मातृभूमि सेवा मिशन के 19वें स्थापना दिवस, आजादी के अमृतोत्सव, स्वामी विवेकानंद जयंती
राष्ट्रीय युवा दिवस एवं लोहड़ी के उपलक्ष्य में आयोजित पांच दिवसीय कार्यक्रम के द्वितीय दिवस नारायण सेवा का कार्यक्रम संपन्न।
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। स्वामी विवेकानंद प्रत्येक मानव को समान मानते थे और मानव में ईश्वर अर्थात नारायण का वास मानते थे, वे मानते थे कि मानव की सेवा ही ईश्वर की सेवा है और ईश्वर की प्राप्ति हेतु उस ईश्वर की सेवा अधिक महत्वपूर्ण होती है जो ईश्वर गरीबों अर्थात दरिद्र में वास करता है अर्थात दरिद्र ही नारायण होता है। स्वामी विवेकानंद यह प्रमुखता से स्वीकार करते हैं कि मनुष्य ही ईश्वर हैं जो सभी मनुष्यों में समान रूप से व्याप्त हैं। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा मातृभूमि सेवा मिशन के 19वें स्थापना दिवस, आजादी के अमृतोत्सव, स्वामी विवेकानंद जयंती, राष्ट्रीय युवा दिवस एवं लोहड़ी के उपलक्ष्य में आयोजित पांच दिवसीय कार्यक्रम के द्वितीय दिवस ब्रह्मसरोवर के उत्तरी तट पर नारायण सेवा का कार्यक्रम में मिशन के संस्थापक डॉ.श्रीप्रकाश मिश्र ने व्यक्त किए।
लोहड़ी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि लोहड़ी के दिव्य त्योहार के उत्सव को पवित्र अग्नि के प्रकाश द्वारा चित्रित किया जाता है जिसे भगवान अग्नि की उपस्थिति और आशीर्वाद को दर्शाते हुए अत्यधिक दिव्य और पवित्र अनुष्ठान माना जाता है। त्यौहार प्रकृति में होने वाले परिवर्तन के साथ-साथ मनाये जाते हैं जैसे लोहड़ी में कहा जाता हैं कि इस दिन वर्ष की सबसे लम्बी अंतिम रात होती हैं इसके अगले दिन से धीरे-धीरे दिन बढ़ने लगता है-साथ ही इस समय किसानों के लिए भी उल्लास का समय माना जाता हैं। खेतों में अनाज लहलहाने लगते हैं और मोसम सुहाना सा लगता हैं, जिसे मिल जुलकर परिवार एवं दोस्तों के साथ मनाया जाता हैं, इस तरह आपसी एकता बढ़ाना भी इस त्यौहार का उद्देश्य हैं।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने स्वामी विवेकानंद जयंती एवं राष्ट्रीय युवा दिवस के द्वितीय दिवस के कार्यक्रम के संबोधन में कहा कि शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद ने कुछ ही शब्दों में संपूर्ण अमेरिका को भारतीय दर्शन का परिचय करवाया। स्वामी जी के समय हमारा देश अंग्रेजों के अधीन था, हम परतन्त्र थे। स्वामी जी ने अनुभव किया कि परतन्त्रता हीनता को जन्म देती है और हीनता हमारे सारे दुःखों का सबसे बड़ा कारण है। अतः जब ये अमरीका से भारत लौटे तो इन्होंने भारत की भूमि पर पैर रखते ही युवकों को आह्वान किया-तुम्हारा सबसे पहला कार्य देश को स्वतन्त्र कराना होना चाहिए और इसके लिए जो भी बलिदान करना पड़े, उसके लिए तैयार होना चाहिए। इन्होंने उस समय ऐसी शिक्षा की व्यवस्था की आवश्यकता पर बल दिया जो देशवासियों में राष्ट्रीय चेतना जागृत करे, उन्हें संगठित होकर देश की स्वतन्त्रता के लिए संघर्षरत करे। परन्तु ये संकीर्ण राष्ट्रीयता के हामी नहीं थे। ये तो सब मनुष्यों में उस परमात्मा के दर्शन करते थे और इस दृष्टि से विश्वबन्धुत्व में विश्वास करते थे।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने देश भ्रमण के दौरान तत्कालीन भारत को जो चित्र देखा था उससे चिंताक्रांत बन गए। भूखा, प्यासा, कपडे विहीन, घर विहीन मानव समाज की महा दरिद्रता को देखकर वह दुखी हुए। इस गरीब भारत के दर्शन ने द्रवित कर दिया था। सारे विश्व को खिलाने वाला भारत आज दरिद्र, दयनीय क्यों? यह चिंतन किया। निरक्षरता, अश्पृश्यता, गरीबी, शोषण के देखे दृश्यों ने उन्हें रुदन करा दिया। आज भी भारत में हमारे ऐसे बहुत से भाई बहन हैं जो जीवन की आवश्यक आवश्यकताओं के अभाव में नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। हम सबका नैतिक दायित्व है कि ऐसे सभी लोगों की यथा संभव सहायता कर उन्हें राष्ट्र की मुख्य धारा में जोड़ने का प्रयास करें। कार्यक्रम में कुरुक्षेत्र संस्कृत वेद विद्यालय के आचार्य नरेश कौशिक, रमन कम्बोज गुरप्रीत सिंह सहित वेद विद्यालय के ब्रह्मचारी अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।