मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में श्रद्धांजलि कार्यक्रम संपन्न
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। मेवाड़ के महान राजपूत नरेश महाराणा प्रताप अपने पराक्रम और शौर्य के लिए पूरी दुनिया में मिसाल के तौर पर जाने जाते हैं। एक ऐसा राजपूत सम्राट जिसने जंगलों में रहना पसंद किया लेकिन कभी विदेशी मुगलों की दासता स्वीकार नहीं की। महाराणा प्रताप ने देश, धर्म और स्वाधीनता के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में व्यक्त किए। कार्यक्रम का शुभारंभ महाराणा प्रताप के चित्र पर माल्यार्पण, पुष्पार्चन एवं दीपप्रज्जवलन से हुआ।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि प्रताप की वीरता ऐसी थी कि उनके दुश्मन भी उनके युद्ध-कौशल के कायल थे। उदारता ऐसी कि दूसरों की पकड़ी गई मुगल बेगमों को सम्मानपूर्वक उनके पास वापस भेज दिया था। इस योद्धा ने साधन सीमित होने पर भी दुश्मन के सामने सिर नहीं झुकाया और जंगल के कंद-मूल खाकर लड़ते रहे। माना जाता है कि इस योद्धा की मृत्यु पर अकबर की आंखें भी नम हो गई थीं। अकबर ने भी कहा था कि देशभत्तफ़ हो तो ऐसा हो। अकबर ने कहा था, इस संसार में सभी नाशवान हैं। राज्य और धन किसी भी समय नष्ट हो सकता है, परंतु महान व्यक्तियों की ख्याति कभी नष्ट नहीं हो सकती। पुत्रें ने धन और भूमि को छोड़ दिया, परंतु उसने कभी अपना सिर नहीं झुकाया। हिन्द के राजाओं में वही एकमात्र ऐसा राजा है जिसने अपनी जाति के गौरव को बनाए रखा है।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि महाराणा प्रताप का हल्दी घाटी के युद्ध के बाद का समय पहाड़ों और जंगलों में ही व्यतीत हुआ। अपनी गुरिल्ला युद्ध नीति द्वारा उन्होंने अकबर को कई बार मात दी। महाराणा प्रताप चित्तौड़ छोड़कर जंगलों में रहने लगे। महारानी, सुकुमार राजकुमारी और कुमार घास की रोटियों और जंगल के पोखरों के जल पर ही किसी प्रकार जीवन व्यतीत करने को बाध्य हुए। अरावली की गुफाएं ही अब उनका आवास थीं और शिला ही शैया थी। महाराणा प्रताप को अब अपने परिवार और छोटे-छोटे बच्चों की चिंता सताने लगी थी। मुगल चाहते थे कि महाराणा प्रताप किसी भी तरह अकबर की अधीनता स्वीकार कर दीन-ए-इलाही धर्म अपना लें। इसके लिए उन्होंने महाराणा प्रताप तक कई प्रलोभन संदेश भी भिजवाए, लेकिन महाराणा प्रताप अपने निश्चय पर अडिग रहे। प्रताप राजपूत की आन का वह सम्राट, हिन्दुत्व का वह गौरव-सूर्य इस संकट, त्याग, तप में अडिग रहा। धर्म के लिए, देश के लिए और अपने सम्मान के लिए यह तपस्या वंदनीय है।कार्यक्रम में अनेक सामाजिक, आध्यात्मिक एवं धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधि एवं गणमान्य जन उपस्थित रहे।