच टाइगर रिजर्व की “कालर कली” बाघिन का नाम विश्व में सबसे ज्यादा प्रसव और शावकों के जन्म का अनूठा कीर्तिमान भी है।
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में पिछले डेढ़ दशक के दरम्यान श्रेष्ठ और सतत वन्य प्राणी प्रबंधन के प्रयासों से यह मुकाम हासिल हुआ है। संरक्षित क्षेत्रों के बाहर के वनों में वन्य-प्राणी प्रबंधन, पशु-हानि, जन-घायल एवं जन-हानि प्रकरणों की दक्षता एवं त्वरित निपटारा, मानव वन्य-प्राणी द्वन्द का श्रेष्ठ प्रबंधन, वन्य-प्राणी अपराध पर कठोर नियंत्रण, वन्य-प्राणी रहवासों का बेहत्तर प्रबंधन, स्थानीय समुदायों के संरक्षण प्रयासो में भागीदारी, संरक्षित क्षेत्रों से ग्रामों का विस्थापन और उच्च गुणवत्ता के अतिरिक्त वन्य-प्राणी रहवासों की उपलब्धता आदि के बेहत्तर क्रियान्वयन से प्रदेश को यह गौरवान्वित करने वाली उपलब्धियाँ हासिल हुई हैं।
बालाघाट जिले के क्षेत्रीय वन मण्डलों में 9 साल पहिले तक बाघों की संख्या शून्य थी जबकि कान्हा पेंच कॉरिडोर का महत्वपूर्ण घटक है और हमेशा से इन वन मंडलों के उत्कृट वन क्षेत्र रहे है। विभागीय सतत् प्रयासों का नतीजा यह हुआ कि इन वन मण्डलों में अब 30 से 40 बाघों की उपस्थिति पाई जाती है। उत्तर शहड़ोल, उमरिया, कटनी, दक्षिण सिवनी, छिन्दवाड़ा, बैतूल, होशंगाबाद, भोपाल और सीहोर आदि जिलों के वन क्षेत्र इसी तरह के उदाहरण हैं।
पिछले साल के अंत में केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री द्वारा तेन्दुए की आबादी की अखिल भारतीय आकंलन की प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार देशभर में 12 हजार 852 तेन्दुए थे। अकेले मध्यप्रदेश में यह संख्या 3 हजार 421 आंकी गई है। देश में तेन्दुए की आबादी में औसतन 60 फीसदी वृद्धि हुई जबकि प्रदेश में यह वृद्धि 80 फीसदी थी। देशभर में तेन्दुओं की संख्या में 25 प्रतिशत अकेले मध्यप्रदेश में है।
इस वर्ष हुई प्रदेश व्यापी गिद्ध गणना के अनुसार प्रदेश में 9446 गिद्ध प्रदेश में थे जो अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक है। राजधानी भोपाल के केरवा इलाके में 2013 में “गिद्ध संरक्षण और प्रजनन केन्द्र स्थापित किया गया था। इसे बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी और प्रदेश सरकार द्वारा संयुक्त रूप से संचालित है।
वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट इंडिया द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में सबसे अधिक 1859 घड़ियाल चम्बल अभ्यारण्य में हैं। चार दशक पहले घड़ियालों की संख्या खत्म होने के मुहाने में थी तब दुनिया भर में 200 घडियाल ही बचे थे। इनमें से तब भारत में 96 और चम्बल नदी में 46 घड़ियाल थे। मुरैना जिले के देवरी में स्थापित घड़ियाल प्रजनन केन्द्र हैं। घड़ियालों के अण्डों को सुरक्षित तरीके से हैंचिग की जाती है। घड़ियाल के अण्डों को हेंचरी की रेत में 30 से 36 डिग्री तापमान पर रखा जाता है। इस दौरान अण्डों से कॉलिंग आती है और इससे बच्चे निकलना शुरू हो जाते हैं। इनके बड़े होने पर रहवास जल क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से छोड़ दिया जाता है।
मध्यप्रदेश चीते की आमद के लिये पूरी तरह तैयार है। युद्ध स्तर पर प्रयास चल रहे हैं कि विलुप्त हो चुके “चीता” पहले चरण में मध्यप्रदेश राज्य की स्थापना 1 नवम्बर 2021 को दक्षिण अफ्रीका से लाकर राष्ट्रीय उद्यान कूनो में रखा जाए। इसके लिए साढ़े ग्यारह करोड़ रूपये खर्च किए जायेंगे।
अफ्रीका चीता पुनर्स्थापना की तैयारी शुरू हो चुकी हैं। इसमें प्रे-बेस के लिए संरक्षित क्षेत्र गांधी सागर अभ्यारण मंदसौर में शाकाहारी वन्य प्राणियों के ट्रान्सलोकेशन के लिए राज्य शासन ने नरसिंहगढ अभ्यारण्य राजगढ से 500 चीतलों का ट्रांसलोकेशन किए जाने की स्वीकृति दी गई है, जिसकी कार्यवाही प्रचलन में हैं।
