मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि के अवसर पर कार्यक्रम संपन्न
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय राजनीतिक क्षितीज के प्रकाशमान सूर्य थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारतवर्ष में सभ्यतामूलक राजनीतिक विचारधारा का प्रचार एवं प्रोत्साहन करते हुए अपने प्राण राष्ट्र को समर्पित कर दिया। अद्भूत व्यक्तित्व के स्वामी दीनदयाल जी उच्चकोटि के दार्शनिक थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रणीत एकात्म मानववाद मानव जीवन व सम्पूर्ण सृष्टि के सम्बन्ध का दर्शन है। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि के अवसर पर मिशन के फतुहपुर स्थित आश्रम परिसर में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए। कार्यक्रम का शुभारंभ भारत माता एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय के चित्र पर पुष्पार्चन एवं दीपप्रज्जवलन से हुआ।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने जिस प्रकार व्यक्तिगत दुखों का अनुभव किया, उसी प्रकार उन्होंने राष्ट्र के दुखों का भी अनुभव किया। हमारा यह सनातन हिन्दू राष्ट्र सैंकडों वर्षों से कष्ट सह रहा है। संघ ने यह विचार प्रस्तुत किया कि इस देश के पुत्र रूप हिन्दू समाज का संगठित होना आवश्यक है। जब वह संगठित हो जाएगा तो इन कष्टों का निवारण करने में समर्थ हो सकता है। इसीलिए इस पुत्रवत हिन्दू समाज को संगठित करना पड़ेगा। दीनदयाल उपाध्याय के अनुसार समाजवादी एवं पूंजीवादी विचार धारायें केवल मानव के शरीर व मन की आवश्यकताओं पर विचार करती हैं। इसलिए वे भौतिक वादी उद्धेश्य पर आधरित है। जबकि मनुष्य के सम्पूर्ण विकास के लिये आध्यात्मिक विकास भी उतना ही आवश्यक है। एकात्म मानववाद एक ऐसी विचारधारा है जिसके केंद्र में व्यक्ति, फिर व्यक्ति से जुड़ा परिवार फिर परिवार से जुड़ा समाज, राष्ट्र, विश्व फिर अनंत ब्रह्माण्ड समाविष्ट है।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि हमारे देश की आजादी के समय लगभग सम्पूर्ण विश्व दो ध्रुवों में बंट चुका था। पहली विचारधारा जहाँ पूंजीवाद की थी वहीँ दूसरी साम्यवाद के रूप में मौजूद थी और पूरा विश्व इन्ही दो विचारधाराओं के बीच झूल रहा था। ऐसे समय में उपाध्याय जी ने इन दोनों विचारों के विकल्प के रूप में अपने एकात्म मानववाद के दर्शन को रखा। उनका मानना था कि भारत को देश से बहुत अधिक आगे बढ़कर एक राष्ट्र के रूप में और इसके निवासियों को नागरिक के रूप में न मानकर परिवार के सदस्य के रूप में मानें, यही विचार उपाध्याय जी के एकात्म मानववाद के दर्शन को प्रतिपादित करता है। दीनदयाल जी के विचारों का अध्ययन करते समय उनकी वैचारिक प्रक्रिया, जिसका आधार संस्कृति तथा धर्म है, को समझना आवश्यक है। यहाँ धर्म का अर्थ व्यापक है। भारतीय संस्कृति में सामाजिक व्यवस्था का संचालन सरकारी कानून से नहीं बल्कि प्रचलित नियमों जिसे धर्म के नाम से जाना जाता था, के द्वारा होता था। धर्म ही वह आधार था जो समाज को संयुक्त एवं एक करता था तथा विभिन्न वर्गों में सामंजस्य एवं एकता के लिए कर्ताव्य-संहिता का निर्धारण करता था।