रेवाड़ी के डीसी से अनुमति मिली तो गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों के साथ निकाली जाएगी तिरंगा यात्रा
मिलने के बाद बीत गई पौनी सदी,मगर आजादी की जंग लड़ने वाले आजाद हिंद फौज के गुमनाम सैनिकों व परिवार वाले सम्मान से वंचित
न्यूज डेक्स संवाददाता
रेवाड़ी। एक ओर देशभर में आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर देशभर में आजादी का अमृत महोत्सव मनाकर स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान देने और तिरंगा यात्रा जैसे आयोजन किए जा रहे हैं,दूसरी ओर भारत के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों में आजाद हिंद फौज के भुलाए गए वीर सपूतों की लड़ाई लड़ने वाले श्रीभगवान फौगाट को तिरंगा यात्रा निकालने की अनुमति नहीं मिल रही है। फौगाट का कहना है कि भारत को आजादी मिले पौनी सदी बीत चुकी है और भारत माता को अंग्रेजी की दास्ता से आजाद कराने वासी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सेना के सभी वीर सपूतों को आज तक देश की सरकारें भुलाए बैठी है।
श्रीभगवान फौगाट का कहना है कि वह रेवाड़ी में आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान आजाद हिंद फौज के गुमनाम शहीदों और भुलाए गए स्वतंत्रता सेनानी आईएनए के सम्मान में तिरंगा यात्रा निकालने की अनुमति जिला प्रशासन से मांग रहे हैं। उन्होंने इसके लिए लिखित पत्र रेवाड़ी के डीसी के नाम सौंपा है,मगर अभी तक उन्हें गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि और सम्मान में आयोजित की जाने वाली इस यात्रा के लिए अनुमति नहीं मिली है। काबिलेगौर है कि श्रीभगवान फौगाट दिल्ली और चंडीगढ़ में अनेकों बार पत्र व्यवहार गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों और इनके परिवारों को उचित सम्मान दिलाने के लिए कर चुके हैं। उन्होंने कई गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों का रिकार्ड इनके घरों तक और अधिकारियों तक पहुंचाया है।
फौगाट का कहना है कि भारत को आजादी मिलने से दो साल पहले आजाद हिंद फौज और इसके सैनिकों की भूमिका को हर सच्चे भारत वासी ने सिर झुका कर सलाम किया और उन्हें सम्मान की नजरों से आज तक देखा जाता है,मगर लंबे अर्से तक आजाद हिंद फौज के सैनिकों को स्वतंत्रता सेनानी ना मानने की भूल और उसके दशकों बाद इस भूल को जैसे तैसे सुधार कर इन्हें सम्मान तो दिया गया था,मगर ब्रिटिश सेना से बगावत कर आजाद हिंद फौज के मिशन में शामिल हुए इन सैनिकों में से अनेकों को आज तक भुलाया हुआ है।
श्रीभगवान फौगाट का कहना है कि इनमें से कइयों का रिकार्ड वह खोज कर सरकार और उच्चाधिकारियों तक पहुंचा चुके हैं,मगर इस अभी तक जिन का रिकार्ड या आजादी की जंग में भारत के लिए लड़ने वाले इन सैनिकों की उस पहचान को सरकार तक पहुंचाया गया गया,उन्हें भी अभी तक सम्मान नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि क्या इन गुमनाम वीर सपूतों और इनके परिवार वालों के सम्मान में तिरंगा यात्रा तक नहीं निकाली जा सकती। फौगाट ने कहा कि वह इन परिवारों के साथ एक तिरंगा यात्रा निकालना चाहते हैं,ताकि इन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सके। उन्होंने कहा कि देश की सरकारों,अधिकारियों के सामने बड़ा सवाल तो यह है कि आजादी के बाद जिन स्वतंत्रता सेनानियों को अब तक चिह्नित किया जा चुका है,क्या अंग्रेजों से लड़ने वाली आजाद हिंद फौज के सैनिकों की संख्या इतनी ही थी।
