अंग्रेजी सरकार की नौकरी को ठोकर मार कर नेताजी की सेना में शामिल हुए ब्रिटिश सेना के जवान-फौगाट
आजादी के बाद भी दशकों तक नहीं मिला था आजाद हिंद फौज के सिपाहियों को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर जो आजाद हिंद फौज में शामिल हुए थे,उन सैनिकों को बाद में या तो मार डाला या जेल में बंद कर यात्नाएं दीं
जो अंग्रेजों को चकमा देकर बच निकले उनका रिकार्ड कर दिया गया था ध्वस्त
न्यूज डेक्स संवाददाता
रेवाड़ी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर अंग्रेजी सेनाओं के बहादुर जवानों ने अपनी सरकारी नौकरी को ठोकर मार कर हमें आजाद भारत में जीवन जीने का अधिकार दिलाया था। इनमें बड़ी संख्या हरियाणा के वीर जवानों की थी। इन्होंने आजाद हिद फौज में रहते अंग्रेजी सेनाओं के खिलाफ युद्ध लड़ा था। इनमें कई शहीद हुए थे और अनेकों जख्मी। जो बच गये थे,उन जवानों को या तो अंग्रेजी सेनाओं ने जेलों में डाल दिया गया था, या फिर तरह तरह की यातनाएं देकर मार डाला। कइयों को तो एकांत स्थान पर ले जाकर गोलियों से भून दिया गया था। युद्ध समाप्ति के बाद जो जैसे तैसे अंग्रेजों को चकमा देकर बच निकले थे, उन जवानों को वापिस नौकरी में लेना तो दूर,जिनका सुराग भी लगा वे ब्रिटिशकाल में और देश की आजादी के बाद दूसरी सरकारी नौकरी के काबिल नहीं छोड़े गये। उनका रिकॉर्ड भी अंग्रेजी सेनाओं द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था,ताकि आजाद भारत में वे गलती से भी किसी सम्मान के हकदार न रहे। यह कहना है आजाद हिंदी फौज के स्वतंत्रता सेनानियों को उनके हक दिलाने की लड़ाई लड़ रहे श्रीभगवान फौगाट का।आज फौगाट हरियाणा में किसी परिचय के मोहताज नहीं है।
स्वयं एक स्वतंत्रता सेनानी के पुत्र होने के नाते फौगाट ने अपने पिता को सरकारी सम्मान दिलाने के बाद अन्य गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों के लिये कड़ा संघर्ष किया। फौगाट अभी तक अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को रिकार्ड खोज कर सरकार के सामने ला चुके हैं। उन्होंने बताया कि आजादी दशकों बाद तक आजाद हिंद फौज के सिपाहियों स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं दिया गया था। इसके बाद भी आवेदनकर्ताओं को केन्द्रीय स्वतंत्रता सेनानी सममान पैंशन नियम 1972 कि शर्तों के आधार पर दर्जा दिया जाना आसान नहीं था। अतः आजाद हिद फौज जवानों और उनकी राज्य व केंद्रीय सदस्यों की कमेटियों कि सिफारिश के आधार पर नियम 1980 कि शर्तों के आधार पर पुनः विचार कर सम्मान पैंशन देना शुरु किया गया था।
