मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा बसंतोत्सव एवं सरस्वती जयंती के उपलक्ष्य में द्विदिवसीय कार्यक्रम का शुभारंभ
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। भारत उत्सवों का देश है और यहाँ हर उत्सव अलग प्रकार का है। वसंत पंचमी उत्सव है वसंत ऋतु का, जिसके आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। बसंतोत्सव प्रकृति एवं भारतीय सनातन परम्परा का महोत्सव है। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा आजादी के अमृतोत्सव, बसंतोत्सव एवं सरस्वती जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित द्विदिवसीय कार्यक्रम का शुभारंभ अवसर पर मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने व्यक्त किए। कार्यक्रम का शुभारंभ भारतमाता, वैदिक यज्ञ एवं सरस्वती पूजन से हुआ। कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों ने प्रकृति एवं पर्यावरण के संरक्षण का संकल्प लिया।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि बसंत पंचमी ज्ञान, कला और संगीत की देवी मां सरस्वती का आविर्भाव दिवस है। सृष्टि के प्रारंभिक काल में ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की पर वे अपनी सृजना से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि चारों ओर मौन छाया था।विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर देवी का था जिसके एक हाथ में वीणा थी तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी, तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि ऋग्वेद में माँ सरस्वती को परम चेतन के तौर पर बताया गया है। बसंत पंचमी हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। बसंत पंचमी के दिन ही पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्म्द गोरी को अंतिम वर पराजित किया था। वसंत पंचमी हमें राम सिंह कूका की भी याद दिलाता है। राम सिंह कूका का जन्म वसंत पंचमी के दिन ही 1816 ई- में लुधियाना में हुआ था। राम सिंह कूका कुछ दिनों तक रणजीत सिंह की सेना में रहे। बाद में घर लौटकर खेती बारी में लग गए। आध्यात्मिक रूप से समाज में प्रतिष्ठित होने के कारण लोग इनके प्रवचन को सुनने लगे। बाद में इन्होंने अपने शिष्यों का एक अलग पंथ बना लिया, जो कूका पंथ के नाम से प्रचलित हुआ। यह दिवस हमें वीर हकीकत राय के धर्म के प्रति दिए गए बलिदान की भी याद दिलाता है।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। वास्तव में सरस्वती का विस्तार ही वसंत है, उन्ही का स्वरूप है, बसंत। अतः वसन्त पंचमी को सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता हैं और इस दिन ज्ञान, कला और संगीत की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह दिन विद्या आरम्भ के लिए शुभ है अतः हिन्दू रीति के अनुसार बच्चों को उनका पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। साहित्यकारों के लिए बसंत प्रकृति के सौन्दर्य और प्रणय के भावों की अभिव्यक्ति का अवसर है तो वीरों के लिए शौर्य के उत्कर्ष की प्रेरणा है। कार्यक्रम में काइंड बिंगस कुरुक्षेत्र के अध्यक्ष राघव गर्ग, नव्यम्, अंश, वंशिका, रिया, समृद्धि, धीरज, आर्यन, जहानवी सहित अनेक सामाजिक, आध्यात्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधि जन उपस्थित रहे।