न्यूज डेक्स संवाददाता
रोहतक। स्थानीय सांस्कृतिक संस्था ‘सप्तक’ के कलाकार एनएसडी की ओर से आसाम और मेघालय में सफल नाट्यमंचन कर वापिस लौट आए हैं। वहां पर इन्होंने गौहाटी, मोरीगांव, टांगला, धीरेनपारा और शिलांग में 5 स्थानों पर अपने सुप्रसिद्ध नाटक गधे की बरात की प्रस्तुतियां दीं, जिन्हें दर्शकों और नाट्य समीक्षकों द्वारा काफी सराहा गया। प्रस्तुतियों के दौरान भारुल इस्लाम, पबित्र राभा, मोहिंदर जी और आईसीसीआर के निदेशक मुनीष सिंह सहित रंगमंच की प्रमुख हस्तियां शामिल रहीं। इनके अलावा स्थानीय ब्लॉगर्स से भी कलाकारों को जमकर तारीफ मिली।
संस्था के सचिव अविनाश सैनी ने बताया कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की उत्तर पूर्व नाट्य योजना के अंतर्गत इस वर्ष रोहतक की सप्तक कल्चरल सोसाइटी के प्रसिद्ध नाटक गधे की बरात का चयन किया गया था। ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाला यह हरियाणा का पहला नाटक है। उन्होंने बताया कि उत्तर पूर्व में नाटक विधा के प्रचार प्रसार के लिए संस्कृति मंत्रालय की विशेष योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा हर वर्ष देश के पांच प्रसिद्ध नाटकों का चयन कर के वहां मंचन के लिए भेजा जाता है और वहां के नाटकों को देश के अन्य राज्यों में मंचन के लिए चुना जाता है।
इस योजना के अंतर्गत हरियाणा से पहली बार किसी नाटक का चयन किया गया है जो कि सप्तक के लिए और रोहतक शहर के लिए गर्व की बात है। इन प्रस्तुतियों को मिलाकर मशहूर रंगकर्मी विश्वदीपक त्रिखा द्वारा निर्देशित गधे की बरात के अब तक देश भर में 318 मंचन हो चुके हैं। इनमें से एक प्रदर्शन पाकिस्तान के लाहौर में भी किया जा चुका है।जाने-माने रंगकर्मी विश्व दीपक त्रिखा ने बताया कि पहला मंचन आसाम के जानेमाने नाटककार भारूल इस्लाम के सीगल थियेटर स्टूडियो, दूसरा मंचन आमर गांव, तांगला के दापोन, मीरर थियेटर में और तीसरा मंचन चार बाग कॉलेज ऑडिटोरियम, मोरीगांव में हुआ। आसाम में नाटक की आखिरी प्रस्तुति किस्मत बानो के द विंग्स थियेटर में, जबकि अंतिम प्रस्तुति शिलांग के लाबान स्थित आसाम क्लब में हुई।
उन्होंने बताया कि भाषा की बाधा के बावजूद दर्शकों ने नाटक का भरपूर लुत्फ उठाया। प्रस्तुति देखने के बाद आईसीसीआर के निदेशक मुनीष सिंह ने कहा कि वे जल्दी ही इस टीम को दोबारा शिलांग में नाटक मंचन के लिए बुलवाएंगे।नाटक में अविनाश सैनी ने कल्लू कुम्हार, विश्वदीपक त्रिखा ने राजा और देवता इंद्र, सुरेन्द्र शर्मा ने दीवान और गुरू बृहस्पति, सुजाता ने गंगी, महक कथूरिया ने राजकुमारी, विकास ने चित्रसेन, नीलम त्रिखा ने बुआ तथा पावनी ने अप्सरा व राजनर्तकी की भूमिकाएं निभाईं। संगीत सुभाष नगाड़ा का रहा।