मनुष्य के हृदय में विश्वास होगा तो प्रभु दर्शन होंगे : राघव कृष्ण
भागवत कथा में भगवान श्री कृष्ण जन्म पर भक्तजनों ने लिया खूब आनंद
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। पितृ पक्ष में श्री जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी की प्रेरणा से श्री जयराम विद्यापीठ में चल रही भागवत पुराण की कथा के चौथे दिन कथा के प्रारम्भ में पानीपत से आए यजमान परिवार के पवन प्रकाश गुप्ता, अशोक सिंघल, शशि सिंघल, सुनील सिंघल, मुकेश गुप्ता, सुलक्षणा गुप्ता, अनिल गुप्ता, अनीता गुप्ता, पुनीत गुप्ता, रेखा, प्रवीण गुप्ता, किरण, राजेश गुप्ता व मीनू गुप्ता इत्यादि ने व्यासपीठ पर भागवत पुराण की विधिवत मंत्रोच्चारण के साथ पूजा अर्चना की। व्यासपीठ पर विराजमान विख्यात कथावाचक राघव कृष्ण महाराज ने एक प्रसंग की चर्चा करते हुए कहा कि हर पिता का धर्म है कि वह अपनी संतान को धर्म सिखाए और संतान का धर्म है कि बुढ़ापे में पिता को धर्म का काम कराएं। अगर आपकी संतान धर्म युक्त संस्कारी नहीं है तो उसके जिम्मेदार माता-पिता हैं।
उन्होंने बताया कि दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है घर और शिक्षा है उस परिवार का संस्कार। राघव कृष्ण ने कहा कि अपनी जीवन शैली को संस्कारित बनाओ। हम यदि अपने माता-पिता का सम्मान नहीं कर सके तो अपनी संतान से सम्मान की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं। माता ही बताती है कि परमपिता कौन है? आजकल हमें अपनी संतान को संस्कार लाने के लिए बाजार से धर्म-कर्म और वेद साहित्य की सीडी लानी पड़ती है। अगर जीवित माता पिता का सम्मान नहीं होता है तो पितृ पक्ष में किए कर्म व तर्पण व्यर्थ हैं। विद्यापीठ पर कथा के चौथे दिन भारी संख्या में मौजूद श्रद्धालुओं द्वारा भगवान श्री कृष्ण जन्म मनाया गया। कथावाचक राघव कृष्ण महाराज ने कहा कि भागवत कथा किसी इतिहास को सुनने का स्वरूप एवं कोई अनुष्ठान नहीं है बल्कि कथा आयोजन के स्थान पर संपूर्ण ब्रह्मांड के रचयिता साक्षात जगतपति जगन्नाथ ठाकुर जी महाराज भागवत स्वरूप में विराजमान रहते हैं।
यह कथा प्राणी के हृदय में रहने वाले क्रोध, क्लेश, लोभ, पाप आदि विकारों को निवृत करके भक्ति रसभाव से परिपूर्ण करती है। उन्होंने बताया कि वैदिक परंपरा में भगवान व्यास की अंतिम कृति श्रीमद् भागवत पुराण सनातन धर्म में सर्वश्रेष्ठ अनुष्ठान है। इसके श्रवण मात्र से ही मनुष्य के जीवन के सारे दुख संताप क्षण भर में ही दूर हो जाता हैं। राघव कृष्ण महाराज ने कथा में श्री कृष्ण महिमा का बखान करते हुए कहा कि भगवान के मंदिर में कभी भेदभाव नहीं होता, लेकिन मंदिरों में जाने के लिए सदगुरु का मार्गदर्शन होना चाहिए। मंदिरों में जाने से पूर्व मन साफ व निर्मल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि गायत्री मंत्र का जाप भी वही व्यक्ति कर सकता है जिसने गायत्री मंत्र की दीक्षा ग्रहण की हो।
राघव कृष्ण ने कहा कि भागवत कथा श्रद्धा से सुनने वाले लोग हमेशा पवित्र व निर्मल रहते हैं। सिर्फ अच्छे कार्य की प्रशंसा करने वाला ही मनुष्य का सच्चा प्रशंसक होता है। इंसान के बुरे काम की भी झूठी तारीफ करने वाला चाटुकार होता है। ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि जीवन में गलती होने के बाद उससे अनुभव प्राप्त कर दोबारा गलती न होने का प्रयत्न करने वाला प्राणी सर्वश्रेष्ठ और प्रभु का दास होता है। भगवान को पाना व उनके दर्शन करना मनुष्य के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। सबसे कठिन काम तो प्रभु के चरणों का प्रसाद पाना है और यह सिर्फ भक्ति व साधना से भगवत नाम के जाप से ही संभव है।
भक्त प्रहलाद का प्रसंग सुनाते हुए पुण्डरीक गोस्वामी ने कहा कि प्रहलाद का मतलब होता है दृढ़ विश्वास। अगर प्राणी के मन में पूर्ण विश्वास है तो प्रभु एक खंभे में भी प्राप्त हो सकते हैं। मनुष्य के हृदय में जैसा विश्वास होगा उसको प्रभु का वहीं पर दर्शन हो जाएगा। भगवान श्री कृष्ण के जन्म के अवसर पर भक्तजनों ने खूब आनंद लिया। पूरा मंदिर हाल नंद के आनंद भयौ जय कन्हैया लाल की आदि जयकारों से गूंज उठा। चौथे दिन की कथा समाप्त होने पर व्यासपीठ पर यजमान के परिवार के सदस्यों ने आरती की। इस मौके पर श्रवण गुप्ता, टेक सिंह लौहार माजरा, खरैती लाल सिंगला, के के कौशिक, राजेश सिंगला, पवन गर्ग, रोहित कौशिक, रणबीर भारद्वाज, राजेश शास्त्री, सतबीर कौशिक, पुरुषोत्तम, रामपाल, मेवा सिंह, रामपाल, जितेंद्र, विकास व कमल इत्यादि भी मौजूद थे।