प्रसन्नता के लिए मन पर नियंत्रण जरूरी: आचार्य देवव्रत
प्रसिद्ध साइंटोलॉजिस्ट डॉ. सुमित भट्ट ने आपसी संबंधों को मजबूत और मधुर बनाने के टिप्स दिए
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। आज की भागदौड़ भरी और हर दिन नई चुनौतियों से दो-चार होती जिन्दगी में हम आपसी संबंधों को कैसे बेहतर और मधुर बनाएं, साथ ही जीवन को तनावमुक्त कैसे रखें, इस विषय पर गुरुकुल कुरुक्षेत्र में तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें देश के प्रसिद्ध साइंटोलॉजिस्ट डॉ. सुमित भट्ट ने जीवन के विभिन्न पहलुओं और परिस्थितियों में खुद को नियंत्रित रखने और चुनौतियों का सामना करने के टिप्स दिये। कार्यशाला में गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत, गुरुकुल के प्रधान कुलवन्त सिंह सैनी, ओएसडी टू गर्वनर डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार, निदेशक व प्राचार्य कर्नल अरुण दत्ता, सह प्राचार्य शमशेर सिंह, जगदीश आर्य, राधाकृष्ण आर्य सहित गुरुकुल में रहने वाले सभी परिवारजन उपस्थित रहे। मंच का सफल संचालन मुख्य संरक्षक संजीव आर्य द्वारा किया गया। कार्यशाला के तहत अलग-अलग सत्रों में गुरुकुल के विद्यार्थियों को भी डॉ. सुमित भट्ट द्वारा जीवन में सफलता अर्जित करने, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने और अपने सपनों को साकार करने के महत्त्वपूर्ण टिप्स दिये गये। विद्यार्थी जीवन में तनाव से दूर रहते हुए पढ़ाई पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए भी कई जरूरी जानकारी उन्होंने छात्रों को दी।
कार्यशाला के समापन पर गुजरात के महामहिम राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि जीवन को सुखी और प्रसन्नता से परिपूर्ण बनाने के लिए हमें सबसे पहले अपने मन पर नियंत्रण रखना होगा क्योंकि मन की चंचलता के कारण ही अक्सर हमें दुःखों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि सुखी जीवन का एक ही मूलमंत्र है -किसी को अपना बना लो या किसी के हो जाओ। उन्होंने कहा कि जीवन में यदि अनुकूलता है तो सुख है और यदि जीवन में प्रतिकूलता है तो वो दुःखी है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में लगातार टूटते संयुक्त परिवारों के कारण जो एकाकी जीवन की नई रीत चली है, यह भी हमारे दुखों का एक बड़ा कारण है। पहले संयुक्त परिवारों में 20-30 लोग इकट्ठे रहते थे, एक-दूसरे से प्रेम, लगाव और मधुर संबंध होते थे। उनमें एक-दूसरे के प्रति सम्मान का भाव रहता था, बड़े छोटों को प्यार-दुलार करते थे और छोटे, हमेशा अपने बड़ों का सम्मान करते थे मगर एकाकी परिवार के कारण ये सब अब देखने को नहीं मिलता। हमें अपने बच्चो को बुजुर्गो के पास जरूर बैठाना चाहिए ताकि वे संस्कारों का सबक ले सकें। उन्होंने कहा कि जीवन में सुखी रहने के लिए यह भी जरूरी है कि अपनी इच्छाओं को कम करें और जहां तक संभव हो दूसरों की मदद करें। उन्होंने कहा कि यदि हमें सही तरीके से जीवन जीना आ गया तो यही सबसे बड़ा सुख है।
इससे पूर्व तीन दिन तक चली इस कार्यशाला में डॉ. सुमित भट्ट ने आपसी संबंधों को मधुर बनाने, बिगड़े संबंधों को सुधारने, हमारे व्यवहार को बेहतर बनाने और बातचीत करने का सही तरीका, इन सब विषयों को साइंटिफिक तरीके से उदाहरणों के साथ समझाने का सफल प्रयास किया। समापन पर गुरुकुल के प्रधान कुलवन्त सिंह सैनी ने डॉ. सुमित भट्ट का आभार व्यक्त किया। साथ ही राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने गुरुकुल का स्मृति-चिन्ह व प्रसाद भेंट कर उन्हें सम्मानित किया