मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा भारतीय आजादी के अमृत महोत्सव एवं सावित्रीबाई फुले की जयंती के अवसर पर कार्यक्रम संपन्न
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। सावित्रीबाई फुले एक ऐसी शख्स है जिन्होंने स्त्री शिक्षा के लिए न केवल संधर्ष किया, बल्कि पहली बार उनके लिए बालिका विद्यालय की भी स्थापना की। सावित्रीबाई फुले पहली महिला थी जो बालिकाओं की शिक्षिका भी थी और उनके विद्यालय की संस्थापक भी। जिन्होंने स्त्री शिक्षा व नारी जागृति को लेकर काम किया। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने भारतीय आजादी के अमृत महोत्सव एवं सावित्रीबाई फुले की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि सावित्रीबाई फुले ऐसी शख्स थी जिन्होंने समाज द्वारा लड़कियों की शिक्षा के विरोध के बावजूद उन्हें शिक्षित करने का प्रण लिया। उनका जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में हुआ था। सावित्रीबाई फुले ने स्त्री शिक्षा के लिए न केवल संधर्ष किया बल्कि पहली बार उनके लिए बालिका विद्यालय की भी स्थापना की।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि लोकसेवा में अपने को समर्पित करने वाली सावित्रीबाई फुले भारत राष्ट्र का गौरव है। सावित्रीबाई फुले ने समाज द्वारा लड़कियों की शिक्षा के विरोध के बावजूद उन्हें शिक्षित करने का प्रण लिया। वह एक दृढ़ संकल्पी शिक्षिका के साथ-साथ समाज सुधारक भी थी और व्यक्तिगत स्तर पर कवयित्री भी। उनकी कविताओं में अज्ञान, शिक्षा के लिए जाग्रत हो जाओ, श्रेष्ठ धन, समूह-संवाद की कविता आदि कविताओं में स्त्री शिक्षा का स्वर पुरजोर तरीके से उभरता है, विद्या ही सच्चा धन है। सभी धन-दौलत से बढ़कर, जिसके पास है ज्ञान का भंडार है वह सच्चा ज्ञानी लोगों की नजरों में। सावित्रीबाई फुले ने अपने जीवन में प्रतिदिन होने वाले सामाजिक अपमान से आगे बढ़कर स्त्री शिक्षा को मजबूत किया। उन्होंने ज्योतिबा फुले के सहयोग से 1 जनवरी 1848 को पुणे में पहला बालिका विद्यालय खोला। यह विद्यालय स्त्री शिक्षा की क्रांति पहला स्तंभ बना।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि लड़कियों की शिक्षा का यह क्रम 18 बालिका विद्यालय खोले जाने के साथ एक मिसाल बना। वह लड़कियों की शिक्षा के साथ ही महिलाओं की शिक्षा के लिए 1849 में पूना में प्रौढ़ शिक्षा केंद्र की स्थापना की। वह शिक्षा के माध्यम से महिलाओं के विकास की पुरजोर समर्थक थी। इतना ही नहीं उन्होंने यौन शोषण के गर्भवती होने वाली बाल विधवाओं की दयनीय स्थिति को देखा और समझा जिसे समाज ने उपभोग किया और आत्महत्या के लिए छोड़ दिया। समाज की इन महिलाओं के लिए प्रसूति गृह खोला गया और उसका नाम रखा गया बालहत्या प्रतिबंधक गृह। सावित्रीबाई फुले ऐसे रुढि़वादी परिवेश में स्त्री शिक्षा के लिए काम कर रही थी जिस परिवेश में कार्य करना दुषकर एवं असंभव सा था। महान समाजसेविका सावित्रीबाई फुले का भारत राष्ट्र सदैव ऋणी रहेगा।