दीपक के सामान है बेटी, अपने संस्कारों से दो परिवारों को प्रकाशित करती है: आचार्य वेद निष्ठ
विश्ववारा कन्या गुरुकुल, रुड़की की आचार्या डॉ. सुकामा जी यज्ञ की ब्रह्मा रहीं
न्यूज डेक्स संवाददाता
रोहतक। पूर्व वित्तमंत्री कैप्टन अभिमन्यु की बेटी डॉ. श्रेया के विवाह के उपलक्ष्य में सिंधु भवन में चल रहे सामवेद पारायण यज्ञ के दूसरे दिन गुरुकुल जुआं (सोनीपत) से आए आचार्य वेद निष्ठ ने कहा कि बेटियां त्याग और समर्पण की मूर्ति होती हैं। जिस तरह दीपक को दहलीज पर रखने से वह दो कमरों में उजाला करता है, बेटी भी उसी दीपक के सामान है। बेटी अपने उच्च संस्कारों और आदर्शों से दो परिवारों को प्रकाशित करती है। बेटी अपने कुल से अर्जित किए गए संस्कारों को अगले परिवार में लेकर जाती है। आचार्य वेद निष्ठ ने गृहस्थ आश्रम का सूत्र सहनशीलता को बताया।
उन्होंने कहा कि जब सामने वाला व्यक्ति गुस्सा हो तो हमें शांत रहना चाहिए। सहनशीलता बरतनी चाहिए, थोड़ी देर में सामने वाला खुद शांत हो जाएगा। उन्होंने कहा कि जब मनुष्य के सामने मुसीबत आ जाती है तो उसके तुरंत समाधान तलाशने की बजाय सहनशील रहें। बेशक मुसीबत कुछ समय के लिए खड़ी रहेगी, लेकिन सहनशील मनुष्य को उसका सबसे अच्छा समाधान स्वत: ही मिल जाएगा।
सामवेद पारायण यज्ञ की ब्रह्मा विश्ववारा कन्या गुरुकुल, रुड़की की आचार्या डॉ. सुकामा जी रहीं और गुरुकुल की ब्रह्मचारणियों ने वेद मंत्रों का पाठ किया। पूरे परिवार ने हवन में आहूति डाली। सुबह यज्ञ के दौरान दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात से आए स्वामी विवेकानंद परिव्राजक और देहरादून से आए स्वामी चित्तेश्वरानंद ने अपना संदेश दिया। गुरुकुल आम सेना उड़ीसा से आए आचार्य धर्मानन्द सरस्वती भी यज्ञ में मौजूद रहे।
भौतिकता और अध्यात्मिकता का मेल होना चाहिए: बलवीर आचार्य
यज्ञ के दौरान अपने संदेश में बलवीर आचार्य ने कहा कि भौतिकता और अध्यात्मिकता को मिलाकर चलना चाहिए। जो लोग केवल धनार्जन में लगे रहते हैं वो अंधेरे में रहते हैं और जो केवल अध्यात्म की उन्नति करते हैं वो और ज्यादा अंधेरे में रहता है। इसलिए मनुष्य को भौतिकता और अध्यात्मिकता का मेल करना चाहिए। ऐसे लोग संसार से पार हो जाते हैं। चौधरी मित्रसेन परिवार में यह परंपरा निभाई जाती है। यह परिवार दिन-रात परिश्रम करता है, लेकिन यहां अध्यात्मिकता का भी उसी तरह पालन किया जाता है। बलवीर आचार्य ने कहा कि आपने अपने दादा-दादी, माता-पिता, भाई या किसी से भी ज्ञान ग्रहण किया है तो वे आचार्य की श्रेणी में आते हैं। हमेशा बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए। कभी-कभी एक दूसरे से विचार नहीं मिलते, लेकिन दूसरे के गुणों को ग्रहण करके संगतीकरण करना गृहस्थ आश्रम का मंत्र है।