Friday, November 22, 2024
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संडे थियेटर… ‘मेरा वजूद’ में किन्नरों ने पढ़ाया इंसानियत का पाठ

by Newz Dex
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न्यूज डेक्स संवाददाता

रोहतक। थर्ड जेंडर यानी किन्नर समाज का सबसे उपेक्षित वर्ग है, जिसका हमारी दुनिया में कोई वजूद नहीं माना जाता। लेकिन जब समाज लोभ-लालच और झूठी मान-मर्यादा के चलते इंसानियत को भूल जाता है तो यह वर्ग भी हमें  इंसानियत का रास्ता दिखा सकता है। यही संदेश था किन्नरों के जीवन के उजले पक्ष को दिखाने वाले नाटक ‘मेरा वजूद’ का। सप्तक रंगमंडल, पठानिया वर्ल्ड कैंपस, सोसर्ग और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के संयुक्त तत्वावधान में हर सप्ताह होने वाले संडे थियेटर में हुए इस डेढ़ घंटे के नाटक ने सभ्य कहे जाने वाले हमारे समाज के उस कड़वे सच को दिखाया, जिसे हम आमतौर पर देख नहीं पाते। योगेश पंवार के निर्देशन में मानसी अभिनय गुरुकुल, सहारनपुर की इस प्रस्तुति ने दर्शकों को झकझोर कर रख दिया। नाटक ने दिखाया कि हमारा समाज एक हिजड़े के वजूद को स्वीकार नहीं करता, भले वह कितना ही उपकार क्यों न कर दे। 

अमूल सागर नाथ द्वारा लिखित इस नाटक में संजय एक गरीब परिवार का बड़ा बेटा है, जिसे घर का खर्च चलाने और और तीन भाई-बहनों को पढ़ाने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। गरीबी, लाचारी और दुनिया की ठोकरों से परेशान संजय को जब सब जगह से दुत्कार दिया जाता है, तो समाज के सबसे उपेक्षित तबकों में शामिल किन्नर उसे सहारा देते हैं। वे बिना किसी जान पहचान के उसके बीमार पिता के ईलाज के लिए पांच लाख रुपए देकर मानवता की अद्भुत मिसाल पेश करते हैं। इससे प्रभावित होकर संजय भी अपनी तमाम इच्छाओं और सम्मान को त्यागकर किन्नर बन जाता है। किन्नर बनने के बाद भी वह अपने परिवार की भरपूर आर्थिक मदद करता है और अपने भाई बहनों को ऊंचे पदों तक पहुंचाता है। परंतु जिन भाई-बहनों के लिए उसने अपनी मर्दानगी कुर्बान कर अपना वजूद मिटा दिया, वे झूठे सामाजिक रुतबे के लिए उसके साथ अपने रिश्ते को भी स्वीकार करने से इंकार कर देते हैं। यहां तक कि उन्हें सच का आईना दिखाने वाली अपनी मां को भी दुत्कार देते हैं। तब भी किन्नर ही उसकी मां का सहारा बनते हैं और उसे अपने साथ ले जाते हैं। 


नाटक में सभी कलाकारों ने जीवंत अभिनय किया। निर्देशके योगेश पंवार ने पूरी प्रस्तुति को एक सूत्र में बांधे रखा। वे 1994 से टीवी, फिल्म और रंगमंच के क्षेत्र में सक्रिय हैं और 100 से अधिक नाटकों में अभिनय करने के अलावा लगभग 50 नाटकों का निर्देशन कर चुके हैं। नाटक की शुरुआत सेवानिवृत्त प्रिंसीपल एसजेडएच नकवी, सेवानिवृत्त गीत एवं नाटक अधिकारी राजवीर भारद्वाज, लोक गायक गुलाब सिंह खांडेवाल, शक्ति सरोकार त्रिखा और योगेश पंवार ने दीप प्रज्वलित करके की। तत्पश्चात अभि धीमान और रितिका कंबोज द्वारा गणेश स्तुति में कथक नृत्य प्रस्तुत किया, जिसने नाटक के लिए अनुकूल माहौल बनाने का काम किया। मंच संचालक सुजाता रोहिल्ला ने किन्नरों के जीवन से जोड़ते हुए सामाजिक असमानता पर तथ्यात्मक जानकारी प्रस्तुत की। इससे पूर्व सप्तक के वरिष्ठ सदस्य और प्रदेश के जाने-माने नगाड़ा वादक सुभाष नगाड़ा के बेटे के आकस्मिक निधन पर श्रद्धांजलि दी गई। 

मंचन के दौरान रंगकर्मी ब्रह्मप्रकाश, शीतल, श्रीभगवान शर्मा, सुरेन्द्र धौला, अविनाश सैनी, विकास रोहिल्ला, मनोज कुमार और सोसर्ग के सिद्धार्थ भारद्वाज विशेष रूप से उपस्थित रहे। सप्तक के सचिव अविनाश सैनी ने बताया कि हर रविवार को सांय 6.30 बजे स्थानीय आईएमए हाल में होने वाले सन्डे थियेटर में अगले हफ्ते दिल्ली के विरल आर्य द्वारा निर्देशित नाटक ‘रीढ़ की हड्डी’ का मंचन करेंगे। प्रवेश सभी के लिए निशुल्क रहेगा।

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