मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा संत शिरोमणि गुरु रविदास जयंती के अवसर पर संत संवाद कार्यक्रम संपन्न
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। संत शिरोमणि गुरु रविदास भारतीय जीवन दर्शन के प्रचारक थे। वे भक्तिमार्गी संत थे। उन्होंने हमेशा समाज में व्याप्त बुराइयों का विरोध किया तथा ईश्वर प्राप्ति का सरल एवं सर्वोत्तम मार्ग सुझाया। उनकी चालीस वाणियां गुरु ग्रन्थ साहिब में संकलित है। संत शिरोमणि गुरु रविदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिये अत्याधिक महत्वपूर्ण है। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा संत शिरोमणि गुरु रविदास की जयंती के अवसर पर आयोजित संत संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किए। कार्यक्रम का शुभारंभ समाजसेवी साहिब सिंह एवं मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने संत शिरोमणि गुरु रविदास एवं भारतमाता के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्चन कर संयुक्त रूप से किया।
इस अवसर पर मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों के मध्य संत गुरु रविदास के जीवन पर आधारित चित्रकला, निबंध लेखन एवं सम्भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। चित्रकला प्रतियोगिता में लवकुश सदन के नुकुल ने प्रथम, अर्जुन सदन के मनजोत ने निबंध लेखन में प्रथम एवं श्रीराम सदन के कृष्ण ने सम्भाषण में प्रथम स्थान प्राप्त किया। आकाश ने चित्रकला में द्वितीय, विकास ने तृतीय और निबंध लेखन में द्वितीय स्थान अंकित ने एवं दीपक ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। सम्भाषण में गौरव ने द्वितीय एवं आशुतोष ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। मातृभूमि शिक्षा मंदिर की ओर से सभी विजेताओं को पुरस्कृत किया गया।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि संत शिरोमणि गुरु रविदास ने उंच नीच की भावना तथा ईश्वर के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन और निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया। वे स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उन्हे भाव-विभोर होकर सुनात थे। संत गुरु रविदास ने ऐसे समाज की परिकल्पना की थी। जिसमें कोई उंच नीच, भेद भाव, राग द्वेष न हो, सभी बराबर हो, सामाजिक कुरीतियां ना हों। भारतीय समाज निर्माता बाबा भीमराव अम्बेडकर पर उनकी विचार धारा का गहरा प्रभाव था। अपने जीवन में संघर्ष करन की प्रेरणा उन्होंने संत गुरु रविदास से ही पाई थी तथा उनके आदर्श सामाजिक समता तथा प्रजातांत्रिक समाजवाद की कल्पना का भारतीय संविधान में स्वीकार करने की कोशिश भी की।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि संत रविदास के समय देश में मुस्लिम शासन था। हिन्दू पराजित जाति थी। दोनों धर्मों के कुलीन वर्ग एक दूसरे से नफरत करते थे। जातिवादी व्यवस्था के पोषकों के कुटिल कूचक्र को पहचान कर, उन्होंने मानव एकता की स्थापना पर बल दिया। उनका मानना था कि जातिवादी व्यवस्था को दूर किए बगैर देश व समाज की उन्नति असंभव है। ये यह बात अच्छे से जानते थे कि जब तक हिन्दू और मुसलमान एक नहीं होगें तब तक समाज में शांति एवं स्थिरता नहीं आऐगी। संत रविदास के समय में समाज में आर्थिक विषमता काफी बढ़ी हुई थी। इस समस्या के निवारण के लिये उन्होंने जिस तरह श्रम को महत्व देकर आत्मनिर्भरता की बात कही। संत शिरोमणि रविदास के जीवन से प्ररेणा लेकर समाज में आदर्श प्रस्तुत किया जा सकता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए समाजसेवी साहिब सिंह ने कहा कि संत रविदास समाज में फैली जाति-पाति, छुआछात, धम संप्रदाय वर्ण विशेष जैसी भंयकर बुराईयों को जड़ से समाप्त करने के लिये संत रविदास ने अनेक मधुर और भक्तिमय रसीली कालजयी रचनाओं का निर्माण किया और समाज के उद्धार के लिये समर्पित कर दिया। संत रविदास ने अपनी वाणी एवं सदुपदेशों के जरिये समाज में एक नई चेतना का संचार किया। उन्होंने लोगों का पाखण्ड एवं अंधविश्वास छोड़कर सच्चाई के पथ पर आगे बढ़ने के लिये प्रेरित किया। कार्यक्रम में सरदार मलकीत सिंह, विकास जोशी, गुरप्रीत सिंह एवं शिक्षिका रिंकी सहित अनेक सामाजिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधि जन उपस्थित रहे।