न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। अंतर्राष्ट्रीय गीता जयंती के अवसर पर विरासत हेरिटेज विलेज जी.टी. रोड मसाना में ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा आयोजित कार्यशाला एवं सांस्कृतिक प्रदर्शनी में मुगली ताले बने आकर्षण का केन्द्र। विरासत में हरियाणा की लोक सांस्कृतिक परम्परा का प्रतीक सिकलीगर की विषय-वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है। यहां पर अनेक प्रकार के तालों की परम्परा को प्रदर्शित किया गया है जिनमें मुगल काल के ताले विशेष आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। उल्लेखनीय है कि साण पर चढ़ाकर पैना करने के लिए धार लगाने वाले, लोहे के ताले बनाने वाले तथा उनमें चाबी लगाने वाले, कढ़ई आदि का निर्माण करने वाले लोह कारीगरों को सिकलीगर कहा जाता है।
लोकजीवन में सिकलीगरी का धंधा तभी से चला आ रहा है, जब से मानव ने हथियारों को रखना शुरु किया, पहले सेनाओं के लिए सिकलीगर ही हथियारों का निर्माण करते थे और उनके रख-रखाव का जिम्मा भी इन्हीं पर होता था। इतना ही नहीं गुरु गोबिंद सिंह की सेना में भी लोहे की तलवारें बनाने की कार्य सिकलीगर ही करते थे, बाद में जब हथियार बनाने की प्रक्रिया बंद हुई, तो इन्होंने अपनी रोजी-रोटी के लिए लोहे का काम जारी रखा और हथियारों के स्थान पर ताले बनाने, उन्हें ठीक करने, चाबी लगान तथा साण चाकू, छुरियों एवं कैंचियों को तेज करने के कार्य को अपना लिया। समाज में आज भी ये लोग गांव-गांव में फेरी लगाकर ताले ठीक करने एवं चाकू, छुरियां बेचने का काम करते हैं।
सिकलीगरों द्वारा ही चाकू, उस्तरा, कैंची, राछ-पोंछ, छुर्रा, कटार आदि को उलट-पलट कर धार को पैनी किया जाता है। यहां पर साईकिल के पहिए से जोडक़र रिसाण चलाई जाती है जिस पर कैंची तथा चाकू आदि की धार तेज की जाती है। इसके साथ ही प्रदर्शनी में अलीगढ़ी ताले, हथकड़ी ताले, न्योल़ ताले, देसी ताले, बड़े तथा छोटे हाथ से बनाए हुए अनेक ताले यहां पर प्रदर्शित किए गए हैं।