दरिद्रता में समस्त विपत्तियों का वास है : प. विजय शंकर मेहता
भागवत प्राप्ति के लिए अंतःकरण शुद्ध होना चाहिए : डा. शाश्वतानंद
कथा के अंतिम दिन भंडारे का आयोजन
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। गीता की जन्मस्थली कुरुक्षेत्र में संत महापुरुषों के सान्निध्य में पहली बार अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन कुरुक्षेत्र द्वारा आयोजित पांच दिवसीय श्री अग्र भागवत कथा का मंगलवार को समापन हुआ। महाराजा अग्रसेन के जीवन के घटनाक्रमों पर आधारित कथा के पांचवें दिन जयराम विद्यापीठ के रोहित कौशिक, डी.एस.पी. गुरमेल सिंह एवं डा. शाश्वतानंद महाराज ने व्यासपीठ पर पूजन तथा माल्यार्पण किया। कथा के अंतिम दिन अनंत राम, मदन लाल बंसल की तरफ से भंडारा तथा मनसा देवी राईस मिल निसिंग, अम्बे एग्रो फ़ूड इण्डिया प्रा. लि. कुरुक्षेत्र, अनंत राम, मदन लाल बंसल व देवराज गर्ग शाहबाद द्वारा आरती की गई।
इस मौके पर रोहित कौशिक व अन्य अतिथियों ने दीप प्रज्वलित किया। संस्था के राष्ट्रीय संगठन मंत्री खरैती लाल सिंगला, जिला अध्यक्ष अजय गोयल, महेंद्र सिंगला एवं डा. अनूप सिंगला ने कथा में सहयोग करने वाले लोगों को सम्मानित किया। व्यासपीठ पर विराजमान पं. विजय शंकर मेहता ने कथा के अंतिम दिन कथा में कहा कि जब अपनों से खुश नहीं होते हैं तो परमात्मा से ख़ुशी कैसे मिलेगी। इस लिए जीवन में जो भी धन कमाओ उस में से कुछ हिस्सा दान अवश्य करना चाहिए। प. विजय शंकर मेहता ने कहाकि अगर भगवान ने मनुष्य को कुछ दिया है तो लेंगे भी। अगर मनुष्य को जीवन में मिल जाए तो बावला नहीं होना चाहिए तथा छूट जाए तो दुःखी नहीं होना चाहिए।
उन्होंने कथा में महाराजा अग्रसेन द्वारा जेल निरीक्षण का प्रसंग सुनाया। उन्हें जेल में पुराना साथी शाकुन्त ब्राह्मण मिला। बताया कि जीवन में दरिद्रता में ही समस्त विपत्तियों का वास है। उन्होंने बताया कि लक्ष्मी के 10 लक्षण परिश्रम, ईमानदारी, रजोगुण, सम्पदा, शांति, प्रसन्नता, उल्लास व विनोद इत्यादि हैं। जो अपनों को देखकर खुश नहीं होते उनके लिए जीवन के सभी सुख व्यर्थ हैं। समापन समारोह में प. विजय शंकर मेहता ने भगवान अग्रसेन जी के संबंध में विवरण देते हुए उनके गुणों को जीवन में अपनाने के लिए समाज के लोगों को प्रेरित किया। जिससे जीवन में सफलता मिलने की भी बात कही। उन्होंने कहा कि अग्र भागवत भगवान अग्रसेन के जीवन पर आधारित ऋषि जैमिनी द्वारा असली ताम्रपत्र पर अंकित है।
महाराजा अग्रसेन के शासन काल में अपने शौर्य और पराक्रम का परिचय भी दिया था। उनका विवरण सादगी पूर्ण जीवन यापन करने करते हुए उस काल में लोकतंत्र को महत्व दिया था। उन्होंने समानता का रूप प्रस्तुत करते हुए उनके राज्य में सभी गरीब तबके के लोगों को एक ईट -एक रुपया के आधार पर गरीबों का उद्धार करने की व्यवस्था की थी। पं. मेहता ने सफल गृहस्थ जीवन के लिए उपस्थित श्रोताओं को कई गुण बताए। इसे अपनाने से गृहस्थ जीवन में कभी भी कोई क्लेश नहीं होता। अग्रसेन के वैराग्य जीवन का उदाहरण देते हुए कहा कि इंसान को बुढ़ापे में संसार के प्रति आशक्ति छोड़ देना चाहिए। इंसान जो जीवन में अर्जित किए है उसमें से देश और समाज हित के लिए देना चाहिए। कथा के समापन पर डा. शाश्वतानंद ने कहाकि भागवत प्राप्ति के लिए अंत:करण शुद्ध होना चाहिए। आध्यात्मिक रूप से भगवान राम हमारी आत्मा है। इस अवसर रतन लाल बंसल, श्री वैश्य अग्रवाल पंचायत के प्रधान चंद्रभान गुप्ता, जंग बहादुर सिंगला, महाराजा अग्रसेन शिक्षा सम्मान योजना के प्रधान विनय गुप्ता, कपिल मित्तल, राजेश सिंगला, मुनीश मित्तल इत्यादि सहित नगर के कई गणमान्य नागरिक मौजूद थे।