Friday, November 22, 2024
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति अपने आप में परिपूर्ण है : डॉ. रविन्द्र कान्हेरे

by Newz Dex
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‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विद्यालय स्तर पर क्रियान्वयन’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन

न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र, 1 सितम्बर। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विद्यालय स्तर पर क्रियान्वयन’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। संस्थान द्वारा आयोजित ग्यारहवें व्याख्यान में विद्या भारती के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं मध्य प्रदेश शासन की प्रवेश एवं शुल्क विनियामक समिति के अध्यक्ष डॉ. रविन्द्र कान्हेरे मुख्य-वक्ता रहे। संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने विषय की प्रस्तावना रखते हुए कहा कि विगत एक हजार वर्ष में भारतीय शिक्षा पद्धति में जो पाश्चात्य और इस्लामी भौतिकवाद, भोगवाद और व्यवस्थावाद का वर्चस्व बढ़ा, उससे भारतीय जीवन में मानव मूल्यों का ह्रास हुआ।

भारत का स्वतंत्रता संग्राम सांस्कृतिक जीवन मूल्यों की जागृति के लिए लड़ा गया था परन्तु स्वतंत्रता के समय साम्प्रदायिक दुराग्रहों ने और भारत के समझौतावादी नेतृत्व ने भारत की शिक्षा पद्धति को संस्कारों से अलग रखकर भौतिकवाद की तरफ मोड़ दिया। परिणामतः आज भारत और उसकी शिक्षा पद्धति जीवन मूल्यों और मानव मूल्यों से रिक्त है। वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति शिक्षा की उस भोगवादी दृष्टि पर अंकुश लगाकर उसे जीवन मूल्यों से परिपूर्ण करने का एक स्तुत्य प्रयास है। इस अवसर पर सरस्वती शिशु विद्या मंदिर धमनोद (मध्य प्रदेश) के प्राचार्य अनिल शर्मा ने ‘‘हमें फिर से धरा पर ज्ञान की गंगा बहानी है’’ गीत प्रस्तुत किया।

सुविख्यात शिक्षाविद् डॉ. रविन्द्र कान्हेरे ने अपने व्याख्यान में कहा कि नई शिक्षा नीति अपने आप में परिपूर्ण है, लेकिन किसी भी योजना का क्रियान्वयन सबसे कठिन होता है। इसके लिए जरूरी होता है सभी लोग जो इस योजना को बनाने में लगे हैं, वे इसका विचार करें। चुनौतियां आएंगी, परिवर्तन भी करने होंगे। कैसे उन्हें पूरा करेंगे, इस पर विचार करना है। उन्होंने विद्यालयों की पुर्नसंरचना, सामग्री विकसित करना, शिक्षकों और आचार्यों को प्रशिक्षण देना, शिक्षा प्रणाली, मूल्यांकन इत्यादि पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सभी राज्यों में एक मानिटरिंग कमेटी का गठन होना चाहिए। हर विद्यालय में ऐसी कमेटी का अध्ययन होना चाहिए जो शिक्षा नीति का बिन्दुवार अध्ययन करे और सुनिश्चित करे कि सभी आवश्यकताओं को पूरा कर लिया गया है या नहीं। इन पर चिंतन अभी से कर लेंगे तो नीति का क्रियान्वयन आसानी से हो सकेगा।

डॉ. कान्हेरे ने कहा कि प्रायः देखने में आता है कि छोटे बच्चे विद्यालय जाते हुए रोते हैं। कुछ जगह तो समय व्यतीत करने के लिए बच्चों को भेज दिया जाता है। विद्यालय ऐसा स्थान है जहां बच्चे को आनंद महसूस हो। हमें विद्यालयों में ऐसा परिवेश देना होगा जिससे बच्चा वहां जाकर आनंदानुभूति अनुभव कर सके। 11वीं व 12 वीं कक्षा में विषय का लचीलापन रखा गया है। विज्ञान संकाय का विद्यार्थी कला संकाय के विषय ले सकेगा और कला संकाय का विद्यार्थी भी यदि विज्ञान के किसी विषय में रुचि है तो वह ले सकेगा। ऐसे में क्रेडिट ट्रांसफर सिस्टम कार्य करेगा। इस पर हमें अभी से विचार करना होगा।

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में केवल पाठ्य सामग्री नहीं होगी बल्कि सम-सामयिक विषय से जुड़ी हुई सामग्री होगी। शिक्षा नीति में मूल्य आधारित शिक्षा हो, भारतीय ज्ञान परंपरा आधारित शिक्षा हो, चरित्र निर्माण भी हो, इन कार्यों को करने के लिए वर्तमान पुस्तकें पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिए पाठ्यक्रम बनाना और पाठ्यक्रम आधारित पुस्तकें तैयार करना, यह बहुत बड़ा दायित्व है, जिसे समय-सीमा में किया जाना है। विद्यालय स्तर पर पाठ्यक्रम के अनुसार विषय से संबंधित चीजों को जो लिखा है, वही नहीं पढ़ाया जाना है बल्कि शिक्षक का दायित्व भी है कि उस विषय से संबंधित स्थानीय सामग्री तथा ऐसी बातें जो मूल्य आधारित हों, उसे उस कंटेंट में जोड़े। इसलिए बहुत आवश्यक हो जाता है कि स्थानीय स्तर पर जो कहावतें, लोकोक्तियां, वहां की भाषा, व्यवहार, विशेषताएं, ऐतिहासिक स्थल का संकलन आज से ही होना चाहिए, जिससे नई पाठ्य पुस्तक की उस सामग्री में जोड़ना है, यह हम ठीक से कर पाएं।

उन्होंने कहा कि हमें ऐसे शिक्षकों का चयन करना होगा जिनकी लिखने में रुचि है, उन्हें अभी से इस कार्य में जुट जाना होगा ताकि जब नीति लागू होगी तब पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध होने पर स्थानीय सामग्री पूर्ण विकसित फार्म में हमारे विद्यालयों में उपलब्ध हों। शिक्षण प्रशिक्षण में देखना होगा कि शिक्षा में आधुनिक तकनीक को सम्मिलित किया जाए। इसके लिए ई-लर्निंग प्रशिक्षण भी आवश्यक है। शिक्षक प्रशिक्षण में विषय को सरलता, निरंतरता से रखना, उसकी रुचि बनाए रखना, बार-बार प्रश्न पूछना जिससे उसकी प्रतिभागिता होती रहे, इन सब चीजों को यदि हम शामिल करते हैं तो ही बच्चा कक्षा में सही तरह से हमारी बात सुनता है। डॉ. रामेन्द्र सिंह ने व्याख्यान में अतिथि एवं देशभर से जुड़े सभी श्रोताओं तथा व्याख्यान को समाज तक पहुंचाने में मीडिया का भी धन्यवाद किया और सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना के साथ व्याख्यान का समापन हुआ।

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