मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती की बलिदान दिवस पर कार्यक्रम संपन्न
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती भारत के उन महान राष्ट्रभक्त संन्यासियों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपना जीवन स्वाधीनता, स्वराज्य, शिक्षा तथावैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया था। स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती भारत के शिक्षाविद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं संन्यासी थे। यहविचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने भारतीय आजादी के अमृतमहोत्सव एवं क्रांतिकारी राष्ट्रीय संत स्वामी श्रद्धानंदसरस्वती के बलिदान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए। कार्यक्रम का शुभारंभ मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र एवं कार्यक्रम केअध्यक्ष समाजसेवी रामपाल आर्य ने संयुक्त रूप से किया। इस अवसर पर मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने स्वामी श्रद्धांनद से संबंधित अनेकप्रेरक प्रसंग सुनाए।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में स्वामी श्रद्धानंद की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उनके नेतृत्व में आजादी के लिए अनेकआंनदोलन हुए। स्वामी श्रद्धानंद ने आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारियों का मार्गदर्शन किया और अपने कुशल नेतृत्व में ब्रिटिश हकुमत के खिलाफआजादी की लड़ाई को तीव्र किया। स्वामी श्रद्धानंद जी महात्मा थे, ऋषि थे, तपस्वी थे और योगी थे। जब भारत की राष्ट्रीयता का भविष्य खंडितप्रतीत हुआ तो भारत में एक राष्ट्रीयता के संगठन के लिए एक जाति, एक धर्म, एक भाषा के प्रचार के लिए शुद्धि आंदोलन एवं शुद्धि का कार्य प्रारंभकिय स्वामी श्रद्धानंद एक महान सामाजिक सुधारक, आध्यात्मिक नेता के साथ-साथ परम राष्ट्र भक्त थे। स्वामी श्रद्धानन्द ने दलितों की भलाई के कार्यको निडर होकर आगे बढ़ाया, साथ ही स्वाधीनता आंदोलन का बढ़-चढ़कर नेतृत्व भी किया। कांग्रेस में उन्होंने 1919 से लेकर 1922 तक सक्रिय रूप सेमहत्त्वपूर्ण भागीदारी की। 1922 में अंग्रेज सरकार ने उन्हें गिरफ्तार किया, लेकिन उनकी गिरफ्तारी कांग्रेस के नेता होने की वजह से नहीं हुई थी, बल्किवे सिक्खों के धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए सत्याग्रह करते हुए बंदी बनाये गए थे। स्वामी श्रद्धानन्द कांग्रेस से अलग होने के बाद भी स्वतंत्रताके लिए कार्य लगातार करते रहे।
डॉ. मिश्र ने कहा कि स्वामी श्रद्धानंद ने गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय हरिद्वार सहित अखंड भारत में पांच महत्वपूर्ण गुरुकुलों की स्थापनाकी। स्वामी श्रद्धानंद ने न केवल अछूतोद्धार बल्कि हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपनी प्राणों की आहूति दे दी। महात्मा गांधी ने ही उन्हें महात्मा की उपाधिदी थी पर कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण वाली नीतियों के चलते जल्दी ही पार्टी से उनके मतभेद बढ़ गए। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने जिस गुरुकुल शिक्षाप्रणाली को स्थापित किया था उससे पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली का खोखलापन प्रकट हो गया था और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को जन्म दिया था।स्वामी श्रद्धानंद जी एक पूर्ण नेता थे। सम्पूर्ण क्रांति के प्रतीक थे। वीरता, अदम्य उत्साह, बलिदान उनके रोम-रोम में व्याप्त थे। निर्भयता की भावना, वाणी में अपूर्व ओज, दिन दुखियों के प्रति दया की भावना स्वामी श्रद्धानंद में सदा दृष्टिगोचर होती थी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामपाल आर्य ने कहा कि स्वामी श्रद्धानंद समाप्त होती 19वीं सदी और शुरू होती 20वीं सदी के सर्वाधिकप्रतिभाशाली, तेजस्वी, प्रखर वक्ता, विद्वान और समाजसेवी थे। अगर वह राजनीति में बने रहते, तो सारे नेता उनसे पीछे होते। अछूतोद्धार उनकी हीपरिकल्पना थी। हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए स्वामी जी ने जितने कार्य किए, उस वक्त शायद ही किसी ने अपनी जान जोखिम में डालकर किए हों। वेऐसे महान् युगचेता महापुरुष थे, जिन्होंने समाज के हर वर्ग में जनचेतना जगाने का कार्य किया। स्वामी श्रद्धानंद जी ने ब्रिटिश शासन काल में दिल्ली केचांदनी चौक में क्रूर अंग्रेजी शासक के सैनिकों की संगीनों के सामने अपनी छाती तान कर देश की स्वतंत्रता के लिए अपने आपको बलि के रूप मेंप्रस्तुत करके देश के प्रति जनता में बलिदान करने की भावना जागृत की। साहस एवं निर्भीकता का ऐसा उदाहरण अपूर्व था।