फौगाट के मुताबिक आजाद हिंद फौज के सदस्यों की केंद्रीय कमेटी को 1996 तक व 2014 तक राज्य के सदस्यों की स्वतंत्रता सेनानियों कि कमेटी को सेवाओं में रखा गया था,इसके उपरांत रिकॉर्ड न मिलने कारण राज्य के जवानों व शहीद जवानों की विधवाओं आश्रितों कि केन्द्रीय स्वतंत्रता सेनानी अस्वीकार सम्मान पैंशन फाइलों को राष्ट्रीय अभिलेखागार कार्यालय में सार्वजनिक किया गया था। इसका अध्ययन फौगाट द्वारा किया गया,क्योंकि उन्होंने सैकड़ों जवानों का रिकॉर्ड आजाद हिद फौज में ढू्ंढने का निर्णय लिया था, लेकिन उनका नाम राज्य व केंद्रीय स्वतंत्रता सेनानी रिकॉर्ड में नहीं था। यह रिकॉर्ड व रिपोर्ट से यह स्पष्ट था कि अग्रेजी सेनाओं द्वारा दिए गए रिकॉर्ड के आधार पर आवेदनकर्ताओं द्वारा सम्मान पैंशन पाने का असफल प्रयास किया गया था,क्योंकि अग्रेजी सेनाओं का सैनिक मान लिया गया था, उनकी अग्रेजी सेना कि यूनिट आर्मी नंबर नाम पता द्वितीय विश्व युद्ध के समय का पाया जाता था।
अतः फौगाट द्वारा उनके पते पर डाक से यह रिकॉर्ड मिलने का समाचार परिवारों तक पहुंचाने का असफल प्रयास किया जाता रहा था।इसके उपरांत यह रिकॉर्ड राज्य व जिला प्रशासन तक पहुंचाकर परिवारों तक पहुंचाने का मानवीय आधार पर अनुरोध किया जाता रहा था। अतः राज्य व जिला प्रशासन द्वारा आगामी कार्रवाई पत्राचार किया जाता रहा था, लेकिन परिवारों तक रिकॉर्ड गौरव गाथा इतिहास सम्मान नहीं पहुँच रहा था। अतः राज्य के समाचार पेपरों यूट्यूब टेलीविजन चैनलों पर यह समाचार दिया जाता रहा। अतः राज्य के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के माध्यम से रिकॉर्ड को परिवारों तक पहुंचाने का काम किया गया व परिवारों ने जिला के प्रशासन से स्वतंत्रता सेनानी दर्जा देने का भी अनुरोध किया जाता रहा है, जबकि उनके परिवारों को यह पता था कि वह अंग्रेजी सेना में रहें हैं और ऐसे शहीद जवानों को गांवों के गौरव पटटो स्मारकों पर नाम लिखा है, उनको अग्रेजी सेना शहीद होने का नाम लिखा है। यह समाचारों का अध्ययन राज्य सरकार द्वारा किया जाता रहा है।
अतः नियमों के अनुसार ही आगामी कार्रवाई का आश्वासन आज तक भी दिया जाता रहा है। फौगाट ने बताया कि उन्होंने सैंकड़ों जवानों का रिकॉर्ड ढूंढा है। वह परिवारों तक पहुंचाने के लिए हर संभव प्रयास आज तक किया जा रहा है कुछ जवानों का रिकॉर्ड परिवारों तक भी पहुंचाने में सफल रहें हैं। सैंकड़ों जवानों का रिकॉर्ड ढूंढने में सरकार से मदद मागी जा रहीं हैं। उनकों अग्रेजी सेना शहीद जवानों कि युनिट आर्मी नमबर नाम पता सरकार दिलवाये तो वह सैकड़ों जवानों का आजाद हिद फौज का रिकॉर्ड ढूंढने में सफल हो सकतें है। अतः राज्य सैनिकों का स्वतंत्रता संग्राम में वलिदान दिया गया था, उसकी संख्या बहुत ज्यादा है। सरकार के सहयोग से उनका रिकॉर्ड ढूंढना और परिवारों तक पहुंचाने का काम हो सकता है। फौगाट का कहना है कि आजाद हिंद फौज का रिकॉर्ड और नेताजी के सिपाहियों के साथ हो रहे खिलवाड़ को देखकर मेरी आत्मा रोती है,क्योंकि अग्रेजी सेनाओं द्वारा इनका रिकॉर्ड भी वास्तविक नहीं दिया था और इसी की वजह से नेताजी की सेना में शामिल हुए अनगिनत वीर सैनिक और इनके परिवार उस सम्मान के वंचित हैं,जिसके वे असली हकदार हैं।