उल्लेखनीय है कि चीतल का रहवास मुख्यत: मैदानी क्षेत्र में होकर किसानों के खेतों पर भोजन के लिए निर्भर रहते हैं। चीतलों के ट्रांसलोकेशन के साथ जहाँ एक क्षेत्र में प्रे-बेस की संख्या में वृद्वि होगी वहीं फसल हानि और मानव-वन्य प्राणी द्वंद की स्थिति में कमी आ सकेगी।
वन्य प्राणियों के अस्तित्व और उनके महत्व के प्रति जागरूकता बढाने के लिये जिम्मेदारी और बोध से पूर्ण वन्य जीव पर्यटन गतिविधि के अंतर्गत प्रदेश के संरक्षित क्षेत्रों में प्रात: कालीन और अपरान्ह में वाहन से सफारी की जाती है। निशा सफारी के नाम से ही स्पष्ट है, रात्रिकालीन सफारी कहा जाता है। इसमें पर्यटक निशा सफारी में सायंकालीन अवधि में बफर क्षेत्र में सूर्यास्त के चार घंटे बाद तक प्राकृतिक वनों और वन्य प्राणियों के अद्भुत नजारे देखकर प्रफुल्लित हो रहे हैं। इन गतिविधियों के प्रारंभ होते ही लोक प्रियता के शिखर पर हैं। इस व्यवस्था में प्रति सफारी वाहन में एक गाईड और वाहन चालक को दैनिक रोजगार भी मिल रहा है।
बैलून सफारी
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में पर्यटकों की सुविधाओं को बढ़ाते हुए बैलून सफारी की शुरूआत हो चुकी है। सम्पूर्ण देश की किसी टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में होने वाली पहली बैलून सफारी इस प्रदेश में हुई है। अब पर्यटक एरिएल व्यू से बाघ, तेंदुआ, भालू आदि वन्य-प्राणियों को वन-क्षेत्र में विचरण करते हुए आसानी से देख सकेंगे। हॉट एयर बैलून सफारी लॉच होने के साथ ही बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में आने वाले पर्यटकों की सुविधा में एड हो गई है। इस तरह की गतिविधि शुरू होने से पर्यटकों के बीच काफी पसंद की जा रही है। प्रदेश के अन्य टाईगर रिजर्व में भी यह सुविधा जल्द शुरू की जाएगी।
मानव-वन्य प्राणी द्वंद में कमी
प्रदेश में बाघ, तेन्दुए और अन्य वन्य प्राणियों से जनहानि, जनघायल, पशु हानि और फसल हानि की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए सार्थक प्रयास किए जा रहे हैं। इनसे होने वाली हानि की क्षति-पूर्ति के लिए लोक सेवा गारंटी अधिनियम 2010 में प्रावधान किया गया है। एक निश्चित समयावधि में इस तरह के प्रकरण की जाँच कर क्षति-पूर्ति भुगतान अनिवार्य कर दिया गया है।
वन्य प्राणी प्रबंधन में विकास निधि
वन्य प्राणी संरक्षण की निरंतरता और सफलता में जन-समुदायों की भागीदारी को महत्वपूर्ण घटक बनाया गया है। दो दशक पहले प्रावधान किया गया था कि संरक्षित क्षेत्रों में पर्यटन से होने वाली आय संरक्षित क्षेत्र में ही “विकास निधि” के रूप में रहकर विकास कार्य में उपयोग में लाया जाए। बाद के वर्षों में यह प्रावधान समाहित किया गया कि विकास निधि की एक तिहाई राशि संरक्षित क्षेत्र के समीप रहवास करने वाले ग्रामीणों को बिना शर्त प्रदाय कराई जाएगी। इस व्यवस्था से स्थानीय समुदायों के साथ बेहत्तर समन्वय स्थापित करने के उपकरण के रूप में उपयोगी साबित हुई है। उल्लेखनीय है कि प्रत्येक वर्ष संरक्षित क्षेत्रों से तकरीबन 30 करोड़ रूपये की विकास-निधि संचित कर विकास कार्यों में उपयोग की जा रही है। समस्त संसाधनों की तुलना में यह राशि अल्प है पर संरक्षित क्षेत्रों के लिए यह राशि प्राण वायु के समान खास है।
वन्य प्राणी प्रबंधन की प्रभावी भूमिका को देखते हुए भारत सरकार द्वारा वन्य-प्राणी (संरक्षण) अधिनियम 1972 के वर्ष 2006 के संशोधन कर उक्त व्यवस्था भारत के सभी टाइगर रिजर्व में लागू कर दी गई है।
प्रदेश के वन्य प्रेमियों के लिए खुश-खबरी यह है कि गुजरात के चिड़िया घर से सिंह के दो युवा जोड़ों को गुजरात स्टेट से लाकर भोपाल स्थित वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में उनकी ब्रीडिंग करवाई जाएगी। वन विहार राष्ट्रीय उद्यान की पर्यावरणीय स्थिति को देखते हुए केन्द्र सरकार ने सिंह की ब्रीडिंग के लिये उपयुक्त पाया है। लायन ब्रीडिंग कार्यक्रम में भागीदारी करने के परिणामस्वरूप यह जिम्मेदारी वन विहार राष्ट्रीय उदयान को मिली है।