Sunday, November 24, 2024
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प्राचीन वैदिक कालीन भारत शिक्षा, संस्कृति एवं जीवनमूल्यों की दृष्टि से संपूर्ण संसार में अग्रणी था-आचार्य नैष्ठिक

by Newz Dex
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मातृभूमि शिक्षा मंदिर में आजादी के अमृतोत्सव के उपलक्ष्य में शिक्षा संवाद कार्यक्रम सम्पन्न

न्यूज डेक्स संवाददाता

कुरुक्षेत्र। मातृभमि सेवा मिशन द्वारा संचालित मातृभूमि शिक्षा मंदिर में आजादी के अमृतोत्सव के उपलक्ष्य में आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में भारतीय सनातन वैदिक जीवन मूल्यों से परिपूर्ण शिक्षा की भूमिका पर शिक्षा संवाद कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ भारत माता के चित्र पर माल्यापर्ण एवं पुष्पार्चन से हुआ। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि गुरुकुल कालवा, जींद के परमाध्यक्ष आचार्य राजेन्द्र नैष्ठिक, विशिष्ट अतिथि गुरुकुल तक्षशिला के प्रबंध निदेशक रामपाल आर्य और अध्यक्षता मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने किया।

 गुरुकुल कालवा, जींद के परमाध्यक्ष आचार्य राजेन्द्र नैष्ठिक ने कहा कि आधुनिक युग आज इतनी तेजी से चल रहा है कि इस इस युग को आधुनिकता का क्रांतिकारी युग बोला जा सकता है।किसी भी समय में बदलाव अपने आप नहीं आते, बदलाव लाए जाते हैं और इनके पीछे की यह प्रक्रिया शिक्षा के बिना असंभव है। आधुनिक युग में शिक्षा का महत्व पहले की तुलना में काफी बढ़ गया है। लोगों को अपना जीवन जीने में और अपने जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए शिक्षा की काफी जरूरत है। शिक्षा जीवन को बेहतर बनाने वाली संभावनाओं तक पहुंचती है। आज सिर्फ ज्ञान प्राप्त करना ही काफी नहीं औद्योगिकरण के युग में ज्ञान के प्रयोग पर अधिक बल दिया जाता है। इसे व्यावहारिक ज्ञान कहा गया है। इसलिए शिक्षा के साथ-साथ विभिन्न व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दिए जाए, जिससे बच्चे छात्र जीवन में ही अपने व्यावसायिक समस्याओं के समाधान प्राप्त कर कुशल बन सके। प्राचीन वैदिक कालीन भारत शिक्षा, संस्कृति एवं जीवनमूल्यों की दृष्टि से संपूर्ण संसार में अग्रणी था।

शिक्षा संवाद कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि शिक्षा मनुष्य को पशु से ऊपर उठाने वाली प्रक्रिया है। पशु अज्ञानी होता है उसे सही या गलत का बहुत कम ज्ञान होता है। अशिक्षित मनुष्य भी पशुतुल्य होता है। वह सही निर्णय लेने में समर्थ नहीं होता है। लेकिन जब वह शिक्षा प्राप्त कर लेता है तो उसकी ज्ञानचक्षु खुल जाती है। तब वह प्रत्येक कार्य सोच-समझकर करता है। उसके अंदर जितने प्रकार की उलझनें होती हैं, उन्हें वह दूर कर पाने में सक्षम होता है। शिक्षा का मूल अर्थ यही है कि वह व्यक्ति का उचित मार्गदर्शन करे। जिस शिक्षा से व्यक्ति का सही मार्गदर्शन नहीं होता, वह शिक्षा नहीं बल्कि अशिक्षा है। आज आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में भारतीय जीवनमूल्यों से परिपूर्ण शिक्षा की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। आज आवश्यकता है कि शिक्षा व्यवस्था में मातृभाषा को अधिक से अधिक महत्व दिया जाए, जिससे वैदिक एवं आधुनिक शिक्षा सभी के लिए ग्राह्य हो सके।

विशिष्ट अतिथि गुरुकुल तक्षशिला के प्रबंध निदेशक रामपाल आर्य ने कहा कि शिक्षा हमारे इतिहास, संस्कृति और हमारे अतीत के बारे में जानने में हमारी मदद करती है। समाज में सभी को जीवन में शिक्षा की आवश्यकता और उद्देश्य को समझना चाहिए। कार्यक्रम का समापन शांति पाठ से हुआ। कार्यक्रम में आचार्य भीमदेव, ब्रह्मचारी जसवंत, गरप्रीत सिंह, सतीश कुमार सहित अनेक आश्रम के सदस्य एवं गणमान्यजन उपस्थित रहे।

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