न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का संपूर्ण जीवन भारत, भारतीयता,सनातन धर्म और सनातन हिन्दू संस्कृति की सेवा को समर्पित था।मालवीय जी जीवन के प्रभातकाल से ही मानवता की रक्षा और समृद्धि की चिंता में सलग्न थे। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से प्रारम्भ हुए भारतीय सामाजिक चिंतन की दिशा में कार्यरत विचारकों में पंडित मदनमोहन मालवीय जी का नाम उन ऐसे चिंतकों की श्रेणी में आता है, जिन्होंने भारतीय समाज पर समग्र चिंतन किया। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने भारतरत्न पंडित मदनमोहन मालवीय की जयंती एवं सूरजमल के बलिदान दिवस पर के अवसर पर व्यक्त किये। समृद्ध भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण तुलसी दिवस पर मातृभूमि शिक्षा मंदिर के बच्चो ने तुलसी पूजन किया और जीवन पर्यंत प्रकृति के संरक्षण का संकल्प लिया।इस अवसर पर डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने बच्चो को तुलसी के विभिन्न उपयोगी एवं महत्वपूर्ण पक्षों के बारे में बताया।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि मालवीय जी के असाधारण व्यक्तित्व का आधुनिक भारत की राजनीति, समाज, शिक्षा तथा संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा है। एक सामाजिक चिंतक होने के नाते मालवीय जी अपने चिंतन की सरिता समाज के समुद्र में प्रवाहित करना चाहते थे। मालवीय जी का हिन्दु सभ्यता और संस्कृति के शाश्वत मूल्यों में अटूट विश्वास था और उनका यह विश्वास ही उनके जीवन तथा कार्यपद्धति का मुख्य आधार था। वे ईश्वर भीरु थे और धर्म के प्रति उनके मन में जन्मजात श्रृद्धा थी। मालवीय जी ने राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लिए एक व्यापक सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उनका कहना था कि देश के नैतिक, बौद्धिक और आर्थिक साधनों का परिवर्धन करने के लिए लोगों में लोककल्याण और लोकसेवा की भावना उत्पन्न करना भी नितांत आवश्यक है। मूलतः एक ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के कारण वे अत्यधिक धार्मिक विश्वासी थे। हिंदी भाषा-भाषी क्षेत्र के नवजागरण, स्वाधीनता आदोलन और भारतीय राष्ट्र के निर्माण में मदनमोहन मालवीय का योगदान अन्यतम है।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि पंडित मदनमोहन मालवीय के धार्मिक विचारों और धार्मिक कार्यों में भी समाज का हितचिंतन निहित था। उन्होंने “गौरक्षा संघ” की स्थापना भी की थी। वे सनातन धर्म सभा, हिन्दु महासभा, हिन्दी साहित्य सम्मेलन इत्यादि अनेक संस्थाओं के बहुमुखी नेता, संचालक और प्राण थे। पंडित मदनमोहन मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर 1861 को एक भागवतमर्मज्ञ नैष्ठिक ब्राह्मण कुल में प्रयाग में हुआ था। वे आधुनिक भारत की सर्वाधिक महान विभूतियों में से एक थे। संस्कृत, हिन्दी और अँग्रेजी के वे अधिकारपूर्ण वक्ता थे। मालवीय जी लेखन को समाजसेवा का सर्वप्रमुख माध्यम मानते थे। उन्होंने हिन्दी दैनिक “हिन्दुस्तान” का अनेक वर्षों तक सम्पादन किया। कुछ समय तक वे “द इण्डियन यूनियन” पत्र के भी सम्पादक रहे। उन्होंने “अभ्युदय” नामक एक हिन्दी साप्ताहिक की भी स्थापना की। इसके अलावा मालवीय जी ने मर्यादा, सनातन धर्म, हिन्दुस्तान रिव्यु, स्वराज्य तथा इण्डियन पीपल जैसी तत्कालीन उत्कृष्ट पत्रिकाओं, समाचार पत्रों में अपने कला, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र, साहित्य, धर्म और समाज से सम्बद्ध उत्कृष्ट लेखों के माध्यम से भारतीय समाज को एक नवीन चिंतन से परिपूरित किया।
डॉ. मिश्र ने कहा कि पंडित मदनमोहन मालवीय जी महाराज की उम्रभर की राष्ट्रीय और सामाजिक सेवाओं का चिरस्थायी स्मारक बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय है। प्रारम्भ से ही उनका स्वप्न था कि एक ऐसा शुभ दिन आए जब भारतीय युवावर्ग को उच्चशिक्षा के लिए विदेश न जाना पड़े। वे यह देखकर भी द्रवित होते थे कि अन्य धर्माबलम्बी अपने धर्म के विषय में जो ज्ञान रखते हैं, हिन्दु विद्यार्थी अपनी समृद्ध संस्कृति के विषय में उतना ज्ञान नहीं रखते। ऐसे महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कि भारतीय भी अपनी समृद्धशाली संस्कृति की अस्मिता से परिचत हों, मालवीय जी ने अथक श्रम किया। देश के कोने कोने से सहायता और धनराशि जोड़ने के लिए इस महापुरुष ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। यह थी उनकी समाज सेवा और ऐसा था मालवीय जी का सामाजिक चिंतन। मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा संचालित मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों द्वारा वीर योद्धा अदम्य साहस के धनी राजा सूरजमल के बलिदान दिवस एवं देश के प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेई की जयंती पर स्मरण करते हुए आदरांजलि अर्पित की गई।