उन्होंने कहा कि आजाद हिंद फौज के अधिकारियों के हवाले से तथ्य सामने आ चुके हैं कि ब्रिटिश आर्मी ने 25 सितंबर, 1945 की रात को पश्चिम बंगाल के नीलगंज इलाके में आजाद हिंद फौज के करीब 2,300 सैनिकों पर मशीनगन चलाकर जलियांवाला बाग जैसी क्रूरता का परिचय दिया था। ब्रिटिश हुकूमत ने इस घृणित कांड को दबाने का प्रयास भी किया था।इसी जगह आजादी के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर जूट एंड एलायड रिसर्च स्थापित किया गया था। उन्होंने बताया कि इसी परिसर में पहले आर्मी कैंप था,जहां ब्रिटिश आर्मी के अफसर रहते थे। सितंबर 1945 के दौरान इस बागान में युद्धबंदी लाए गए। इन युद्धबंदियों में आजाद हिंद फौज के सिपाही थे,जिन्हें विभिन्न हिस्सों से पकड़ कर यहां तक लाया गया था।
इसके बाद 25 सितंबर की घिनौती रात में ब्रिटिश राज का क्रूरतम चेहरा सामने आया और ब्रिटिश आर्मी ने इन युद्धबंदियों की सामूहिक हत्या कर डाली,अगले रोज प्रातःकाल में यह आर्मी कैंप चौतरफा भारतीय वीर सपूतों के रक्त लाल हो गया था और ना केवल यह कैंप,बल्कि नजदीक में बहने वाली नौआई नदी का रास्ता भी रक्तरंजित हो गया था,क्योंकि इस नरसंहार के बाद ब्रिटिश आर्मी इन सब सैनिकों के शवों नदी में बहते पानी के हवाले कर दिए थे।
श्रीभगवान फौगाट का कहना है कि आजाद हिंद फौज (आईएनए) के कर्नल जीएस ढिल्लन ने एक पत्र में इस हत्याकांड का उल्लेख किया था। कोलकाता यूनिवर्सिटी से नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर रिसर्च कर चुके डॉ. जयंत चौधरी ने अभी अपने शोध में इस घटना का जिक्र है। डा.चौधरी ने अपनी रिसर्च में पाया था कि आजाद हिंद फौज के सैनिकों के शवों को फौजी ट्रकों में भरकर नदी तक लाया गया और इनमें से बहुत से शव ऐसे भी थे जोकि जंगलों में फेंके गए थे।
फौगाट का कहना है कि इस तरह के कई घृणित कृत्यों का सामना नेताजी के सैनिकों और युद्धबंदियों को करना पड़ा,इनमें अनेकों सौभाग्यशाली रहे,जोकि जंगलों और देश के दूसरे हिस्सों से जैसे तैसे अपनी जान बचाने में सफल रहे थे। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यह सैनिक अपने प्रपत्र या आजाद हिंद फौज की पहचान के साथ घर तक या दूसरी जगहों तक पहुंचेंगे होंगे ? वो भी उन हालात में जब ब्रिटिश सेना और क्रूर हुकूमत नेताजी के सैनिकों को देशद्रोही मान कर ढूंढ रही थी। नेताजी के जाने के बाद वो दौर आजाद हिंद फौज के सैनिकों के लिए बेहद विकट और विपरीत हालातों से भरा हुआ था। फौगाट ने कहा कि जो गलतियां अब तक हुई,उन्हें अब भी सुधारने का मौका देश और देश की सरकारों के पास है,उन्हें आजाद हिंद फौज के गुमनाम शहीदों और भुलाए गए स्वतंत्रता सेनानी परिवारों की सुध लेनी चाहिए। इसी मकसद से उन्होंने गुमनाम और भुलाए गए आजाद हिंद फौज के शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान तिरंगा यात्रा निकालने का बीड़ा उठाया है।