मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा आजादी के अमृतोत्सव एवं पंजाब केसरी लाला लाजपत राय की जयंती के उपलक्ष्य में कार्यक्रम संपन्न।
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। पंजाब केसरी लाला लाजपत राय प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति से बहुत लगाव था। इसी लगाव के चलते ही उन्होंने प्राचीन विद्या, धर्म और संस्कृति का गहन रूप से अध्ययन किया। लाजपत राय विदेशी शासन के विरोधी थे और अपनी शिक्षा खत्म कर के वे सक्रिय रूप से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में संग्लन हो गए। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने आजादी के अमृतोत्सव एवं पंजाब केसरी लाला लाजपत राय की जयंती के उपलक्ष्य में मिशन के फतुहपुर स्थित आश्रम परिसर में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि पंजाब केसरी के नाम से प्रसिद्ध भारत के महान क्रान्तिकारी लाला लाजपत राय का सम्पूर्ण जीवन मातृभूमि की सेवा के लिए समर्पित था। 1888 ई- में वे पहली बार कांग्रेस के इलाहबाद अधिवेशन में शामिल हुए। 1906 ई- में ये गोपाल कृष्ण गोऽले के साथ कांग्रेस के एक शिष्टमण्डल के सदस्य के तौर पर इंग्लैंड गए। वहाँ से वे अमेरिका चले गए। 1907 ई- में सरकार ने इन्हे और सरदार अजीत सिंह को देश से निर्वासित कर बर्मा के मांडले नगर में नजरबंद कर लिया। बाद में विरोध होने पर सरकार ने अपना ये आदेश बापस ले लिया। ये कांग्रेस के गरम दल के प्रमुऽ नेता थे। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ये एक बार फिर प्रतिनिधि मण्डल के साथ इंग्लैंड गए। वहां से जापान और फिर अमेरिका चले गए। 20 फरवरी 1920 को जब वे स्वदेश बापस लौटे तो जालियांवाला बाग हत्याकांड हो चुका था। 1920 ई- में नागपुर में आयोजित अिऽल भारतीय छात्र संघ के अध्यक्ष होने के नाते इन्होनें छात्रें से राष्ट्रीय आंदोलन में जुड़ने को कहा। 1925 ई- में इन्हे हिंदू महासभा के कलकत्ता अधिवेशन का अध्यक्ष भी बनाया गया। 1926 ई- में जेनेवा में राष्ट्र के श्रम प्रतिनिधि बन के गए।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि लाला लाजपत राय ने एक राजनेता, लेखक और वकील के तौर पर देश को अपना अमूल्य योगदान दिया। आर्य समाज से प्रभावित लाला लाजपत राय ने पूरे देश में इसका प्रचार प्रसार किया- पंजाब में उनके कामों की वजह से उन्हें पंजाब केसरी की उपाधि मिली। लाजपत राय को देश न केवल राजनीतिक योगदान के लिये बल्कि उनके सामाजिक कार्यों हेतु भी जानता है। उन्होंने 1896-99 ई- में उत्तर भारत में पड़े भयंकर अकाल में लोगों तक सहायता पहुंचाई। जिन बच्चों का ईसाई पादरी धर्म परिवर्तन कराना चाहते थे, उन्हें भी उनके चंगुल से छुड़ाया और उन्हें फिरोजपुर तथा आगरा के आर्य अनाथालयों में भेजा। 1905 ई- में कांगड़ा में आये भयंकर भूकंप के दौरान भी इन्होने लोगों की सेवा की और उन तक राहत पहुंचाई। 1907-08 के दौरान संयुक्त प्रान्त और मध्य प्रदेश में पड़े भयंकर दुर्भिक्ष के समय भी इन्होने लोगो तक सहायता पहुंचाई। लाला लाजपत राय अपनी निर्भिकता और गरम स्वभाव के कारण इन्हें पंजाब केसरी के उपाधी से नवाजा गया। बाल गंगाधर तिलक के बाद वे उन शुरूआती नेताओं में से थे, जिन्होंने पूर्ण स्वराज की मांग की। पंजाब में वे सबसे लोकप्रिय नेता बन कर उभरे। लाला लाजपत राय द्वारा राष्ट्र के लिए किए गए बलिदान का भारत सदैव ऋणि रहेगा।