न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। गुरु गोविंद सिंह एक महान कर्मप्रणेता, अद्वितीय धर्मरक्षक, ओजस्वी वीर रस के कवि के साथ ही संघर्षशील वीर योद्धा भी थे। गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के 10वें और अंतिम गुरु थे. उनके बाद से गुरु ग्रंथ साहिब ही सिख समुदाय के मार्गदर्शक और पवित्र ग्रंथ हैं। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने सिखों के 10वें गुरु गुरुगोविंद सिंह की जयंती के अवसर पर व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि गुरु नानक देव की ज्योति इनमें प्रकाशित हुई, इसलिए इन्हें दसवीं ज्योति भी कहा जाता है। बिहार राज्य की राजधानी पटना में गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म हुआ था। सिख धर्म के नौवें गुरु तेग बहादुर साहब की इकलौती संतान के रूप में जन्मे गोविंद सिंह की माता का नाम गुजरी था। शांति, प्रेम और एकता की मिसाल थे सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि गुरु गोविंद सिंह में भक्ति और शक्ति, ज्ञान और वैराग्य, मानव समाज का उत्थान और धर्म और राष्ट्र के नैतिक मूल्यों की रक्षा हेतु त्याग एवं बलिदान की मानसिकता से ओत-प्रोत अटूट निष्ठा तथा दृढ़ संकल्प की अद्भुत प्रधानता थी तभी स्वामी विवेकानंद ने गुरुजी के त्याग एवं बलिदान का विश्लेषण करने के पश्चात कहा है कि ऐसे ही व्यक्तित्व के आदर्श सदैव हमारे सामने रहना चाहिए। गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान योद्धा थे। वह कविता और दर्शन और लेखन के प्रति अपने झुकाव के लिए जाने जाते थे। उसने मुगल आक्रमणकारियों को जवाब देने से इनकार कर दिया और अपने लोगों की रक्षा के लिए खालसा के साथ लड़ाई लड़ी। उनके मार्गदर्शन में उनके अनुयायियों ने एक सख्त संहिता का पालन किया। उनके दर्शन, लेखन और कविता आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि दशम सिख गुरु व खालसा पंथ के संस्थापक सरबंसदानी गुरु गोबिंद सिंह जी ने अधर्म और राष्ट्र विरोधी शक्तियों के विरुद्ध एकता की सीख दी। उनका त्याग, साहस और शिक्षा राष्ट्र-कल्याण के लिए सदैव हमारा मार्गदर्शन करती रहेंगी। गुरु गोविंद सिंहजी केवल आदर्शवादी नहीं थे, बल्कि वे एक आध्यात्मिक गुरु थे जिन्होंने मानवता को शांति, प्रेम, एकता, समानता एवं समृद्धि का रास्ता दिखाया। वे व्यावहारिक एवं यथार्थवादी भी थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को धर्म की पुरानी और अनुदार परंपराओं से नहीं बांधा बल्कि उन्हें नए रास्ते बताते हुए आध्यात्मिकता के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण दिखाया। संन्यासी जीवन के संबंध में गुरु गोविंद सिंह ने कहा- एक सिख के लिए संसार से विरक्त होना आवश्यक नहीं है तथा अनुरक्ति भी जरूरी नहीं है किंतु व्यावहारिक सिद्धांत पर सदा कर्म करते रहना परम आवश्यक है।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि गोविंद सिंह ने कभी भी जमीन, धन-संपदा, राजसत्ता-प्राप्ति या यश-प्राप्ति के लिए लड़ाइयां नहीं लड़ीं। उनकी लड़ाई होती थी अन्याय, अधर्म एवं अत्याचार और दमन के खिलाफ। युद्ध के बारे में वे कहते थे कि जीत सैनिकों की संख्या पर निर्भर नहीं, उनके हौसले एवं दृढ़ इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है। जो नैतिक एवं सच्चे उसूलों के लिए लड़ता है, वह धर्मयोद्धा होता है तथा ईश्वर उसे विजयी बनाता है। गुरु गोविंद सिंहजी ने समूचे राष्ट्र के उत्थान के लिए संघर्ष के साथ-साथ निर्माण का रास्ता अपनाया। सती प्रथा, बाल विवाह, बहु विवाह, लड़की पैदा होते ही मार डालने जैसी बुराइयों के खिलाफ आवाज बुलंद की। इस अवसर पर समाज सेवा में उत्कृष्ठ कार्य करने के लिए प्रदीप, अंशिका, पूजा, वंदना एवं आरती को मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने अंगवस्त्र एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।