मातृभूमि शिक्षा मंदिर में हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में शिक्षा संवाद कार्यक्रम संपन्न
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। मातृभूमि शिक्षा मंदिर में हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में शिक्षा संवाद का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ वैदिक मंत्रों एवं स्वस्ति वाचन से हुआ। मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि अपनी भाषा ही मजबूती एवं सुदृढ़ प्रतिष्ठा का आधार मातृभाषा है। बच्चों के भविष्य की चिंता इसी प्रकाश में करनी चाहिए। यदि बच्चा अपने समाज की भाषा गंभीरतापूर्वक नहीं सीखता तो वह भले ही कितना ही बड़ा आदमी बन जाये, उसके आत्मवान मनुष्य बनने में संदेह है। हिंदी भारत के लिए केवल एक भाषा नही बल्कि संस्कार, संस्कृति एवं आत्मगौरव का प्रतीक है।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि साहित्य, संस्कृति और सद्भाव की भाषा हिंदी को, व्यापार-उद्योग, तथा प्रौद्योगिकी की भाषा बनाना चाहिये, जिससे हिंदी किसी अनुशंसा से नहीं, अपितु अपनी शक्ति से संयुक्त राष्ट्र की भाषा बन सके। कोई भी राष्ट्र हो या मनुष्य उसकी आत्मनिर्भरता आर्थिक ही नहीं, भावनात्मक और मानसिक भी होती है। यूरोपीय, अमेरिकी, जर्मनी, जापान, रूसी, कोरियाई आदि देशों के लोगों के विकास, आत्माभिमान और आत्मविश्वास का रहस्य स्व-भाषा के प्रति प्रेम, सम्मान एवं सर्वोच्च प्राथमिकता देना है। वे तमाम विज्ञान-तकनीक और आर्थिकी के साथ अपनी भाषा-संस्कृति के संग जीवंत रूप से गौरव एवं गर्व के साथ खड़े दिखते हैं। हमारे साथ ऐसा नहीं हो रहा है, क्योंकि हमने राष्ट्रीय अस्मिता, स्व-भाषा एवं स्व-संस्कृति का महत्व नहीं समझा, जबकि यही चीज हमें पशु जगत से अलग करती है, हमारी स्वतंत्र पहचान बनाती है, राष्ट्र का गौरव बढ़ाती है।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि हिन्दी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है। भारत और अन्य देशों में 70 करोड़ से अधिक लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। महात्मा गांधी ने सही कहा था कि राष्ट्र भाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। आज जरूरत इस बात की है कि हम विधि, विज्ञान, वाणिज्य तथा नवीनतम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पाठ सामग्री उपलब्ध कराने में तेजी लाएँ। इसके लिए समवेत प्रयास की जरूरत है। यह तभी संभव है जब लोग अपने दायित्वबोध को गहराइयों तक महसूस करें और सुदृढ़ इच्छाशक्ति के साथ संकल्पित हों। आज समय की माँग है कि हम सब मिलकर हिंदी के विकास की यात्र में शामिल हों ताकि तमाम निकषों एवं प्रतिमानों पर कसे जाने के लिये हिंदी को सही मायने में विश्व भाषा की गरिमा प्रदान कर सकें।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामपाल आर्य ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक विनिमय के क्षेत्र में हिंदी के अनुप्रयोग का सवाल है तो यह देखने में आया है कि हमारे देश के नेताओं ने समय-समय पर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर हिंदी में भाषण देकर उसकी उपयोगिता का उद्घोष किया है। इक्कीसवीं सदी बीसवीं शताब्दी से भी ज्यादा तीव्र परिवर्तनों वाली तथा चमत्कारिक उपलब्धियों वाली शताब्दी सिद्ध हो रही है। विज्ञान एवं तकनीक के सहारे पूरी दुनिया एक वैश्विक गांव में तब्दील हो रही है और स्थलीय व भौगोलिक दूरियां अपनी अर्थवत्ता खो रहीं हैं। वर्तमान विश्व व्यवस्था आर्थिक और व्यापारिक आधार पर ध्रुवीकरण तथा पुनर्संघटन की प्रक्रिया से गुजर रही है। ऐसी स्थिति में विश्व के शक्तिशाली राष्ट्रों के महत्त्व का क्रम भी बदल रहा है। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने हिंदी में अनेक राष्ट्रभक्ति के गीत सुनाए, सर्वक्षेष्ठ गीत प्रस्तुति के लिए भूमिक को मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा स्मृति चिह्न और अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में दिनेश कुमार, नीरु, अध्यापक संतीश कुमार, गुरप्रीत सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।