वैश्विक परिप्रेक्ष्य में आज भारत को भारत की दृष्टि से देखने की जरूरत है न कि पश्चिमी देशों की दृष्टि से
मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में प्रकृति एवं पर्यावरण केंद्रित विकास की भूमिका विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का संपन्न।
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। मानव नहीं प्रकृति केन्द्रित विकास होना चाहिए तभी भारत दुनिया का विश्वगुरु बनेगा। अपनी परंपराओं, संस्कृति और संस्कारों के प्रति अथाह श्रद्धा होनी चाहिए तभी भारत का विकास होगा। यह विचार प्रसिद्ध चिंतक, विचारक एवं दार्शनिक के. एन. गोविंदाचार्य ने मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा आश्रम परिसर में को आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में प्रकृति एवं पर्यावरण केंद्रित विकास की भूमिका विषय पर बतौर मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किए। आश्रम परिसर में पहुंचने पर के. एन. गोविंदाचार्य के नेतृत्व में यमुना दर्शन एवं प्रकृति केंन्द्रित विकास पर संवाद यात्रा का मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा भव्य स्वागत किया गया । संगोष्ठी का शुभारंभ भारतीय संस्कृति एवं परंपरा के अनुसार श्री के.एन. गोविन्दाचार्य, मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ श्रीप्रकाश मिश्र, डॉ हिम्मत सिन्हा एवं आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ बलदेव धीमान ने संयुक्त रुप से दीपप्रज्जवलन के साथ किया।
के. एन. गोविंदाचार्य जी ने कहा कि भारत देश प्राचीनकाल से सत्ता से नहीं संस्कारों एवं जीवनमूल्यों से चलता है। कुछ वर्ष पहले पश्चिमी देशों के प्रभाव के कारण मानव केन्द्रित विकास पर ध्यान दिया रहा है, जिसके कारण हमारी आधारभूत संरचना बहुत अधिक प्रभावित हुई है। आज जरूरत है कि विकास मानव केन्द्रित न होकर प्रकृति केन्द्रित हो तभी भारत आगे विकास कर पायेगा। पश्चिमी देशों से आने वाली प्रदूषित हवा ने भारत को बहुत अधिक क्षति पहुचाई है। इस दूषित वातावरण व संस्कृति को रोकने के लिए समाज के सभी वर्ग को एक साथ मिलकर काम करना होगा।गोविन्दाचार्य ने कहा-हमने पिछले वर्षों में बहुत से रसायनिक दवाईयों का प्रयोग किया है, जिसके कारण सारा प्रकृति का चक्र खराब हो गया। और धरती का भारी नुकसान हो गया है। इसलिए भारत को भारत की दृष्टि से देखने की आवश्यकता है न कि पश्चिमी देशों की दृष्टि से। भारत में धरती माता और गौ माता का विशेष महत्व है। जिसके कारण प्रकृति संरक्षित रहती है और यह चक्र चलता है।भूगोल की परिभाषा देते हुए
गोविन्दाचार्य ने कहा कि भाषा, भूषा, भोजन, भवन, भेषज से भूगोल बना है। दुनिया में विविधता का सम्मान होना चाहिए। भारत की संस्कृति विविधता में एकता को धारण किये हुए है। उन्होंने अपनी अपनी प्रकृति एवं पर्यावरण केंद्रित विकास जनचेतना यात्रा के उद्देश्यों के बारे में विस्तार से बताया और सभागार में उपस्थित लोगों को जागरूक करते हुए कहा कि भारत आत्मनिर्भर भारत तब ही बन पायेगा जब हम प्रकृति केन्द्रित विकास की ओर जाएंगें और अपनी परंपरा व संस्कृति को साथ लेकर काम करेंगे। आज जरूरत है कि हम रसायनिक उर्वरकों त्याग कर जैविक खेती को बढ़ावा दें तथा भारी संख्या में पेड़ लगाकर धरती माता व गौ माता की सेवा करें। अति विशिष्ट अतिथि श्रीकृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बलदेव धीमान ने आयुर्वेद के महत्व के बारे में विस्तार से बताया और लोगों को आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को अपनाने के लिए प्रेरित किया।
के. एन. गोविन्दाचार्य जी को मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा सामाजिक, आध्यत्मिक,प्रकृति एवं पर्यावरण के क्षेत्र में विशष्ट कार्य एवं अनवरत जनचेतना के कार्यक्रम एवं यात्राओं के लिए मातृभूमि गौरव सम्मान से विभूषित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा भारत गांवों में बसने वाला देश है और गांव को संपूर्ण आत्मनिर्भर बनाए बिना आत्मनिर्भर भारत की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसलिए आज आत्मनिर्भर गांव से आत्मनिर्भर भारत बनाने की ओर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। प्रकृति एवं पर्यावरण केंद्रित विकास ही आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगा. मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा भारतीय संस्कृति,प्रकृति एवं पर्यावरण सरंक्षण के क्षेत्र में विशेष कार्य करने के लिए मातृभूमि गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। आभार ज्ञापन कार्यक्रम संयोजक रामपाल आर्य ने किया।के.एन. गोविन्दाचार्य जी ने आश्रम परिसर में वृक्षारोपण किया।कार्यक्रम में जयनारायण शर्मा, डॉ सुरेंद्र मोहन गुप्ता, डॉ हवा सिंह, सुबोहि खान जसवीर राणा बाहरी, नरेंद्र शर्मा, सतपाल, सत्यवान कौशिक, यशपाल, रामपाल शर्मा, सुभाष चौहान, कर्नल एस. एन. शर्मा, डॉ ताराचंद शर्मा,डॉ राजीव क्वात्रा,ओमप्रकाश अरोड़ा, पुष्पेंद्र सिंगला,अनेक सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक संस्थाओं के प्रतिनिधि सहित अनेक गणमान्यजन उपस्थित रहे.