पी. राहुल/न्यूज डेक्स हिंदी
पंचकूला,14 सितंबर। हिंदी हैं हम ,वतन हैं हिंदुस्तान हमारा,ये पंक्तियां प्रत्येक भारतवासी के लिये महत्व रखती हैं। असिस्टेंट प्रोफेसर डा.मीनाक्षी शर्मा का कहना है कि किसी भाषा को पढ़ने,समझने और आवश्यकता होने पर उसका इस्तेमाल करने के हम स्वतंत्र है,लेकिन हिंदी भाषा का प्रयोग करते समय हर भारतवासी में गर्व का भाव होना चाहिये।
हिंदी भाषा हमारे विश्व की प्राचीन और समृद्ध भाषा के साथ हमारी राष्ट्रभाषा भी है। मातृभाषा अपने मन के विचारों को व्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम है। ये पूरे भारत में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। 14 सितंबर 1949 को भारत में हिंदी को अधिकारिक भाषा के रुप में पहचान मिली। हमारे हिंदी कवियों ने इसे पहचान दिलाने के लिये जी तोड़ प्रयास किया। इसी प्रयास में हमारे हिंदी कवि मैथिलीशरण गुप्त,हजारी प्रसाद द्विवेदी,काका कालेलकर और व्यौहार राजेंद्र सिम्हा जी के अतुलनीय योगदान को भुलाना नामुकिन है।
उन्होंने बताया कि कवि व्यौहार राजेंद्र सिम्हाजी के 50 वें जन्मदिन पर इसे अधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया,तभी से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रुप में मनाया जाता है। वर्तमान में अंग्रेजी की बढ़ती होड में हिंदी को बचाने के लिये इसकी प्रासंगिकता को महत्व देना होगा। जहां तक हरियाणा प्रांत की बात है,1 नवंबर 1966 को पंजाब से अलग होकर हरियाणा हिंदी भाषी राज्य के रुप में ही अस्तित्व में आया था।
उन्होंने बताया कि हरियाणा के अलग सूबे के रुप में अस्तित्व में आने से एक दशक पहले संयुक्त पंजाब में स्थित कुरुक्षेत्र विश्ववद्यालय की स्थापना हुई थी। इसके पश्चात 1966 में अलग राज्य हरियाणा बनने के बाद कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और हरियाणा में पिछले 54 वर्षों के अंतराल में खुले शिक्षण संस्थानों में अलग हिंदी विभाग स्थापित किये। इन विभागों की हिंदी शिक्षा को बढ़ावा मिला और सृजनात्मक गतिविधियों के माध्यम से हिंदी के प्रचार प्रसार को विस्तार मिला।
डा. शर्मा ने बताया कि हिंदी विषय में हुए शोध कार्य और हिंदी विषय पर काम करने वाले शोधार्थियों ने हिंदी प्रचार प्रसार में अहम योगदान दिया। हिंदी पुस्तकें,लेखक,साहित्यकारों की गोष्ठियां,कवि सम्मेलन,वृत्तचित्र इत्यादी के माध्यम से आज हिंदी का स्वर्णिम दौर कहा जा सकता है। आज भारत में हिंदी से अपना खास आयाम हासिल करने वाला बालीवुड,करोड़ों लोगों के लिये मनोरंजन के साथ वरदान बना हुआ है। मगर पीड़ादायक वे क्षण होते हैं, जब हिंदी के नाम पर सब कुछ हासिल करने वाले सार्वजनिक प्लेटफार्मों पर हिंदी को अलग थलग कर इंग्लिश में बतियाने को गर्व महसूस करते हैं। इस मानसिकता को छोड़ हिंदी हैं हम वतन हैं,हिंदुस्तान हमारा के भाव को जागृत रखना होगा।