न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। भारतीय पर्व और त्योहार भारतीय सभ्यता और संस्कृति के दर्पण हैं, जीवन के श्रृंगार हैं, राष्ट्रीय उल्लास, उमंग और उत्साह के प्राण हैं, विभिन्नता की इंद्रधनुषी आभा में एकरूपता और अखंडता के प्रतीक हैं और जीवन के अमृत उत्सव हैं। वामन द्वादशी भारतीय संस्कृति की लोकआस्था एवं परम्परा का पर्व है। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने भारतीय सनातन संस्कृति के महत्वपूर्ण पर्व वामन द्वादशी के अति पावन अवसर पर व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीहरि विष्णु अत्यंत दयालु हैं। वे ही नारायण, वासुदेव, शिव, कृष्ण, परमात्मा, ईश्वर, शाश्वत, हिरण्यगर्भ, अच्युत आदि अनेक नामों से पुकारे जाते हैं। भारतीय सनातन वैदिक पुराणों में वामन को भगवान विष्णु का पांचवा अवतार माना गया है।
वामन देव ने भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी को अभिजित मुहूर्त में श्रवण नक्षत्र में माता अदिति व कश्यप ऋषि के पुत्र के रूप में जन्म लिया था। महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ वामन उपनयन संस्कार कराते हैं वामन बटुक को महर्षि पुलह ने यज्ञोपवीत, अगस्त्य ने मृगचर्म, मरीचि ने पलाश दण्ड, आंगिरस ने वस्त्र, सूर्य ने छत्र, भृगु ने खड़ाऊं, गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डलु, अदिति ने कोपीन, सरस्वती ने रुद्राक्ष माला तथा कुबेर ने भिक्षा पात्र प्रदान किए। तत्पश्चात भगवान वामन पिता से आज्ञा लेकर बलि के पास जाते हैं। उस समय राजा बलि नर्मदा के उत्तर-तट पर अंतिम यज्ञ कर रहे होते हैं।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि भारतीय पर्व और त्योहार गहन सांस्कृतिक अध्ययन, पौराणिक आख्यान, लोकरंजनात्मक वैज्ञानिक दृष्टिकोण, राजनीतिक पुनर्जागरण आर्थिक संवर्धन एवं उत्साह पूर्ण सामाजिक जीवन के अभिरात अभिव्यंजक हैं। पर्वों से हमारे जीवन में परिवर्तन और उल्लास का संचार होता है। पर्व किसी भी जाति और देश उसके अतीत से सम्बन्ध जोड़ने का भी उत्तम साधन हैं। जीवन में पग पग पर आने वाली कठिनाइयों तनाव और पीड़ा को भुलाने का साधन भी त्योहार ही हैं। भारत त्यौहारों की भूमि है। भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही उत्सव और त्यौहारों की परम्परा रही हैं। इसमें विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग रहते है और इस प्रकार यहाँ कई धार्मिक त्यौहार मनाये जाते हैं। उत्सव धर्म का एक अभिन्न अंग हैं।
डॉ. मिश्र ने कहा कि वामन अवतार के विषय में श्रीमद्भगवदपुराण में एक कथा है। वामन अवतार कथानुसार देव और दैत्यों के युद्ध में दैत्य पराजित होने लगते हैं। पराजित दैत्य मृत एवं आहतों को लेकर अस्ताचल चले जाते हैं और दूसरी ओर दैत्यराज बलि इंद्र के वज्र से मृत हो जाते हैं तब दैत्यगुरु शुक्राचार्य अपनी मृत संजीवनी विद्या से बलि और दूसरे दैत्य को भी जीवित एवं स्वस्थ कर देते हैं। राजा बलि के लिए शुक्राचार्यजी एक यज्ञ का आयोजन करते हैं तथ अग्नि से दिव्य रथ, बाण, अभेद्य कवच पाते हैं इससे असुरों की शक्ति में वृद्धि हो जाती है और असुर सेना अमरावती पर आक्रमण करने लगती है। इंद्र को राजा बलि की इच्छा का ज्ञान होता है कि राजा बलि इस सौ यज्ञ पूरे करने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करने में सक्षम हो जाएंगे, तब इंद्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और भगवान विष्णु वामन रुप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं। दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद कश्यपजी के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। तब भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन माता अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं तथा ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप धारण करते हैं।
डॉ. मिश्र ने कहा कि वामन अवतारी श्रीहरि, राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंच जाते हैं। ब्राह्मण बने श्रीविष्णु भिक्षा में तीन पग भूमि मांगते हैं। राजा बलि दैत्यगुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी अपने वचन पर अडिग रहते हुए, श्रीविष्णु को तीन पग भूमि दान में देने का वचन कर देते हैं। वामन रुप में भगवान एक पग में स्वर्गादि उर्ध्व लोकों को ओर दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लेते हैं। अब तीसरा पग रखने को कोई स्थान नहीं रह जाता है। बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। ऐसे में राजा बलि यदि अपना वचन नहीं निभाए तो अधर्म होगा। इसिलिए बलि अपना सिर भगवान के आगे कर देता है और कहता है तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने ठीक वैसा ही करते हैं और बलि को पटल लोक में रहने का आदेश करते हैं। बलि सहर्ष भवदाज्ञा को शिरोधार्य करता है। बलि के द्वारा वचनपालन करने पर, भगवान श्रीविष्णु अत्यन्त प्रसन्न होते हैं और दैत्यराज बलि को व र्मांगने को कहते हैं। इसके बदले में बलि रात-दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन मांग लेता है, श्रीविष्णु को अपना वचन का पालन करते हुए, पातललोक में राजा बलि का द्वारपाल बनना स्वीकार करते हैं। वामन द्वादशी का पर्व सेवा, साधना, समर्पण एवं सामाजिक सरोकार से जुड़ा है। यह पर्व हमे अपनी प्राचीन लोक परम्पराओं से जोड़ता है। यह पर्व हमें सामाजिक समरसता का संदेश देता है।