ये स्पष्ट किये बगैर बातचीत का प्रस्ताव एक छलावा है और उसके कोई मायने नहीं हैं- दीपेंद्र हुड्डा
बात करने से पहले बात मानने का मन बनाए सरकार – दीपेंद्र हुड्डा
सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने शांतिपूर्ण भारत बंद की सफलता पर देशभर के किसानों को दी बधाई
न्यूज डेक्स हरियाणा
चंडीगढ़। दीपेंद्र हुड्डा ने किसानों से बातचीत के सरकार के प्रस्ताव को एक छलावा बताया है। उन्होंने कहा कि जब तक सरकार ये स्पष्ट नहीं करेगी कि किसान बातचीत कब करें, किससे करे और कहां करें; ऐसे प्रस्ताव के कोई मायने नहीं हैं। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि बात करने से पहले सरकार बात मानने का मन बनाए। उन्होंने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि ‘हाथी के दांत दिखाने के कुछ और हैं और खाने के कुछ और हैं! सरकार बार-बार बयान देती है कि वो बात करने को तैयार है, लेकिन बात मानने को तैयार नहीं। यदि बात ही नहीं माननी है तो किसान संगठन सरकार की सूखी चाय पीने तो जायेंगे नहीं। सरकार जिद, अहंकार और राजहठ छोड़कर बिना शर्त किसानों से बात कर उनकी मांगे माने। किसान लोकतंत्र की गरिमा और शांतिपूर्ण संघर्ष में विश्वास रखते हैं।
सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने शांतिपूर्ण भारत बंद की सफलता पर देशभर के किसानों को बधाई दी और कहा कि भारत बंद के साथ करोड़ों किसानों की भावना जुड़ी हुई है। देशभर में लाखों किसान 10 महीनों से ज्यादा समय से धरनों पर बैठे हैं। 600 से ज्यादा किसानों की जानें इन धरनों पर चली गयीं। आजादी के बाद कभी इतना लंबा आंदोलन देश ने नहीं देखा न ही किसी सरकार की इतनी लंबी जिद, घमंड और राजहठ देखा होगा। उन्होंने कहा कि अपने देशवासियों की बात को पूरी तरह नजरअंदाज करना और उनकी आवाज़ को कुचलने की कोशिश करना बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण और पीड़ादायक स्थिति है। ऐसा लगता है सरकार लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखना चाहती।
उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन को कुचलने व बदनाम करने के सारे सरकारी हथकंडे विफल हो चुके हैं और ये आन्दोलन पहले से ज्यादा बड़ा व मजबूत हुआ है। पिछले 10 महीने से ज्यादा समय से किसान सर्दी, बारिश, ओले, गर्मी, महामारी के साथ सरकारी लाठी, गोली, आंसू गैस, उपेक्षा, अपमान और झूठे मुक़दमे झेलकर भी शान्तिपूर्ण व अनुशासित संघर्ष कर रहे हैं। इससे स्पष्ट होता है कि किसान का मनोबल आज भी ऊंचा है। हर प्रकार के अपमान, अत्याचार और अनदेखी सहने के बावजूद किसान न तो पीछे हटे न ही शांति को भंग किया। सरकार को अपनी जिद छोड़कर उदारतापूर्वक किसानों से बात करनी चाहिए और उनकी मांग स्वीकार करनी चाहिए।