आचरणहीन और मर्यादाहीन व्यक्ति को सदैव तिरस्कार दिया जाता है : राघव कृष्ण
संकट में काम आने वाला ही परम मित्र : राघव कृष्ण
विद्यापीठ में भागवत पुराण की कथा का आरती तथा पूजन के साथ हुआ समापन
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। ब्रह्मसरोवर के तट पर श्री जयराम विद्यापीठ परिसर में पितृ पक्ष के अवसर पर आयोजित भागवत पुराण की कथा का विधिवत मंत्रोच्चारण, पूजन तथा आरती के साथ समापन हो गया। कथा के समापन से पूर्व विद्यापीठ की मुख्य यज्ञशाला में चल रहे गायत्री पितृ जप अनुष्ठान की यजमान परिवार द्वारा पूर्णाहुति दी गई। कथा के समापन पर व्यासपीठ पर यजमान परिवार के पवन प्रकाश गुप्ता, अशोक सिंघल, शशि सिंघल, सुनील सिंघल, मुकेश गुप्ता, सुलक्षणा गुप्ता, अनिल गुप्ता, अनीता गुप्ता, आंचल गुप्ता, अभिनव गुप्ता, हर्षिता गुप्ता, आर्ष गुप्ता, आदिराज गुप्ता, पुनीत गुप्ता, रेखा, प्रवीण गुप्ता, किरण, राजेश गुप्ता व मीनू गुप्ता इत्यादि व उनके परिवार के सदस्यों ने जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी की प्रेरणा से आरती की।
कथा के अंतिम दिन व्यासपीठ पर विराजमान विख्यात कथावाचक राघव कृष्ण महाराज ने संगीतमयी शैली में कथा में भगवान कृष्ण के घटनाक्रमों का वर्णन कर श्रद्धालुओं को कृष्ण भक्ति में झूमने पर मजबूर कर दिया। कथावाचक ने सुदामा चरित्र की कथा के साथ राजा परीक्षित का मोक्ष एवं भगवान श्रीकृष्ण के स्वधाम गमन की कथा सुनाते हुए कथा को विराम दिया। कथा में श्रद्धालु नाचते, थिरकते नजर आए। भगवान की भक्ति को मुक्ति पाने का माध्यम बताते हुए राघव कृष्ण ने भजन के साथ इसका वर्णन किया। अपनी भजन प्रस्तुति से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
उन्होंने आखिरी दिन की कथा मे राजा परिक्षित को शुकदेव जी द्वारा सुनाई जा रही भागवत कथा के अंतिम चरण का वृतान्त सुनाते हुए सुदामा के चरित्र का वर्णन किया। कथा प्रसंग में सुदामा का द्वारिकाधीश से मिलने जाना, पहरेदारों द्वारा सुदामा को द्वारिका के द्वार पर ही रोक देना और श्रीकृष्ण को सुदामा के आने का पता चलने पर नंगे पैर दौड़ते हुए बिना पिताम्बर धारण किये अपने परम मित्र सुदामा से मिलने जाना, सुदामा का आतिथ्य का जब वर्णन् किया तो सभी भक्तगण भाव -विभोर हो उठे। उन्होंने बताया सुदामा की मित्रता को निभाकर भगवान ने अपने दीनदयालु नाम को सार्थक किया। कृष्ण सुदामा की कथा के मार्मिक प्रसंग को सुनते श्रद्धालुओं की आंखें नम हो गई।
कथावाचक राघव कृष्ण ने कहा कि इस कथा से यह संदेश मिलता है कि मित्रता में पद और प्रतिष्ठा को आड़े नहीं आना चाहिए। इससे तात्पर्य है कि मित्रता में एक दूसरे का सहयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें कोई छोटा बड़ा नहीं होता। सत्ता पाकर व्यक्ति को घमंड नहीं करना चाहिए। बल्कि उसे श्रीकृष्ण जैसा विनम्रता एवं उदारता का आचरण अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा जो इंसान श्रीकृष्ण के जैसा आचरण अपना लेता है। वह संसार के मोह माया को पूरी तरह त्याग कर देता है। कथा में बताया गया कि भगवान के लिए प्रेम कितना महत्वपूर्ण है। भगवान कैसे प्रेम के भूखे हैं। और यही कारण था कि कृष्ण जी अपने मित्र सुदामा के पहुंचने पर नंगे पांव उनसे मिलने के लिए दौड़े चले गए।
सुदामा-कृष्ण की मित्रता आज के दौर में दोहराई जाए तो मानवीय मूल्य सब लोगों के भीतर आत्मसात होंगे। राघव कृष्ण की भक्तिमय एंव रस मधुर वाणी में प्रस्तुत कथामृत का भरपूर आनंद श्रोताओं ने प्राप्त किया। राघव कृष्ण ने कथा के अंतिम दिन शुकदेव द्वारा राजा परीक्षित को सुनाई गई श्रीमद् भागवत कथा को पूर्णता प्रदान करते हुए कथा में विभिन्न प्रसंगो का वर्णन किया। उन्होंने अंतिम दिन की कथा में अग्र पूजा के दौरान शिशुपाल द्वारा श्रीकृष्ण का अपमान करने के पश्चात् श्री कृष्ण द्वारा सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध, गुरु भक्त सुदामा एवं श्री कृष्ण का द्वारिका मे परम स्नेही मिलन, श्री कृष्ण का स्वधाम गमन एवं अंत में राजा परीक्षित को मोक्ष प्राप्ति के प्रसंगो को सुनाया। इस अवसर पर रोहित कौशिक, श्रवण गुप्ता, के के कौशिक, खरैती लाल सिंगला, टेक सिंह लौहार माजरा, राजेश सिंगला, संगीता शर्मा, संतोष इत्यादि भी मौजूद थे।