मातृभूमि सेवा मिशन के 19वें स्थापना दिवस, स्वामी विवेकानंद जयंती एवं राष्ट्रीय युवा दिवस के उपलक्ष्य में
पांच दिवसीय कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर वैदिक यज्ञ संपन्न
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। भारतीय पुनर्जागरण के महान पुरोधा स्वामी विवेकानंद ने अपनी ज्योतिलेखनी द्वारा भारत की परम्परागत विचारधारा को नवीन गति प्रदान की। इसके लिए उन्होंने समाज की धर्म, पाप, पुण्य सम्बन्धी रूढि़वादी मान्यताओं का स्पष्ट रूप से खंडन किया है। यह विचार अध्यात्म प्रेरित सेवा संस्थान मातृभूमि सेवा मिशन के 19वें स्थापना दिवस, स्वामी विवेकानंद जयंती एवं राष्ट्रीय युवा दिवस के उपलक्ष्य में पांच दिवसीय कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर मिशन के फतुहपुर स्थित आश्रम परिसर में आयोजित वैदिक यज्ञ कार्यक्रम में व्यक्त किए। इस अवसर पर वैदिक ब्रह्मचारियों द्वारा विश्व मंगल की कामना के निमित्त वैदिक यज्ञ में आहुति डाली।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि विवेकानंद का सामाजिक दर्शन अन्य दार्शनिकों की अपेक्षा बहुत अधिक व्यवहारिक था विवेकानंद के दर्शन पर वेदांत दर्शन का अधिक प्रभाव था। अतः व्यक्ति व्यक्ति के मध्य किसी भी आधार पर भेदभाव का विरोध करते थे विवेकानंद का मानना था कि पश्चिमी मानववाद जिसके अंतर्गत व्यक्तियों की स्वतंत्रता सामाजिक समानता तथा स्त्रियों के लिए न्याय व सम्मान के गुणों को भारत में अपनाया जाना चाहिए ताकि भारत भी आधुनिक हो सके। विवेकानंद पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने ना केवल स्त्री स्वतंत्रता व समानता पर बल दिया अपितु उन्होंने स्त्री सशक्तिकरण को भी अधिक महत्व दिया, उनका मानना था कि यदि स्त्री सशक्तिकरण होगा तो वे स्त्रियां समाज व परिवार के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकेगी।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि विवेकानंद आध्यात्मिक गुरु होने के साथ राष्ट्रवादी विचारक थे। उन्होंने देश के युवाओं को राष्ट्रवाद के लिए प्रेरित किया और कहा कि राष्ट्र का कल्याण तथा सेवा युवाओं का नैतिक धर्म है ,उन्होंने अपने राष्ट्रवाद को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप में प्रस्तुत किया अर्थात प्रत्येक मनुष्य को अपने राष्ट्र के प्रति नैतिक रूप से उत्तरदाई होना चाहिए, राष्ट्र के प्रति जो कर्त्तव्य होते हैं, उन्हें प्राथमिकता के साथ पूरा करना चाहिए। विवेकानंद श्रमिककल्याण अर्थात उत्पादन करने वाले मजदूरों को अधिक महत्व देते थे, उनका मानना था कि श्रमिकों के द्वारा जो उत्पादन किया जाता है उस उत्पादन में श्रमिकों का हिस्सा भी होना चाहिए क्योंकि वह इसके वास्तविक हकदार होते हैं।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि स्वामी जी के अनुसार, ऐसा प्रत्येक व्यक्ति देशद्रोही है, जिसकी शिक्षा का भार देशवासियों पर रहा है, किन्तु जिसने देशवासियों की लेशमात्र चिंता न की हो। स्वामी जी तत्कालीन भारतीय सगठन से अत्यंत असंतुष्ट थे। उन्होंने काल्पनिक विचार जगत में न रखकर भारतीय लोकमानस की नींव पर खड़ा किया था। उनके अनुसार भारत जैसा देश जो प्रकृति की देनो से भरपूर है और जिसने सभ्यता तथा संस्कृति द्वारा अन्य देशों का मार्ग-दर्शन किया है, यह जानकार दुःख होता है कि मनुष्य को भरपेट भोजन नहीं मिलता। उन्होंने कहा हमारी पतित अवस्था का मूल कारण है, अंध विश्वास, अशिक्षा तथा छुआछुत।
स्वामी जी के शब्दों में आओ, मनुष्य बनो। पुरोहितों को ठुकरा दो जो सदा प्रगति के विरोधी रहे हैं क्योंकि उनमे सुधार नहीं होगा जो शताब्दियों तक अंध-विश्वास तथा निर्दयता पूर्ण व्यवहार के वातावरण में पले हैं। आज स्वामी विवेकानंद के विचारों और शिक्षाओं को आत्मसात कर भारत विश्व का श्रेष्ठ राष्ट्र बन सकता है। मातृभूमि सेवा मिशन अपने स्थापना काल से स्वामी विवेकानंद के विचारो से प्रेरित होकर विभिन्न सेवा प्रकल्पो के द्वारा लोककल्याण के लिए समर्पित है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए समाज सेवी साहिब सिंह खरींडवा ने कहा कि मातृभूमि सेवा मिशन समाज के असहाय, जरूरतमंद एवं निराश्रितबच्चों के लिए एक आशा की किरण है। मातृभूमि सेवा मिशन स्वामी विवेकानंद के सपनों के भारत के निर्माण में समर्पित है।